मैं सूरथखल में रीजनल इंजीनियरिंग कालेज के गेस्ट हाउस में
ठहरा हुआ था।
एक सेमिनार के सिलसिले में यहाँ आया था। अब
यहाँ से गोवा जाना था मुझे। यदि मैं कालेज के अधिकारियों
से कहता तो वे मेरा सारा प्रबंध कर देते। शायद यहाँ से गोवा
तक का किराया भी दे देते। लेकिन यह मुझे उचित नहीं लगा।
इसीलिए मैं स्वयं मंगलौर जाकर बस से अपना रिजर्वेशन करा आया
था। रात नौ बजकर पचास मिनट पर बस वहाँ से पणजी के लिए रवाना
होती थी।
इस समय आठ बजने वाले थे।
मुझे किसी भी सूरज में साढ़े नौ
या अधिक से अधिक नौ चालीस तक मंगलौर पहुँच जाना था। वैसे
पूर्ण जानकारी न होने के कारण मुझे यह कष्ट उठाना पड़ रहा
था क्योंकि मंगलौर से पणजी जाने वाली बस इसी रास्ते से
गुजरती थी और यदि मैं पहले से बस वाले को नोट करा देता कि
मैं बस में सूरथखल में बोर्ड करूँगा तो वह बस यहाँ रोक कर
मुझे ले लेता।
लेकिन अब क्या हो सकता था।
अब तो मुझे यहाँ से बस पकड़ कर
मंगलोर ही जाना था। अपनी मूर्खतापूर्ण आदर्शवादिता के कारण
मैंने कालेज के अधिकारियों को कार के लिए भी मना कर दिया
था। |