सामयिकी भारत से

क्या अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत के लिये खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का द्वार खोलना उचित है? के एन गोविंदाचार्य का आलेख-


खुदरा व्यापार पर संकट


नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत दौरे पर आने वाले हैं और इससे पहले अमेरिकी कंपनियों और खास तौर पर वालमार्ट को वैधानिक प्रवेश दिलाने के लिए खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने की हड़बड़ी दिखाई जा रही है।

केंद्र सरकार खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई को मंजूरी देने की योजना पर काम कर रही है और इससे देश के खुदरा और असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे करोड़ो लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाएगा। केंद्र सरकार की इस योजना का पता इसी बात से चलता है कि गत माह केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने दक्षिण अप्रफीका के जो
हान्सबर्ग में जाकर यह घोषणा की कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के आने से लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे और इस क्षेत्र का विकास होगा।

ये वही आनंद शर्मा हैं जिन्होंने पिछले साल जून में यह कहा था कि खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की कोई जरूरत नहीं है। उस समय आनंद शर्मा का दिया गया यह बयान जून २००९ के पहले सप्ताह के प्रमुख अखबारों में अभी भी देखा जा सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर पिछले साल जून से इस साल सितंबर के बीच के पंद्रह महीनों में परिस्थितियों में क्या बदलाव आ गया कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का विरोध कर रहे आंनद शर्मा इसके पक्ष में उतर गए हैं? श्री शर्मा ने इतना ही नहीं किया बल्कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का विरोध कर रहे लोगों को स्केयर मोंगर्स आतंक फैलाने वाला करार दिया। केंद्र सरकार ने मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में इस क्षेत्र में विदेशी निवेश के पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया था जिसमें विभिन्न पार्टियों के सांसद शामिल थे और इस
समिति ने अपनी रपट में साफ तौर पर कहा था कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने से छोटे खुदरा कारोबारी अपनी रोजी-रोटी गंवाएँगे और बेरोजगारों की फौज में और इजाफा होगा।

आनंद शर्मा के विचारों में इस बदलाव को केंद्र सरकार की अमेरिकापरस्त नीतियों का परिणाम कहा जा सकता है। मालूम हो कि नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत दौरे पर आने वाले हैं और इससे पहले अमेरिकी कंपनियों और खास तौर पर वालमार्ट को वैधानिक प्रवेश दिलाने के लिए खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने की हड़बड़ी दिखाई जा रही है। केंद्र सरकार का परमाणु दायित्व विधेयक को आनन-फानन में पारित करवाना, अमेरिकापरस्त नीतियों का एक बड़ा उदाहरण है। यह बात जगजाहित है कि परमाणु दायित्व विधेयक में भारत के लोगों के हितों की अनदेखी की गई और अमेरिकी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के मकसद से इस विधेयक को पारित कराने के लिए पक्ष-विपक्ष एक हो गए। कुछ ऐसी ही कोशिश खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अनुमति देने के मसले पर भी हो रही है।

भारत के खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अनुमति दिए जाने की पूरी योजना को राजनीतिक और कारपोरेट गठजोड़ के सहारे आगे बढ़ाया जा रहा है। यह जानकर कई लोगों को हैरानी हो सकती है कि अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अपने पति बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने से पूर्व वालमार्ट की निदेशक मंडल में वर्षों रही हैं और खुदरा क्षेत्र की दुनिया की इस
सबसे बड़ी कंपनी से उनके रिश्ते बेहद फराने हैं। वालमार्ट इन्हीं रिश्तों का इस्तेमाल करके भारत सरकार से खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को हरी झंडी दिलवाना चाहती है। हिलेरी उस वक्त वालमार्ट के निदेशक मंडल में थीं जब उनके पति बिल क्लिंटन अरकंसास के गवर्नर थे।

दुनिया के कई देशों के खुदरा कारोबार को पंगु बना देने वाली कंपनी वालमार्ट की सराहना करते हुए हिलेरी क्लिंटन ने २००४ में नेशनल रिटेल फेडरेशन को संबोधित करते हुए कहा था कि वालमार्ट के निदेशक मंडल में रहना उनके लिए बेहद अच्छा अनुभव था और इस दौरान उन्होंने काफी कुछ सीखा। ये तथ्य इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि अमेरिका की एक प्रभावशाली मंत्री के दुनिया के सबसे बड़ी खुदरा कंपनी से बड़े गहरे संबंध रहे हैं। इन्हीं संबंधों का इस्तेमाल भारत के खुदरा क्षेत्र में वालमार्ट की घुसपैठ को वैधानिक बनाने के लिए किया जा रहा है ताकि अमेरिकी हितों का पोषण होता रहे, भले ही भारत के करोड़ो लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाए।

उल्लेखनीय है कि बीते आठ जुलाई को केंद्र सरकार ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी देने के लिए एक मसौदा तैयार करके बँटवाया है और इस पर सुझाव आमंत्रित किए हैं। केंद्र सरकार की योजना इस प्रस्ताव को संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कैबिनेट के जरिए मंजूरी दिलवाने की है। ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के लिए भी इस मसले पर कुछ करने को नहीं बचेगा क्योंकि सरकार इसे नीतिगत मसला बताकर न्यायपालिका को बाहर कर देगी। खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दिलाने के लिए राजनीतिक लामबंदी के काम में सियासी लोग और कारपोरेट घराने लगे हुए हैं।
इस मसले पर भी पक्ष-विपक्ष के लोगों को एकमत करने की कोशिश हो रही है। ताकि कैबिनेट के जरिए इसकी मंजूरी देने के बाद विपक्ष हो-हल्ला नहीं करे।

अमेरिका के इशारे पर काम करने वाली इस सरकार ने अगर खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी दी तो देश में बेरोजगारी की समस्या और बढ़ेगी क्योंकि बड़ी कंपनियों के खुदरा क्षेत्र में आने से छोटी दुकानें बंद हो जाएँगी। छोटी दुकानों के बंद होने के बाद ये बड़ी कंपनियाँ मनमानी करेंगी और इससे देश के आर्थिक ढाँचे पर नकारात्मक असर पड़ेगा। भारत में खुदरा क्षेत्र का सालाना कारोबार तकरीबन ४०० अरब डालर का है और यह क्षेत्र तकरीबन १३ फीसदी की दर से विकास कर रहा है और यही वजह है कि वालमार्ट जैसी बड़ी कंपनियाँ इस क्षेत्र पर नजर गड़ाए बैठी हैं। गौरतलब है कि अकेले वालमार्ट का सालाना कारोबार तकरीबन ४०० अरब डालर का है और लगभग २१ लाख लोगों को इसमें रोजगार मिला हुआ है।
जबकि भारत में तकरीबन चार करोड़ लोग खुदरा क्षेत्र पर आश्रित हैं।

खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी देने से यहाँ के सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों का भी बहुत नुकसान होगा। इस क्षेत्र की विकास दर अभी अच्छी है लेकिन एक बार खुदरा क्षेत्र में विदेशी कारपोरेट घरानों के आ जाने के बाद इनके लिए अपना अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा। पहले से ही देश का खुदरा उद्योग भारतीय कारपोरेट घरानों की तरफ से दी जा रही चुनौतियों से निपटने में परेशान हैं। खुदरा क्षेत्र पर हो रहे इस सुनियोजित हमले के खिलाफ कई सामाजिक और कारोबारी संगठन एकजुट हो रहे हैं। इन संगठनों को साथ लेकर खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को रोकने के लिए इस संवेदनहीन सरकार के खिलाफ एक मुहिम चलाने की जरूरत है क्योंकि यह मामला लाखों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ा हुआ है। खुदरा क्षेत्र पर जब देसी संगठित रिटेल उद्योग ने हमला किया था तो उस वक्त कई राज्यों में विरोध-प्रदर्शन हुआ था। इस बार तो उससे भी कहीं ज्यादा विरोध की जरूरत है क्योंकि इस बार सामना उस कंपनी से है जिसके धन बल से दुनिया की सरकारें तक घबराती हैं।

 

१५ नवंबर २०१०