आप बहुत महान है महामहिम बाराक ओबामा, पर यह
आपने किस भेदभाव से भरे सिद्धांतों का दामन है थामा। आप भारतीयों की
प्रतिभा से प्रतिस्पर्धा करेंगे और अपने सारे आउट सोर्स हुए धन्धों को भारत
से वापिस करेंगे। हम तो मानते थे कि आप धन्य हैं श्री बाराक ओबामा, यह तो
आपका ही देश है जिसने आपकी प्रतिभा को अब तक पूरी तरह से नहीं पहचाना। हमने
तो पहले दिन से आपका लोहा मान लिया था, आप भारत के विशेष प्रशंसक हैं यह भी
जान लिया था। आप इतने शक्तिशाली देश के शक्तिशाली अध्यक्ष हैं यह विश्व अभी
जानता ही नहीं, आपको आपके कद के हिसाब से मानता ही नहीं। जब आपने शपथ ग्रहण
की थी तो लोग भारी संख्या में सड़कों पर एक रात पहले ही सोने चले आये थे,
क्या आप से पहले कभी किसी अन्य राष्ट्रपति के लिए लोग घरों से बाहर यूँ
निकल कर आये थे, कौन जानता है कि वे सभी आपके अपने थे या फिर पराये थे।
भारत में ऐसे लोगों को पैसे दे कर लाना पड़ता है, उनका हर एक नखरा उठाना
पड़ता है। आपसे पहले कोई अमेरिकी राष्ट्रपति पूर्वी देशों में इतना
प्रसिद्ध नहीं हुआ था जितने आप हुए हैं,आपके प्रशंसक नाटो के घेरे से बाहर
के देश भी हुए हैं।
फिर आपको भारतीय बच्चों से जलन क्यों हुई है, लगता है उनकी प्रतिभा ने आपके
दिल में कोई गहरी सुई चुभोई है। पहले ही दिन से आपको ज्ञान हो गया था कि
विश्व में दादागिरि जमानी है तो भारत की प्रतिभा को हराना होगा, इसके लिए
अपने देश के युवाओं के रक्त को गरमाना होगा, उन्हें भारतीयों की बराबरी
करने के लिए उकसाना होगा। इसमें भारत का क्या दोष है यदि आप के युवा जवानी
में ही बूढ़े होने लगे हैं क्योंकि वे अपने जीवन से ही रुचि खोने लगे हैं।
भारत विश्व का सबसे युवा देश है, इसकी अपनी अलग संस्कृति और परिवेश है। फिर
भी आपने भारत के विषय में जो भी कहा हमने बुरा नहीं माना, आपने कम से भारत
को अपने समकक्ष होने से कुछ अधिक ऊपर की शक्ति वाले देश के रूप है पहचाना।
आप से पहले किसी ने भारत को इतना आदर नहीं दिया था, क्योंकि किसी ने उससे
इतना अधिक प्यार ही नहीं किया था। हमारे गोस्वामी तुलसी दास जी सैंकड़ों
वर्ष पूर्व ही लिख गए हैं कि ''भय बिन होत न प्रीत``,लगता है आप हमसे बहुत
भयभीत हुए हैं हमारे मीत। हम से इतना भय मत मानिये, पहले अपने घर की समस्या
को पहचानिये। आप यदि हम पर वीजा इत्यादि की रोक लगायेंगे तो अपने देश को
थोड़ा पीछे ही ले जायेंगे। अभी तक तो हमारे युवा आपके युवाओं के
प्रेरणास्रोत हैं वे स्रोत भी सूख जायेंगे।
मेरे कुछ मित्रों को आपके उक्त कथनों में हास्य का रस मिला है, हमारे देश
में भी हास्य पैदा करने वाले नेताओं की लंबी शृंखला का सिलसिला है। हमारे
ही तरह आपके देश में भी बहुत बड़ी मात्रा में पैदा होता है आलू, आपकी भांति
ही हमारे भी एक नेता हैं श्रीमान लालू। जो हर बात को हँसी मजाक में कहते
हैं, और राजनीति को व्यंग्य का माध्यम बनाते हैं। आपने हमारा भरपूर मनोरंजन
किया है, बैठे बिठाये व्यंग्यकारों को एक नया विषय दिया है। विश्व का सबसे
शक्तिशाली राष्ट्र भारत और भारतीयों से डरता है और उन पर नए नए प्रतिबंध
लगाने की जुगाड़ करता है। आपको अपने बच्चों की प्रतिभा पर विश्वास नहीं है,
परन्तु क्या आप जानते हैं कि इससे आपके देशवासी बिल्कुल निराश नहीं हैं। वे
तो हमारे बच्चों की प्रतिभा की ही कमाई खाते हैं, और उनके बल पर मस्ती भरा
जीवन शान से बीताते हैं। वास्तव में यही तो अमेरिकी सभ्यता और संस्कृति का
चलन है, इससे कहाँ किसी को कोई जलन है। जिस आयु में आप सैक्स भरी जिंदगी का
भरपूर लुल्फ उठाते हैं, हम आपके लिए एक प्रतिभावान पीढ़ी का निर्माण करने
में जीवन लगाते हैं। आपको तो होना चाहिए हमारा आभारी, हम स्वयं ही दूर कर
देते हैं आपकी काम धाम न करने की लाचारी।
मेरे उन्हीं मित्रों का आपके लिए एक बहुत अच्छा सुझाव है, मानता हूँ सुझाव
देने का आप के यहाँ पर बहुत अभाव है। मित्रों ने एक खुला पत्र आपको लिखा
है, उसे अपने किसी पी.ए. से पढ़वा लीजियेगा, नही तो किसी भारतीय को बुलवा
लीजियेगा। वैसे पत्र में लिखा है कि जब आप भारत आएँ, तो उसके किसी गली
मोहल्ले में भी सुबह सुबह जरूर जाएँ। देखें कि भारतीय माताएँ किस प्रकार
उँगली थाम कर अपने शिशुओं को स्कूल बस तक ले जातीं हैं, जब पूरा घर निद्रा
मग्न होता है वे भोर में उठ कर उनके लिए अपने हाथ से कैसे और कैसा खाना
बनाती हैं। बच्चों के बस्ते उनके वजन से अधिक भारी होते हैं जो वे अपने
कंधों पर बिना मजदूरी माँगे उठाती हैं। घर से बस तक के छोटे से रास्ते पर
भी वे बच्चों को बड़ों का आदर करने के गुर प्रतिदिन सिखाती हैं। यह भी
देखना मत भूलना कि हम अपने लिए कम अपने बच्चों के लिए अधिक जीते हैं,
उन्हें थोड़ा सा भी सुख और आराम देने के लिए हर प्रकार का दु:ख और गम स्वयं
पीते हैं।
मित्रों ने आपको पत्र में यह भी लिखा है कि जब बच्चे लौटते हैं तो उनका होम
वर्क वे माताएँ भी करवाने का प्रयास करती हैं जो स्वयं कम पढ़ी लिखी होती
हैं, अनेक तो ऐसी हैं जो उन्हें पढ़ाते पढ़ाते स्वयं भी पढ़ जाती हैं और
जीवन में आगे बढ़ जाती हैं। रात्रि में हम बच्चों को सुलाने के बाद सोते
हैं उनके उठने से पहले जाग जाते हैं, हमें व्यस्त देख कर बच्चों के आलस्य
जैसे दुर्गण स्वयं भाग जाते हैं। हम आपकी तरह व्यक्तिवादी ''मेरा`` जीवन
नहीं जीते, हमारा जीवन हम सब का ''हमारा`` होता है, हम तो दूसरों को पिलाये
बिना पानी तक भी नहीं पीते।
आपने ठीक ही कहा कि अमेरिका पर बंगलौर का साया है, आपका हर साफ्टवेयर
इंजीनियर भारत के आम कम्प्यूटर मैकेनिक तक से भारमाया है। हमारे तो गली
मोहल्ले के लडके भी कमाल करते हैं, किसी भी समस्या का समाधान चुटकियों में
निकाल कर सामने धरते हैं। वास्तव में हम उन महान ऋषियों की संतान हैं
जिन्होंने वर्षों अध्ययन, शोध और तपस्या का जीवन जिया है, अनुभव का अमृत
हमें सौंपने के लिए युगों युगों तक मंथन का विष पिया है। उनकी जो विरासत
हमें मिली है वही तो हमारा ज्ञान है, यही ज्ञान आज हमारी शान है। हमने गणित
का आविश्कार किया था तो गणित में हम ही तो बाजी मारेगें, हमारी खोजी हुई
शून्य के सामने आपके हर नम्बर हारेंगे। आप भूल गए होंगे कि पहिए का
आविष्कार हमने ही किया है जिसकी धुरी पर आज पूरा विश्व आधुनिक बन कर जीया
है। जो हमने युगों पहले ''सर्च`` किया था आप उसी पर ''रिसर्च`` कर रहे हैं,
और बेकार ही जलन के मारे मर रहे हैं।
मानता हूँ कि आप अमेरिकन हैं तो अमेरिकन खरीदिए आपका लुभावना नारा है, इस
नारे से त्रसित आपका नागरिक बेचारा है। आप नारा लगाते हैं तो कुछ अमेरिकन
अपने देश में भी तो बनाइए, हर आवश्यकता की चीज चीन, कोरिया और भारत से मत
मँगवाइए। पहले अपनी जरूरतों को पूरा करने वाला सामान तो बनाइए, बाद में
विदेशी न खरीदने की बात चलाइए। आप तो हथियारों के अतिरिक्त कुछ बनाते नहीं,
विदेशों में भी हथियार बेचने के अतिरिक्त कुछ और ले जाते नहीं। लोग यदि
अपने बनाये हथियार आप ही खरीदेंगे, तो उनका प्रयोग अपनों पर ही करना तो
सीखेंगे। यही कारण है कि आपके स्कूली बच्चे बस्तों में पिस्तौल साथ ले जाते
हैं और अपने सहपाठियों और अध्यापकों पर गोलियाँ चलाते हैं। आपके
विश्वविद्यालय हमारी प्रतिभाओं के सहारे हैं, अस्पताल में अधिकांश डाक्टर
हमारे हैं। आप दवाओं के नाम पर बीमारी बेच रहे हैं, दुनिया भर से केवल डालर
सहेज रहे हैं। आप आने वाली नस्लों को बना रहे हैं बीमार, इसीलिए तो हम फिर
से योग सिखाने के लिए हुए हैं तैयार।
सोचिए कि आपके देश में क्यों परिवार टूट रहे हैं, समय से पहले ही क्यों एक
दूसरे के साथी छूट रहे हैं। क्यों आपकी मातायें बच्चों के लिए लोरी नहीं
गाती, क्यों उनकी दादी नानी उन्हें कोई कहानी नहीं सुनाती। इसके अभाव में
रूक रहा है उनका मानसिक विकास, लोगों का एक दूसरे के प्रति ही नहीं परिवार
की संस्था तक से टूट रहा है विश्वास। सभी तो आत्मकेन्द्रित हो गए हैं, अपने
अपने बिल खोद भीतर छिप कर सो गए हैं। हम पर कोई प्रतिबंध लगाना समस्या का
समाधान नहीं है, हमारा युवक अब आपके देश की स्थायी पूंजी वाला नागरिक है,
कोई लुटेरा अथवा मेहमान नहीं है।
१५ नवंबर २०१० |