सप्ताह
का
विचार- जबतक कष्ट सहने
की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत
कष्ट की धूप में ही बनती है। - विनोबा |
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अनुभूति
में-
रावेंद्रकुमार रवि, हृदय नारायण, सुनील कुमार, तनहा अजमेरी और
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ। |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.एस.ए से
उत्कर्ष राय की कहानी
श्यामली
श्यामली ने
काँपते हाथों से अँगूठी को उठा लिया उस पर जड़ा छोटा सा हीरा,
अपनी चमक से अंधेरे कोने को दमका रहा था। श्यामली बार बार
अँगूठी को देखे जा रही थी। पता नहीं कब बीते हुए दिनों की याद
चल चित्र के समान आँखों के आगे उतरने लगी।
“मैडम मैडम क्या आज मुख्य अतिथि को फूल देने के लिये मैं चुनी
जाऊँगी?” श्यामली ने अपनी कक्षाध्यापिका से पूछा था
“अरे नहीं, मैंने दीपिका को चुना है।“ कक्षाध्यापिका ने प्यार
से श्यामली को गाल पर थपकी देते हुए कहा।
“पर दीपिका तो पहले भी फूल दे चुकी है।“
“तुम अभी नहीं समझोगी, गोरे गोलमटोल बच्चे अधिक प्यारे लगते है
न।“ शायद कक्षाध्यापिका की कही बात ही सबसे पुरानी होगी। जब उसे
अहसास हुआ कि वह गोरी नहीं है।
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शरद तैलंग का व्यंग्य
झूठे का बोलबाला
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सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक
का संस्मरण
छोड़ गए नंदन जी हमको
*
पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे से जानें
नवदुर्गा के औषधि रूप
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गृहलक्ष्मी
के साथ बिताएँ
स्फूर्तिदायक सुबह
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पिछले सप्ताह
गाँधी
जयंती के अवसर पर
राजेंद्र त्यागी का व्यंग्य
बापू के बंदर राष्ट्र की
मुख्यधारा में
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डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव
का आलेख
मूर्तियों के आगे की दवा और दंश
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प्रणय पंडित का आलेख-
गांधी जी के
अहिंसक परमाणु बम का प्रदर्शन स्थल
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समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों
के स्तंभ गौरवगाथा में मार्कण्डेय की कहानी
हंसा जाई
अकेला
वहाँ तक तो
सब साथ थे, लेकिन अब कोई भी दो एक साथ नहीं रहा।
दस-के-दसों-अलग खेतों में अपनी पिंडलियाँ खुजलाते, हाँफ रहे
थे।
”समझाते-समझाते उमिर बीत गयी, पर यह माटी का माधो ही रह गया।
ससुर मिलें, तो कस कर मरम्मत कर दी जाए आज।“ बाबा अपने फूटे
हुए घुटने से खून पोंछते हुए ठठा कर हँसे। पास के खेत मे फँसे
मगनू सिंह हँसी के मारे लोट-पोट होते हुए उनके पास पहुँचे।
”पकड़ा तो नहीं गया ससुरा? बाप रे.... भैया, वे सब आ तो नहीं
रहे हैं?“ और वह लपक कर चार कदम भागे, पर बाबा की अडिगता ने
उन्हें रोक लिया। दोनों आदमी चुपचाप इधर-उधर देखने लगे।
सावन-भादों की काली रात, रिम-झिम बूँदें...पूरी कहानी पढ़ें... |