सप्ताह
का
विचार- मस्तिष्क
इंद्रियों से महान है, शुद्ध बुद्धि मस्तिष्क से महान है,
आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से महान कुछ भी नहीं।
-शिवानंद जी |
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अनुभूति
में-
आचार्य संजीव सलिल, संजय ग्रोवर, रामेश्वर कांबोज हिमांशु,
सरदार कल्याण सिंह और संगीता गोयल की रचनाएँ। |
सामयिकी में-
सूखे पर विजय प्राप्त कर पूरे गाँव को हरा भरा करने वाले जादू
की अनोखी कहानी श्री पद्रे की कलम से
धरती की गोद में पानी। |
रसोईघर से सौंदर्य सुझाव-
तरबूज़ के रस को चेहरे पर लगाएँ और सूख जाने पर धो दें। इससे
दाग धब्बे दूर होते हैं तथा त्वचा साफ़ होकर निखर जाती है। |
पुनर्पाठ
में- समकालीन कहानियों के अंतर्गत १६ जून २००२ को प्रकाशित संतोष गोयल की कहानी
घर। |
क्या आप जानते हैं? भारत में पहला यूरोपीय उपनिवेश कोच्चि में
पुर्तगालियों ने स्थापित किया, १५३० तक यह भारत में उनकी राजधानी
बना रहा। |
शुक्रवार चौपाल- इस सप्ताह चौपाल पर पढ़ी गई दो उर्दू
कहानियाँ- कृष्णचंदर की वैक्सिनेटर और सआदत हसन मंटो की टोबा टेक
सिंह।
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-१० में मेघ बजे शीर्षक के अंतर्गत, जारी है वर्षा
से संबंधित गीतों का प्रकाशन।
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हास परिहास
१ |
१
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
साहित्य संगम में
पाकिस्तान से अमर जलील
की उर्दू कहानी का हिंदी रूपांतर
तारीख का कफन
नमाजियों की आखिरी लाइन में से एक शख्स अचानक उठ खड़ा हुआ वह
काले रंग का था। उसके बाल घुँघराले आँखें चमकदार लेकिन अंदर
धँसी हुई और चेहरा सपाट था। वह एक मजबूत काठी का नौजवान था।
उसके कपड़ों पर जगह जगह पैबंद लगे हुए थे। जिंदगी का बोझ उठाते
और सहते उसकी रीढ़ की हड्डी कमान की तरह टेढ़ी हो गई थी। उसने
अपनी जगह से उठकर एक उचटती निगाह ईदगाह पर डाली।
ईदगाह तरह तरह के लोगों से भरी हुई थी। ईद की नमाज शुरू होने
में बस कुछ घड़ियाँ बाकी थीं। नए उजले और भड़कीले लिबास में
लोग आदर से मौलवी साहब की तकरीर सुन रहे थे और ऊँघ रहे थे।
मौलवी साहब बहुत जोश में थे। वे कभी बाँहें फैलाकर कभी गिराकर
और कभी धीमी आवाज़ में तकरीर कर रहे थे। वे लोगों में सोए हुए
ईमान की भावना को जगाने की कोशिश कर रहे थे। ...पूरी कहानी पढ़ें।
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मधुलता अरोड़ा का व्यंग्य
ये साहित्य
समारोह
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डॉ. प्रतिभा अग्रवाल का
ललित निबंध-
घर
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संस्कृति में पितृपक्ष के अवसर
पर विशेष-
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व
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डॉ. शेरजंग गर्ग का संस्मरण
एक था टी हाउस |
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पिछले सप्ताह
अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
रोके रुके न हिंदी
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श्याम नारायण का आलेख
हिंदी रंगमंच प्रयोग और परंपरा
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प्रौद्योगिकी में
रश्मि
सिंह से जानें- नेटबुक क्या है
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हिंदी दिवस के अवसर पर-
संकलित सामग्री हिंदी दिवस समग्र में
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समकालीन कहानियों में
भारत
से
जयनंदन की कहानी
छोटा किसान
दादू महतो
अपने खेत की मेंड़ पर गुमसुम से खड़े हैं। करीब सौ डेग पर एक
विशाल बूढ़ा बरगद खड़ा है जो इस तरह झकझोरा जा रहा है मानो आज
जड़ से उखाड़ दिया जायेगा। साँय-साँय बेढंगी बयार आड़ी-तिरछी
बहे जा रही है, जैसे एक साथ पुरवैया, पछिया, उतरंगा और दखिनाहा
चारों हवाएँ आपस में धक्का-मुक्की कर रही हों। प्रकृति जैसे
अनुशासनहीन हो गयी हो, हवाएँ गर्म इतनी जैसे किसी भट्ठी से
निकलकर आ रही हो। भादो महीने में यह हाल! इस साल फिर सुखाड़ तय
है। हवा के शोर में उनके बेटों के प्रस्ताव चीखते से उभरने लगे
हैं उनके मगज में।
''अब खेती-बाड़ी में हम छोटे किसानों के लिए कुछ नहीं रखा है
बाऊ... घर-खेत बेचकर हमें शहर जाना
ही होगा। सोचने-विचारने में हमने बहुत टैम बर्बाद कर दिया।``
...पूरी कहानी पढ़ें। |