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२८. ६. २०१०

सप्ताह का विचार-कामनाएँ समुद्र की भाँति अतृप्त हैं। पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है। -स्वामी विवेकानंद

अनुभूति में-
दिवाकर वर्मा, शरद तैलंग, शैलेन्द्र चौहान, श्यामल सुमन और प्रियव्रत चौधरी की रचनाएँ।

सामयिकी में- भारत की लोक कलाओं में से एक कठपुतली कला के विषय में फ़िरदौस खान का आलेख- बोल री कठपुतली

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - उड़द की छिलके वाली दाल को उबालकर उसके पानी से बाल धोने पर वे सुंदर और आकर्षक दिखाई देते हैं।

पुनर्पाठ में- विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत १६ जून २००४ को प्रकाशित कमलेश्वर  की कहानी-- राजा निरबंसिया।

क्या आप जानते हैं? भारत विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता है। यहाँ विश्व की ३०% चाय उगती है जिसमें से २५% यही खप जाती है।

शुक्रवार चौपाल- अंततः प्रदर्शन का दिन आ ही गया। इस कार्यक्रम का विज्ञापन जोरदार हुआ था। टीवी और रेडियो पर दिये जानेवाले विज्ञापन... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-९ में नवगीत भेजने की अंतिम तिथि अब ३० जून है। जिन्होंने अभी तक रचना नहीं भेजी उनके लिये स्वर्ण अवसर।


हास परिहास
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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा तिवारी की कहानी निर्विकल्प

''सुनिए, आप निशा आन्टी हैं न?
अपना नाम सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा। डाक्टर वर्मा के क्लीनिक को उसने कुछ दिन पहले ही जूनियर डाक्टर के रूप में ज्वाइन किया था। डाक्टर मिसेज वर्मा मेरी फेमिली डाक्टर थीं। मैं उनके क्लीनिक में रूटीन चेकअप के लिये आई थी।
''हाँ डाक्टर मेरा नाम निशा ही है, लेकिन''
''आप मेरी मम्मी को जानती हैं न? सविता माथुर। वो तो आपकी दोस्त हैं न?''  एक ही साँस में वह यह सब कह गई। मैं समझ नहीं पाई कि उसने मुझसे कोई सवाल पूछा या जवाब दिया।
''अच्छा आप सविता की बेटी हैं? मुझे जानकर बेहद खुशी हुई।''
''आपको उनके बारे में लेटेस्ट खबर पता है?'' इसके पहले कि मैं सविता के बारे में कुछ पूछ पाती उसने खुद ही प्रतिप्रश्न कर दिया। ''क्या खबर है? आप उनकी?
''मैं नेहा हूँ। उनकी मँझली बेटी।'' ...  पूरी कहानी पढ़ें
*

राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य
राजनीति में पालतू
 
*

राकेश कुमार सिन्हा रवि से सुनें
गाथा वटवृक्ष की
*

आज सिरहाने- मिथिलेश्वर का
चर्चित उपन्यास- सुरंग में सुबह
*

भारतेंदु मिश्र के साथ रचना प्रसंग
दोहे की वापसी

पिछले सप्ताह
कमल विशेषांक में

मयंक सक्सेना का व्यंग्य
यथा राष्ट्र तथा पुष्प 

*

पंकज त्रिवेदी से जानकारी
कमल के पौराणिक उल्लेख
*

अर्बुदा ओहरी का आलेख
संस्कृति की साँसों में कमल
*

पूर्णिमा वर्मन के शब्दों में
डाक टिकटों पर काया कमल की

*

मकालीन कहानियों में भारत से
पावन की कहानी शिवरतन स्वामी और सुनयना

मैं आनन्द बाग, वाराणसी के श्री सारभूत मठ में रहता हूँ। इस मठ के कर्ता-धर्ता मेरे गुरूजी श्री सदानन्द जी स्वामी हैं। मुख्य व्यक्तियों में गुरूजी के अलावा श्री सजीवानन्द जी स्वामी और श्री तेजोमय जी स्वामी हैं। मैं मठ के विभिन्न कार्यों का संचालन व प्रबन्धन करता हूँ। आज गुरूजी एक विशेष पूजा पर बैठने वाले हैं जो सन्ध्या से आरम्भ होकर भोर तक चलेगी। इस पूजा में अन्य सामग्रियों के अलावा जो विशेष चीज चाहिए, वे हैं कमल पुष्प, डंठल सहित अट्ठारह कमल पुष्प, जिनका प्रबन्ध गुरूजी के एक भक्त द्वारा किया गया है जो लखनऊ में रहता हैं। इस पूजा का सारा प्रबन्ध मेरे जिम्मे है। अभी कुछ देर पहले जो बंडल नन्दन पुष्प विक्रेता ने भेजा है, वह मेरे सामने खुला रखा है... लेकिन आश्चर्य...  पूरी कहानी पढ़ें

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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