अगर आप यह समझते हैं कि कमल भारत
का राष्ट्रीय पुष्प इसलिए है कि यह हमारी सभ्यता और संस्कृति में गहरा पैठा है और
हमारे लिए गर्व का विषय है तो आप गलत सड़क पर जा रहे हैं। राष्ट्रीय फूल चुनते समय
गर्व और गरिमा तथा सभ्यता व संस्कृति जैसे भारी भरकम शब्दों की आवश्यकता नहीं होती
है। उसके लिए देश का चरित्र देखा जाता है। राष्ट्र का चरित्र जिस प्रकार का होता है
उसी के आधार पर राष्ट्रीय फूल का चुनाव किया जाता है। आइए अब यह देखें कि कमल के
फूल का चरित्र किस प्रकार भारतीय जनता के चरित्र से मिलता जुलता है।
कमल के भी सभी अन्य पौधों की तरह पाँच हिस्से होते हैं- जड़, तना, पत्र, पुष्प और
फल। कमल के ये सारे हिस्से भारतीय चरित्र को विशेष अर्थ में प्रकट करते हैं। कमल की
जड़ गीली मिट्टी में रहती है। भले ही दूर तक फैली हो उसको निकाल फेंकना आसान है।
हमारी जड़ें भी विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा निरंतर नष्ट की जाती रही हैं और आज भी
की जा रही हैं। कमल का तना है लचीला, कहने को तो तना है पर बेचारा केवल फूल की
सुंदरता से मोहित होकर बेवजह उसका भार सहता है, लहराता है ठोकरें खाता है तना नाम
होने के बाद भी नत ही रहता है। किसी ने कहा हैं कि पत्ता पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा
जाने है....कमल का पत्ता भी जानता है कि पूंजीवादी युग में उसके त्याग और कष्ट को
कोई समझेगा नहीं सो ज़माने की चाल समझ बेशर्म हो गया है, लपेट ली है अपने ऊपर मोम
की चादर और ताने गालियों से बेफिक्र सो रहा है। फल तो वैसा ही होगा जैसा कर्म होगा,
जब जड़ और तने के कर्म ही कुछ ठोस नहीं तो फल कहाँ से बेहतर हो सकता है उसमें तो
छेद ही छेद होते हैं। कमल के फूल के क्या कहने ज़ाहिर है कि जड़ तो जड़ है यानि
मूर्ख, तने के सर पर वह बैठा ही है, और पत्ता अपनी ही दुनिया में मोम की चादर ताने
सो रहा है तो फूल तो फूलेगा ही....और फूल भी रहा है।
अगर अभी भी बात का खुलासा नहीं हुआ तो विस्तार से जानें। राष्ट्र पूर्ण पूंजीवादी
व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है और कमल है इसका सच्चा प्रतिनिधि है। कमल के पौधे में जड़
प्रतिनिधि है आम आदमी की, या कह लें कि सर्वहारा की जो दिन-रात मेहनत करता है पर
उसे न तो कोई जानता है न ही उसका कोई सुदृढ़ आधार है फलतः वह सर तक डूबा रहने के
बावजूद श्रमरत है। तना है नौकरशाही जो फूल को सर पर लिए खड़ा है और नत होने के बाद
भी तने होने का नाटक कर रहा है। पत्ता तथाकथित बुद्धिजीवियों और क्रांतिकारियों का
प्रतीक है, लेखक हैं, कवि हैं, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हैं जो दिखने में तो
समाजवादी हैं पर निष्क्रिय हैं, चढ़ते पानी से भी बेअसर है, जड़ों से दूर हैं। फल
ज़ाहिर है छिद्रयुक्त होना ही है, छिद्र यानी दोष और कमियों से भरपूर। वह किसी की
भूख नहीं मिटा सकता उससे केवल प्रजनन ही हो सकता है...सो हो रहा है...और उपभोक्ताओं
का प्रजनन। फिर है फूल, यानी कमल पुष्प जो प्रतीक है पूंजीवाद का मठाधीशी का,
राजनीतिज्ञों का, सरकार का जो जड़ों का शोषण कर रहे हैं। तनों के मस्तक दल कर
अभिमान में चूर अनेक पंखुड़ियाँ फैलाए अपनी सुंदरता का गुणगान कर रहे है। दुनिया
मोहित हो रही है, आकर्षण में पागल हुई जा रही है उसके रूप से। फूल निश्चिंत है
जानता है पत्ते कुछ नहीं बोलने वाले हैं। बुद्धिजीवी निष्क्रिय हो चुके हैं,
समाजसेवी हो गए हैं स्वयंसेवी, लेखक आपसी गाली गलौज को साहित्य में बदल रहे हैं,
कवि उस पर प्रशंसात्मक रचनाएँ लिख लिखकर उसे पटाने में लगे हैं जबकि दीवानेपन के
सौदागर पत्रकारों पर यानी पत्तों पर बेशर्मी का मोम चढ़ गया है जड़ के आँसू अब उनको
नहीं भिगोते हैं। देखा आपने किस प्रकार भारत का चरित्र कमल के फूल से मिलता है।
कमल का एक नाम पंकज भी होता है, जिसका अर्थ होता है पंक यानी कि कीचड़ में उत्पन्न
होने वाला। यहाँ भी कमल का राष्ट्रीय फूल होना सार्थक है क्योंकि कमल वहीं पैदा हो
रहा है जहाँ कीचड़ है और भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था से ज़्यादा
कीचड़ कहाँ हो सकती है। देश में गरीबी की कीचड़ है जो हर साल बढ़ रही है,
भ्रष्टाचार की कीचड़ है, खूब अपराध है, हर मसले पर खूब राजनीति है और
साम्प्रदायिकता की कीचड़ भी है सो कमल दल के फूलने के लिए आदर्श परिस्थितियाँ हैं
और कमल ठीक निराला के कैपिटलिस्ट गुलाब की तरह इतरा रहा है, मदमस्त है कीचड़ के
बीच। जैसे जैसे कीचड़ बढ़ रही है कमल के फूलने के अवसर भी बढ़ रहे हैं। कमल रूपी
नेता-दल, कारोबारी दल...और उनका पूरा सिंडीकेट खूब फूल रहे हैं। मिलीजुली सरकार भी
तो कमल का ही एक रूप ही है। अलग अलग आकार की कई पंखुड़ियाँ मिल के बना रही हैं एक
सरकार...
आप आपत्ति कर सकते हैं कि भई काली शक्तियों को ही कमल क्यों कहा...वो तो सुंदर फूल
है तो जनाब भौतिकता की प्रशंसा ही काली शक्तियों की आराधना है। और कमल को देखिए
सारी पंखुड़ियाँ एक साथ एक गुच्छे में सुंदरता बिखेरती हैं और राज करती हैं और
चिरकाल की परम्परा से कब तथाकथित सत्यवादी और ईमानदार लोग एक हो पाए हैं गुच्छे
में। गुच्छे में बस दुष्ट ही पाए जाते हैं जो देश में चारों ओर बिखरे हैं और राज कर
रहे हैं। आपको बताते चलें कि आज़ादी की पहली लड़ाई यानी कि अठारह सौ सत्तावन के
स्वाधीनता संग्राम में क्रांति के दो संकेत थे, रोटी और कमल का फूल और आज कमल
पूंजीवादी है और रोटी पूंजीवादी की जेब में कुल जमा आम आदमी को कमल की ज़रूरत नहीं
है और रोटी उसे मिलती नहीं है।
खैर कमल सुंदर है और लोग उसके रूप के दीवाने हैं, प्रेयसी के नयनों को कमल कहते हैं
और उन पर ग़ज़ल कहते हैं। सुंदरता पूंजीवाद है ठग रही है लोगों को और फूल रही है
मोहिनी रूप में... ठीक वैसे ही जैसे कमल फूल रहा है हर सुबह और मंडरा रहे हैं उसके
मधु पर भंवरे। मधु के लालच में कोष बंद होते ही फंस जा रहे हैं माने न मानें प्रसाद
जी ने जब अरुण यह मधुमय देश हमारा पंक्तियाँ लिखी थीं तब उनका तात्पर्य इसी मधु से
था। कमलों पर बलिहारी है दुनिया। वही दुनिया जिसको बाहरी सौंदर्य पर बलिहारी होने
की आदत है। पूजा जाता है कमल का पुष्प और उसको सींचने वाली जड़ें मिट्टी में पड़ी
रहती हैं वैसे ही कमल हैं गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ, और उनसे ज़रा ही दूर स्थित हैं
झुग्गियाँ जिनके निवासी अट्टालिकाओं में बसनेवालों के घर नौकरी कर जीवन यापन करते
हैं पर स्वयं मिट्टी में ही पड़े रहते हैं।
विकास का प्रतीक हैं चुने हुए कमल के फूल, न कि तीस करोड़ भूखे जो जड़ हैं। क्या
कभी जड़ में चेतना जागेगी? सवाल मुश्किल है पर हाँ कमल राष्ट्रीय पुष्प है। याद
रखना राष्ट्र के प्रतीक चिन्ह में भी स्थित है कमल, जो चारों ओर फल फूल रहा है और
राष्ट्र की ज़रूरत है रोटी जो चारों ओर चाहिए पर बड़ी मुश्किल से मिल रही है। जब तक
यह व्यवस्था जारी है तब तक सिर्फ गौरव से काम चलाएँ और जितनी रोटी मिल जाए उसे बाँट
कर खाएँ, ठीक उसी प्रकार जैसे कमल पर सवार नेता देश को बाँटकर खा रहे हैं। राष्ट्र
को सलाम, राष्ट्रीय पुष्प को सलाम और याद रखें- यथा राष्ट्र तथा पुष्प।
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