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साहित्यिक निबंध

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कमल के पौराणिक उल्लेख
पंकज त्रिवेदी


कमल के फूल का सौंदर्य प्रकृति अनुपम उपहार तो है ही भारतीय साहित्य और संस्कृति में भी इसको गहन निष्ठा और भावनात्मक तन्मयता के साथ स्वीकारा गया है।

भगवत पुराण
भगवत पुराण जो अट्ठारह पुराणों में से एक है, में सृष्टि के प्रारंभ का एक रोचक वर्णन मिलता है जिसमें कमल के फूल से सृष्टि की उत्पत्ति की कथा कही गई  है। एक बार भगवान विष्णु को विचार आया कि ऐसी दुनिया रचाई जाए जिसमें पृथ्वीलोक पर सभी मनुष्य का जीवन संभव हो। उन्होंने अपनी
नाभि में से कमल की उत्पति की और कमल ब्रह्माजी की उत्पति हुई और ब्रह्माजी के द्वारा ही पूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ।

सृष्टिकर्ता की खोज
एक अन्य कथा में कहा गया है कि एक बार ब्रह्माजी को अभिमान आ गया और उन्होंने ने सोचा की इस समग्र विश्व का रचयिता तो मै हूँ। मगर मैं किसके आधार पर हूँ, ये भी तो देखूँ ! वे स्वयं कमल के फूल विराजमान थे। उन्होंने सोचा कि यह कमल का फूल किस आधार पर है? उसी कशमकश में ब्रह्माजीने सूक्ष्म रूप धारण किया और कमल की डंडी में प्रवेश कर गए। ब्रह्माजी धीरे धीरे कमलनाल में उतरने लगे। उन्हें पता भी न चला की कितना समय बीत गया है। लाखों-करोड़ों वर्षों तक वह कमलनाल में ही चलते रहे मगर कमलनाल का मार्ग खत्म ही न हुआ। आखिर ब्रह्माजी कमल की उस कमलनाल में ही फँसे हों ऐसा एहसास हुआ। वह अन्दर ही अन्दर घबराने लगे। उन्हें कमल के उस फूल की नाल का अंतिम छोर मिलना तो दूर की बात, बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा था। जब हम ईश्वर का मूल देखने की कोशिश करे तो कभी भी सफल नहीं हो पाते। यह प्रतीकात्मक बात है। जिस ईश्वर ने या किसी ऐसी परम शक्ति है, जिसने ये समग्र सृष्टि के रचयिता का भी
निर्माण किया है, उसे हम कैसे ढूँढ पायेंगे? आखिरकार थके-हारे ब्रह्माजी डंडी से बाहर तो निकले और देखा तो अपने ही उसी कमल के आसन पर खुद को पाया। मन ही मन उन्हों ने प्रायश्चित किया और अपने अभिमान का नाश किया।

अष्टदल कमल
भागवत के एकादश स्कंध में वर्णित कंस की कथा में कहा गया है कि जब कंस नामक अधम राजा को यह पता चला कि उसकी मृत्यु देवकी और वासुदेव की संतानों द्वारा होगी तब उसने उनको कारागार में डाल दिया और उनके आठवें पुत्र की प्रतीक्षा करने लगा जिसके हाथों कंस की मृत्यु की भविष्यवाणी हुई थी। तब नारद ने कंस को एक अष्टदल कमल दिखाकर कहा, "इस कमल के फूल को गौर से देख। यह अष्टदल कमल है। इन में से किसी भी दल पर अँगुली रखकर तुम गिनती शुरू करो तो आठवाँ क्रम कहीं भी आ सकता है और आठवाँ क्रम तो हर बार बदल सकता है। इस प्रकार तुम दैवी भविष्यवाणी का प्रयोग अपने लाभ के लिए नहीं कर सकते न ही उसे झूठा बना सकते हो। इतिहास साक्षी है कि बाद में
सभी संतानों की हत्या करने के बावजूद कंस की मृत्यु देवकी की आठवें पुत्र के द्वारा ही हुई। यह कथा का एक अन्य प्रतीकात्मक पक्ष भी है। देवकी के पहले पुत्र का नाम कीर्तिमान था। इसका एक अर्थ यह है की जो कीर्ति के लिए दौड़ता है और अपने मान-सम्मान बढ़ने के लिए अधम कार्य करता है उसका नाश हो जाता है।

विष्णु पुराण
सौंदर्य का वर्णन करते हुए पुराणों में कमल का बार बार नाम लिया गया है। उसे सौंदर्य और कोमलता का प्रतीक मानते हुए विष्णु पुराण के एक श्लोक में देवी लक्ष्मी के लिए लिखे गए एक ही श्लोक में पाँच बार कमल का प्रयोग किया गया है-
पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥
कमल आसन वालीं, कमल जैसे हाथों वालीं, कमल के पत्तों जैसी आँखों वालीं, कमल जैसे सुंदर मुख वाली और कमल की नाभि वाले भगवान विष्णु की प्रिय देवी मैं आप की वन्दना करता हूँ।

पद्म पुराण
पद्म पुराण का तो नाम ही कमल के नाम पर रखा गया है। चूँकि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान नारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पद्म पुराण की संज्ञा दी गई है। इस पुराण के पाँच खंड और ५५,००० श्लोकों में भगवान विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ, भगवान श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप, तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है।

कमल का जन्म
पुराणों में कमल के जन्म की भी अलग अलग कथाएँ मिलती हैं। इसकी सबसे अधिक प्रचलित कथा समुद्र मंथन की है जिसमें कहा गया है कि जब देवों और असुरों द्वारा समुद्र का मंथन किया गया तब जो चौदह रत्न निकले उसमें से एक कमल पर विराजमान लक्ष्मी थीं। इसके आधार पर कमल की उत्पत्ति समुद्र के गर्भ से मानी गई है। भगवत पुराण में कहा गया है कि सृष्टि की रचना की इच्छा करते ही विष्णु की नाभि से एक कमल की रचना हुई जिस पर ब्रह्मा विद्यमान थे। इस प्रकार विष्णु से कमल की उत्पत्ति मानी गई है जबकि शिव पुराण में वर्णित एक कथा में कमल के फूल की उत्पत्ति शिव के बीज से मानी गई है।

कुल मिलाकर कमल का फूल हमारे लिए पौराणिक धरोहर है वह कोमलता, सौंदर्य और पवित्रता का प्रतीक भी है। पुराणों से प्रभावित होकर भारत के समस्त भारतीय संस्कृत साहित्य में अनेक स्थानों पर कमल के फूल का वर्णन किया गया है। इसके पश्चात के पाली प्राकृत और हिंदी साहित्य में भी कमल के फूल को विशेष स्थान मिला है। साहित्य के अतिरिक्त इसका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व भी है। भगवान विष्णु की पत्नी महालक्ष्मी देवी का आसन तो कमल का फूल है ही,  कला, संगीत और ज्ञान की देवी माता सरस्वती के लिए भी कमलासना सरस्वती शब्दों का उपयोग होता है और उन्हें श्वेत कमल के ऊपर बैठे हुए चित्रित किया जाता है।

२१ जून २०१०

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