सप्ताह का विचार-
जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है,
यह केवल
अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। -विवेकानंद |
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अनुभूति
में-
देवेंद्र शर्मा इन्द्र, दिनेश ठाकुर, रमेश प्रजापति, रामनिवास
मानव और डॉ. पद्मा सिंह की रचनाएँ |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से
ज्ञान प्रकाश विवेक
की कहानी-
मोड़
मुकदमा दो
साल तक चला।
आखिर पति-पत्नी में तलाक हो गया।
तलाक के पसःमंजर बहुत मामूली बातें थीं। इन मामूली बातों को
बड़ी घटना में रिश्तेदारों ने बदला। हुआ यों कि पति ने पत्नी
को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए। पत्नी ने इसके जवाब में
अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका। सैंडिल का एक सिरा पति के सिर
को छूता हुआ निकल गया। मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने
इसे अपनी तौहीन समझा। रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना
दिया। न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे
खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली
औरत न वफादार होती है न पतिव्रता। बुरी बातें
चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती हैं। सो, दोनों तरफ खूब आरोप
उछाले गए। ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का
वॉलीबॉल खेल रहे हैं। चुनांचे, लड़के ने लड़की के बारे में और
लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।
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नरेन्द्र कोहली
का व्यंग्य
उदारता
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नरेश पंडित व
सुनील राणा के साथ देखें-
मंडी का शिवरात्रि मेला
*
डा. दीपक नौगाई
से जानें-
शिवरात्रि-पर्व की महिमा
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रसोईघर में-
पुलावों की बहार |
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पिछले सप्ताह
रामेश्वर
काम्बोज 'हिमांशु' का व्यंग्य-
लूट सके तो लूट
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डॉ.
सत्येन्द्र श्रीवास्तव का दृष्टिकोण
हिंदी के ये उत्सव ये सम्मेलन
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विज्ञानवार्ता
में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप
का आलेख- हाय रे दर्द
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समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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समकालीन कहानियों में
भारत से
डॉ. श्यामसखा 'श्याम'
की कहानी
आखिरी बयान
मैंने जिन्दगी भर किसी से कुछ नहीं कहा, आज कह रहा
हूँ, अगर आप सुन लें तो मेहरबानी होगी। वैसे भी मैं
आज नौकरी से रिटायर हुआ हूँ, पूरे साठ साल का होकर। साठ साल तक जो आदमी पहले माँ-बाप
की, फिर बीवी-बच्चों, सहकर्मियों की सुनता आ रहा हो, उसे इतना हक तो है कि वह आज
कुछ कह सके। फिर आपने खुद ही मुझे दो शब्द कहने के लिए, मेरे विदाई समारोह के मंच
पर बुलाया है। मेरे खयाल से जिन्दगी सचमुच एक दुर्घटना है
और किसी के लिए हो ना हो कम से कम मेरे लिए तो जरूर है। दोस्तों!
हालाँकि मैं नहीं जानता, आप में से कितने मेरे दोस्त हैं शायद कोई भी न हो। लेकिन
आज सबने अपने भाषण में मुझे अपना दोस्त और एक अच्छा आदमी बतलाया है, जो शायद वक्त
की नजाकत थी, वक्त का तकाजा था, क्योंकि हम हर दिवंगत को अच्छा ही कहते हैं यही
रिवाज है
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