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कलम गही नहिं हाथ  

 

 

 

 

दुनिया रंग रंगीली

बहुत दिनों से इमारात के बारे में कुछ नहीं लिखा। यहाँ वर्षा का कोई मौसम नहीं होता। लेकिन सर्दियों में एक सप्ताह बारिश होती है। कभी तेज़ कभी बूँदा बाँदी। हालाँकि साल भर की यह ज़रा सी बारिश भी लोगों को अच्छी नहीं लगती। एक तो इसलिए कि इससे सर्दी बढ़ जाती है और तापमान दस डिग्री या उससे नीचे उतर जाता है जो इस वसंत ऋतु जैसी मोहक सर्दियों में बिलकुल भी नहीं भाता दूसरे सजे सजाए बगीचे सत्यानाश हो जाते हैं।

यह मौसम जिसमें बाहर धूप में बैठना, सड़कों पर टहलना और बाज़ार में घूमना अच्छा लगता है, पानी की किचपिच से हाल बेहाल कर देता है। वाहनों की गति मंद पड़ जाती है, सड़कों पर जाम लग जाते हैं और दैनिक जीवन रुका रुका सा मालूम होता है। कल शुक्रवार था यानि सप्ताहांत की छुट्टी का दिन। सारे दिन बादल छाए रहे और हवा चलती रही। घूमने घामने वाले लोग डरते डरते घर से निकले पर दिन खुशी से बीत गया रात को तेज़ बारिश हुई। आज सुबह बारिश रुकी रही। बादल भी काफ़ी ऊँचे थे, सूरज नहीं दिख रहा था पर आसमान पूरा ढँका हो ऐसा नहीं था। सड़क पर निकली तो देखा बहुत सी कारों ने बत्तियाँ जला रखी हैं। पहले जब एक कार ऐसी दिखी तो मुझे लगा कि बत्ती गलती से जली रह गई है पर जब अनेक गाड़ियों की हेडलाइट चालू दिखी तो मैंने किसी से पूछा- आज इतने सारे लोग बत्तियाँ जलाकर गाड़ी क्यों चला रहे हैं? उत्तर मिला- अँधेरा सा है न इसी लिए। कमाल है! यहाँ पर ज़रा से बादल घिरते ही लोगों को इतना अँधेरा नज़र आने लगता है कि कार की बत्ती जलानी पड़े। चार-पाँच साल पहले अपनी इटली यात्रा की याद हो आई। खुला मौसम था और तापमान पच्चीस-छब्बीस डिग्री सेल्सियस के आसपास था। इमारात में इस तापमान को वसंत की तरह सुहावना माना जाता है पर हमारी अमेरिकी सहयात्री ने अपनी सामान्य ऐनक निकालकर डिब्बे में रखी और बड़े शीशों वाली काली ऐनक निकालकर बोलीं- उफ़् इतनी तेज़ धूप है कि आँखें खोली नहीं जातीं। मैंने मन ही मन सोचा कि अगर कहीं ये मई में भारत या जुलाई में इमारात पहुँच जाएँ तो कैसा अनुभव करेंगी?

अलग अलग स्थानों पर रहते हुए हमारी सोच और सहनशक्ति में काफ़ी अंतर आ जाता है। यह सहनशक्ति मौसम के स्तर पर भी हो सकती है और शिक्षा तथा संस्कृति के स्तर पर भी। इसके आधार पर कम, अधिक, सही और गलत का सूचकांक बहुत ऊपर या नीचे खिसकता रहता है। इसीलिए तो कहा गया है कि दुनिया रंग रंगीली...

पूर्णिमा वर्मन
८ फरवरी २०१०
 

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