अनुभूति
में-
मुकुट बिहारी सरोज, श्यामल सुमन, जया नर्गिस, मधुछन्दा और त्रिलोक
सिंह ठकुरेला की रचनाएँ |
कलम गही नहिं हाथ-
तारों को ऊपरवाले ने होशियार हाथों
से आसमान में चिपकाया है वे टूटते नहीं लेकिन जब टूटते हैं तो ....
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रसोई
सुझाव-
पालक पनीर बनाने से पहले पालक की पत्तियों को एक चम्मच चीनी वाले पानी
में आधे घंटे तक भिगोकर रखें, अधिक स्वादिष्ट बनेगा। |
पुनर्पाठ में - १६ सितंबर २००२ को साहित्य संगम के
अंतर्गत प्रकाशित यू. आर. अनंतमूर्ति की कन्नड़
कहानी का हिंदी रूपांतर
कामरूपी। |
क्या
आप जानते हैं?
कि भारत के वर्तमान
राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना पिंगली वैंकैया नामक एक युवक ने सन १९२१
में की थी। |
शुक्रवार चौपाल- गर्मी का मौसम है और चौपाल में आजकल चल रहे हैं छुट्टी के दिन। प्रारंभ होने की सूचना सदस्यों को ईमेल से दी जाएगी। |
नवगीत की पाठशाला में- इस माह नवगीत से संबंधित लेखों का
प्रकाशन जारी है और कार्यशाला-४ के विषय की घोषणा कर दी गयी है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से
ईश्वरसिंह चौहान की कहानी
कहानी
रति का भूत
अमावस की
काली रात ने गाँव को धर दबोचा था। चौधरियों के मोहल्ले में से
बल्बों की रोशनी दूर से गाँव का आभास करवाती थी। आठ बजते-बजते
तो सर्दी की रात जैसे मधरात की तरह गहरा जाती है। कहीं कोई
कुत्ता भौंकता तो कभी कोई गाय रंभाती पर आदमी तो जैसे सिमट कर
अपनी गुदड़ी का राजा हो गया हो। कभी-कभी बूढ़े जनों की खराशकी
आवाज़ आती थी। जसोदा ने ढीबरी जला दी। लखिया अभी तक घर नहीं
आया था। वैसे भी उसको कहाँ पड़ी थी जसोदा की... जब देखो तब
चौधरी हरी राम की बैठक में जमा रहता था। कई दिनों से अफीम भी
लेने लगा है। लखिया की ये बात जसोदा को पसंद नहीं। इसी बात पर
दोनों के बीच तू-तू मैं-मैं होती रहती हैं। दूर खेतों से सियार
की डरावनी आवाज़ सुनाई देने लगी तभी मोर चीखे जसोदा का कलेजा
दहल गया। रोटी को तवे से उतारते हुए आह भरी, ''हे राम! सब की
रक्षा करना कौन जाने क्यों आज की शाम उसे मनहूस लग रही थी।
अनिष्ट से पहले की खामोशी उसे डरा रही थी।
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अविनाश
वाचस्पति
का व्यंग्य
दाल गल रही है
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घर परिवार में अर्बुदा ओहरी के सुझाव
पर्यटन
और स्वास्थ्य
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कजरी तीज के अवसर पर भवानी प्रसाद द्विवेदी का
निबंध- झूला लागल कदंब की डारी
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रसोईघर में बरसात की विशेष मिठाई
अनरसे |
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पिछले
सप्ताह
स्वतंत्रता-दिवस विशेषांक में
नरेन्द्र कोहली
का व्यंग्य
खाली करनेवाले
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राजेन्द्र उपध्याय की कलम से
स्वतंत्रता की साधक सुभद्राकुमारी चौहान
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डॉ. के. एन. पी. श्रीवास्तव का आलेख
आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान
*
मिथिलेश श्रीवास्तव की
रचना
कला में आज़ादी के सपने
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समकालीन कहानियों के
अंतर्गत
रमाशंकर श्रीवास्तव की
व्यंग्य
कथा
इंडियागेट की बकरी
देश की बकरियों के भविष्य पर गंभीरता से विचार करने के लिए
दिल्ली में इंडिया गेट पर एक सभा हुई। तीन दिनों तक तंबू-टेंट
तने रहे। भाषण होते रहे, भोजन-पानी चलता रहा और पुलिसवाले भी
खड़े रहे। भारत के कोने-कोने से प्रतिनिधियों का आना जारी रहा।
प्रस्ताव में कहा गया कि बकरियाँ इस देश की अमूल्य पशुधन हैं।
राष्ट्र के सकल उत्पादन में बकरियों का योगदान तेरह अरब रुपए हैं।
बकरियाँ इस महान देश को हर साल पच्चानबे करोड़ लीटर दूध, उन्नीस
करोड़ किलोग्राम मांस और सात करोड़ किलो खाल देती हैं। उनकी संख्या
बारह करोड़ है। गांधी जी के समय से उन्हें महत्व मिलता आया है। वे
भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती हैं। अतः उनकी शक्ति को कम
न कूता जाए। यदि वे आंदोलन की राह पर चल पड़ें तो समूचे देश की फसल
को चर सकती हैं।
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