इस सप्ताह-
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से
राहुल ब्रजमोहन की कहानी
विनिवेश
मैंने
चाबी के छल्ले की तरह गोल-गोल रूमाल घुमाकर उमस में भीजते
जिस्म के साथ अपनापा निभाने की सतही कोशिश ही की थी, कि वह
पूछ बैठे, ''कितने घंटे का रन है जी उज्जैन तक?''
''बमुश्किल दो घंटे।'' कमोबेश हैरत भरे अंदाज़ में मैंने
जवाब दिया। आम तौर पर कम ही लोग मुझसे बातचीत करते हैं।
नौजवानों को मुझसे अपनी जमात का पिटा हुआ मोहरा नज़र आता है
और अधेड़ मुझे लड़कपन का मारा समझकर काम का आदमी मानने से
साफ़ इंकार कर देते है। उन्हें मुझमें लोकाचार की कोई जागृत
सम्भावना दिखाई नहीं देती। मैं खुद भी किसी से खुलकर नहीं
मिलता। सच कहूँ तो अपनी दिनचर्या के दायरे से बाहर कदम रखते
हुए मुझे घबराहट सी होती है। इसलिए जब एक सर्वथा अपरिचित
सज्जन मेरी तरफ़ इस तरह मुतवज्जेह हुए, तो ऐसा लगा जैसे मैं
ग़लत वक्त और ग़लत ज़मीन पर ग़लत तरीके से धर लिया गया हूँ।
पूरी कहानी पढ़ें-
* शरद
उपाध्याय का व्यंग्य
साहब का जाना
* रचना
प्रसंग में डॉ. राजेन्द्र गौतम का आलेख
नवगीत का मूल्यांकन
कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ
*
डाकटिकटों के स्तंभ में
देश विदेश के डाकटिकटों में
गाँधी
*
समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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पिछले
सप्ताह
सुरेश
उनियाल की लघुकथा
विदाई
*
संस्कृति में मोहन टंडन का आलेख
मुट्ठी का महत्त्व
*
स्वाद और स्वास्थ्य में जानें
पौष्टिक पपीते के गुण
*
पर्यटन में राजपाल सिंह की कलम से
उदयपुर में सास-बहू के मंदिर
* समकालीन कहानियों में -
भारत से
मधुलता अरोरा की कहानी
छोटी छोटी बातें
यह अलार्म भी अजीब है, कभी बजना
नहीं भूलता। शुभि घड़ी देखती है। अभी पाँच ही बजे हैं। कुछ
सोचकर उठती है, फ्रिज में से ठंडी रुई निकालती है, आँखों पर
रखकर फिर लेट जाती है। कुछ समय बाद अलार्म फिर घर्रा उठता है।
अब कोई चारा नहीं। उठना ही पड़ेगा। आज शुभि अपने शरीर में भारीपन
महसूस कर रही है। पूरा बदन अलसा रहा है। कोई भी काम करने का मन
नहीं कर रहा है। लेकिन बलि का बकरा कब तक खैर मनाएगा। हर रात
यह सोचकर सोती हे कि तड़के पाँच बजे सैर पर जाएगी, आकर नींबू
की चाय पिएगी, बेटे का नाश्ता और टिफिन बनाएगी। साढ़े छह बजे
बेटे को स्कूल रवाना करके कंप्यूटर पर अपने पत्र वगैरह
देखेगी। समाचार पत्र में भविष्य पढे़गी कि आज का दिन कैसे
बीतेगा और हिसाब से मूड बनाकर दफ़्तर की तैयारी करेगी। बाकी तो
सारे काम हो जाते हैं। बस, रह जाती है पाँच बजे की सैर और
नींबू की चाय।
पूरी कहानी पढ़ें- |
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अनुभूति
में-
हरीश निगम,
राजेन्द्र पासवान घायल, अमरजीत सिंह, दिविक रमेश और रामनिवास मानस की रचनाएँ। |
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रसोई
सुझाव-
उबले अंडों को आसानी से सफ़ाई के साथ छीलने के लिए उन्हें उबलने के बाद
पाँच मिनट के लिए ठंडे
पानी में डाल दें। |
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पुनर्पाठ
में - १५ जुलाई २००१ को प्रकाशित, उषा राजे सक्सेना
की कहानी प्रवास
में। |
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क्या आप जानते हैं?
२६ जनवरी को ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया दिवस मनाया जाता है जो
१७८८ में आस्ट्रेलिया के ब्रिटिश उपनिवेश बनने का उत्सव है। |
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सप्ताह का विचार- किसी भी बदलाव को ग्रहण करने के लिये सदा
तैयार रहो मगर अपने विचारों पर उसे ठीक से तौल समझकर।
--दलाई लामा |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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पाठशाला में इस माह की
कार्यशाला-३ का विषय है सुख-दुख इस जीवन में, नवगीतों का क्रमवार प्रकाशन जारी हैं। |
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