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                        सितंबर-अक्तूबर का महीना था। 
                        खिड़की के शीशे से छन कर आती पतझड़ की सुनहरी धूप तन और मन 
                        दोनों को भली लग रही थी। सीकामोर की पीली पड़ रही पत्तियों 
                        में अभी भी हरापन बाकी था। अभी थोड़ी ही देर पहले, माली 
                        मोरिस ने क्यारियों और लॉन की निराई करते हुए एक-एक सूखी 
                        पत्ती और घास-फूस को बीन कर कम्पोस्ट-पिट में डाला है। 
                        मोरिस अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्ध है। वह अपना काम बड़े 
                        मनोयोग से करता है। फूलों और उनके रंगों का चयन वह सदा 
                        किसी कलाकार की भाँति करता हुआ, नन्हें पौध को क्यारियों 
                        में रोपता है। काम ख़त्म करने के बाद कॉफी पीते हुए, वह 
                        बड़ी देर तक अपने किए हुए काम को पैनी दृष्टि से देखता है। 
                        उसके अंदर अपने काम के प्रति लगाव और एक न्यायोचित 
                        इमानदारी है। 
                         अचानक सीकामोर की दो-तीन 
                        पत्तियाँ कटी पतंग की तरह हवा में तैरती, आपस में टकराती, 
                        उलझती, बलखाती पैटियो-डोर के शीशे से टकरा कर जरेनियम और 
                        एंटीराइनम की क्यारियों में अपनी जगह बना लेती हैं। लगा, 
                        कि यह संसार भी एक घट है इसमें हर पल कुछ-न-कुछ घटित होता 
                        ही रहता है। चीज़ें बनती हैं, बिगड़ती है, उलझती है, और 
                        अपने आप सुलझती है। आदर-सम्मान, सुख-दु:ख, आशा-निराशा, 
                        प्रेम-घृणा, ईर्ष्या-द्वेष, मिलन-विछोह, जीवन-मृत्यु, 
                        निर्माण-विनाश, सब इस जीवन में हर |