इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से मनोज सिंह की
कहानी बिना
टिकट
''रघु...''
बचपन का नाम सुनते ही मेरा तुरंत पीछे मुड़कर देखना स्वाभाविक था। अब
तो राघव भी कोई नहीं बोलता, मि. राघवेंद्र या मि. सिंह ही बोला जाता
है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन पर भीड़ अभी कम थी और मेरी दृष्टि
अपना नाम पुकारने वाले को आसानी से ढूँढ़ सकती थी।
''कौन? सुनील! ज़्यादा फ़र्क उसमें भी नहीं आया था। नौवीं कक्षा तक
आते-आते चेहरा व शरीर अपना पूरा आकार तकरीबन ले ही लेते हैं। और तभी
हम बिछड़े थे। हाँ, आज उसकी जींस की पैंट घुटने के नीचे से कुछ
ज़्यादा फटी हुई थी। नहीं, शायद फाड़ दी गई थी। पता नहीं। ऊपर
मामूली-सी टी-शर्ट और कंधे के पीछे लटका बड़ा-सा मगर पुराना बैग। इसे
झोला भी कहा जा सकता था। रंग उसका गोरा न होता तो हिंदुस्तान में उसे
भीख माँगने वाला घोषित कर दिया जाता।
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शरद तैलंग का व्यंग्य
जीवन दो दिन का
*
प्रकृति में रश्मि
तिवारी का आलेख
केसर - एक
अनमोल वनस्पति
* उषा
खुराना से पर्व परिचय के अंतर्गत
मॉरीशस में शिवरात्रि
*
साहित्य समाचार में
अमृतसर, मुंबई, कानपुर, दिल्ली, हैदराबाद और गोवा से
नए साहित्य
समाचार
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कथा महोत्सव-२००८ परिणाम
में विलंब
परिणाम ९ मार्च को घोषित किए जाएँगे |
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पिछले सप्ताह
डॉ. अरुणा शास्त्री का व्यंग्य
रहिए ऐसी जगह जहाँ कोई न हो
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विनोद दास का साहित्यिक निबंध
बांग्ला कहानी का वैभव
* आज
सिरहाने मृदुला गर्ग का उपन्यास
कठगुलाब
*
फुलवारी में बच्चों के लिए
सितारों का संसार
* समकालीन कहानियों में
भारत से
भारत से संजीव दत्त
शर्मा की
कहानी नानी
नानी
ने भरपूर ज़िंदगी पाई। नब्बे बरस की उम्र कोई कम तो नहीं होती और एक
लंबी ज़िंदगी में जो कुछ अच्छा-बुरा कोई देख सकता है वो नानी ने भी
देखा। नानी पैदा हुई थी लाहौर के नज़दीक एक गाँव में, खानदानी
पटवारियों के परिवार में। परिवार पटवारियों का था इसलिए घर में पैसा
भी था, ज़मीन भी थी और घोड़े भी थे। नानी को घोड़े की सवारी बखूबी
आती थी। जब नानी की शादी हुई तब नाना खूबसूरत जवान थे। सवा छह फुट से
ऊपर निकलता कद। गोरा रंग और ग्रीक देवताओं जैसे नाक-नक्श। उस ज़माने
के ग्रेजुएट थे नाना। अरबी, उर्दू, अंग्रेज़ी और गणित के मास्टर।
गृहस्थी जमती चली गई। शुरू में लड़कियाँ होती रहीं तो मान-मनौतियों
का सिलसिला शुरू हुआ फिर एक बेटा हुआ। डिप्थीरिया से चल बसा। उस
ज़माने में कोई टीकाकरण तो होता नहीं था- होता तो नानी ज़रूर अपने सब
बच्चों को पूरे टीके लगवातीं क्यों कि अनपढ़ होने के बावजूद
एलोपैथिक इलाज में उनकी बड़ी श्रद्धा थी।
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अनुभूति
में-
महेन्द्र भटनागर, आलोक श्रीवास्तव, कविता रावत, राम निवास मानव,
प्रियोबती निंथौजा
की नई रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ-
कथा महोत्सव के परिणाम लगभग तैयार हैं लेकिन अंतिम परिणाम घोषित करने में
कुछ देर अभी बाकी है। ...
आगे पढ़े |
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रसोई
सुझाव-
यदि दूध फटने की संभावना हो, तो थोड़ा बेकिंग पाउडर डालकर
उबालें, दूध नहीं फटेगा। |
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नौ साल पहले-
१५ सितंबर २००० के अंक से
दो पल के अंतर्गत अश्विन गांधी का आलेख
मुसाफ़िरी तीसरे दर्जे में |
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क्या आप जानते हैं?
कि बाँस तेज़ी से बढ़ता है और इसकी कुछ प्रजातियों की बढ़वार साल
के कुछ दिनों में १ मीटर प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। |
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शुक्रवार चौपाल-
एक सप्ताह के अंदर दोनों नाटकों का मंचन एक साथ होना है, गुरुवार २६
फरवरी की शाम ९ बजे। ... आगे
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सप्ताह का विचार- संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम
चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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