केसर - एक
अनमोल वनस्पति
रश्मि तिवारी
केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस है।
अंग्रेज़ी में इसे सैफरन नाम से जाना जाता है। 'आइरिस' परिवार का
यह सदस्य लगभग ८० प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में
पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं- फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी,
जापान, रूस, आस्ट्रिया एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर
उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन
का ८०% इन दोनों
देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग ३०० टन प्रतिवर्ष है।
भारत में कश्मीर केसर
उगाने वाला प्रमुख क्षेत्र रहा है, परंतु कुछ राजनैतिक कारणों से
आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। उत्तर प्रदेश के चौबटिया
जिले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। एक समय था जब
कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था।
'केसर' को उगाने के
लिए समुद्रतल से लगभग २००० मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण
सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी
उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात
दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा
होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है।
मध्य एवं पश्चिमी
एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है।
यह एक बहुवर्षीय पौधा है। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज
नहीं पाए जाते हैं। केसर के कंद अगस्त माह में बोए जाते हैं, जो
दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर में खिलने शुरू हो जाते
हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल
कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन
मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका एवं
वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में
केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह
दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता
है। इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र
महक उठता है।
'केसर को निकालने के
लिए पहले फूलों को चुनकर किसा छायादार स्थान में बिछा देते हैं।
सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं।
रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि
श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। १५०,००० फूलों से लगभग १ किलो
सूखा केसर प्राप्त होता है।
'केसर' खने में कड़वा
होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में
डाला जाता है। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है।
यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। प्रमुख वर्णको
में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि
पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं सुगंध तेल भी कुछ मात्रा
में मिलते हैं। अन्य
रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं
तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक
यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है।
उदर संबंधित अनेक
परेशानियों, जैसे अपच, पेट में दर्द, वायु विकार आदि में केसर
उपयोगी है। चोट लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप
लगाने से आराम मिलता है। महिलाओं में अनियमित मासिक स्राव एवं इस
दौरान होने वाले दर्द को ठीक करता है। गर्भाशय की सूजन में
लाभकारी है। मानसिक अवसाद एवं उदासीनता में भी महिलाओं को दिया
जाता है। यह सभी 'केसर' के घरेलू उपचार एवं उपयोग हैं, लेकिन
किसी वैद्य के परामर्श द्वारा इसका विशेष लाभ उठाया जा सकता है।
इतने सारे मानवोपयोगी गुणों को संजोए 'केसर' सच में एक अनमोल
वनस्पति एवं अद्भुत औषधि है।
२३ फरवरी
२००९ |