''उनको देखे से जो आ जाती है चेहरे पे रौनक, वो समझते
हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।''
मिजाजपुरसी का प्रचलन शायद ऐसे ही किसी बीमार शायर के इस शेर को सुनकर हुआ होगा,
जिसके चेहरे पर मिजाजपुरसी के लिए आई अपनी महबूबा को देखकर रौनक आ गई होगी। पर हर
मिजाजपुरसी करने आनेवाले को देखकर हर बीमार के चेहरे पर तो रौनक नहीं आ सकती!
यदि आपको बीमार पड़ने का कोई अनुभव है, तो आपने महसूस
किया होगा कि अपनी बीमारी से आप इतना नहीं घबराए होंगे, जितना इन मिजाजपुरसी
करनेवालों से घबरा गए होंगे और घबराकर आपके मुँह से बरबस यही निकाला होगा कि,
'भगवान बचाए इन मिजाजपुरसी करनेवालों से।'
मिजाजपुरसी करनेवालों का क्या है। बस उनको आपके
बीमार पड़ने की खबर मिलने की देर है कि वे परिवार और मित्रों सहित आपको देखने चले
आएँगे। मानो आप बीमार नहीं पड़े हों, बल्कि एक दर्शनीय सामग्री बन गए हों, जिसे
देखने हर कोई चला आ रहा हो।
आते ही हर आगंतुक एक ही प्रश्न तोप दागता है, ''अब तबीयत कैसी है?''
अब उन्हें क्या बताएँ कि अगर तबीयत अच्छी होती, तो भला बिस्तर पर यों पड़े रहते? पर
मन मसोसकर हर मिजाजपुरसी करनेवाले के सामने हर बार अपनी बीमारी का वही रेकॉर्ड नए
सिरे से बजाना पड़ता है कि किस तरह बीमार ने दरवाज़े पर दस्तक दी, किस तरह झुरझुरी
चढ़कर बुखार आया और कितने दिन हो गए बिस्तर पर पड़े हुए आदि-आदि।
इसके बाद उनका दूसरा प्रश्न रहता है कि किस डॉक्टर
का इलाज चल रहा है? अब आप जिस किसी भी डॉक्टर का नाम लेंगे, उसके लिए वे यही कहेंगे
कि 'अरे, आप भी किस बेकार के डॉक्टर के चक्कर में पड़े हैं, उसके इलाज से आज तक कोई
ठीक हुआ है, जो आप होएँगे?' इसके बाद वे अपनी पसंद के डॉक्टरों के नामों की लंबी
लिस्ट आपको सुना देंगे।
इतना ही नहीं, यदि आपका एलोपैथिक इलाज चल रहा है,
तो वे होमियोपैथी इलाज कराने का सुझाव देंगे और यदि होमियोपैथी इलाज चल रहा है, तो
वे आयुर्वेदिक या यूनानी या प्राकृतिक चिकित्सा की सलाह देंगे। आप पशोपेश में पड़े
यह समझ ही नहीं पाएँगे कि आप जो इलाज कर रहे हैं, वह सही भी है या नहीं या बिलकुल
बेकार है। कहीं आप मौत के मुँह में तो नहीं धकेले जा रहे हैं? क्या मालूम
अब बिस्तर से उठना हो या न हो।
इस तरह मिजाजपुरसी के लिए आए लोग अपने-अपने तरीके
से 'ओपनहार्ट सर्जरी' से लेकर घरेलू नुसख़ों तक पर बड़े दावे के साथ अपने-अपने इलाज
बतला जाएँगे। यदि सबकी सलाह और नुसख़ों का पालन करते हुए आप अपना इलाज कराने लग
जाएँगे तो अंत में आप यहीं पाएँगे कि 'मर्ज़ बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।'
ये मिजाजपुरसी करनेवाले इतने पर भी बस नहीं करते।
वे मरीज़ के सिरहाने बैठे चाय की चुस्कियों का आनंद लेते हुए, यह कहकर उसे डराने से
भी बाज़ नहीं आते- ''अरे, जानते हो, सुरेश के साथ भी तो ऐसा ही हुआ था। बिलकुल
भला-चंगा था। बस, ऐसे ही उसको भी ज़ोरों से सर में दर्द हुआ, तेज़ी से बुखार चढ़ा
और... और बेचारा दो ही दिन में दुनिया से कूच कर गया। कितना समझाया था उसे, पर वह
भी आपकी ही तरह मुहल्ले के डॉक्टर से इलाज करता रहा, ''इस तरह वे दुनिया छोड़कर
जानेवाले कितने ही मरीज़ों के किस्से एक के बाद एक करके सुनाते रहेंगे और ऐसी भयानक
केस हिस्ट्री को सुनकर बेचारा मरीज़ स्वयं भी मौत के पास आते कदमों की आहट सुनने लग
जाएगा। अब आप ही बतलाइए ऐसी मिजाजपुरसी से क्या लाभ, जो मरीज़ के लिए उसके मर्ज़ से
भी ज़्यादा मुसीबत बन जाए।
इस संदर्भ में एक सज्जन का किस्सा हमेशा याद आता
है- उनका एक्सीडेंट हुआ था और उन्हें तीन महीने तक प्लास्टर में बँधे बिस्तर पर
पड़े रहना पड़ा था। रोज़ सुबह-शाम, रात-दिन उनके घर पर उनके नाते-रिश्तेदारों,
अड़ोसी-पड़ोसियों, यार-दोस्तों का तांता-सा लगा रहता- एक जाता, दूसरा आता। दूसरा
जाता, तीसरा आता। लोग सपरिवार उन्हें देखने आते। लोग इतनी दूर से उन्हें देखने,
उनकी मिजाजपुरसी करने आ रहे हैं, यह सोचकर उनकी पत्नी सबका चाय-शरबत और जलपान से
स्वागत अवश्य करती। अब हुआ यह कि उनकी पत्नी अतिथियों का स्वागत-सत्कार, घर के
काम-काज, बच्चों की सेवा करते हुए स्वयं ही ऐसी बीमार पड़ी कि अगले एक महीने तक वह
खुद भी बिस्तर से नहीं उठ सकी। और इन मिजाजपुरसी करनेवालों के स्वागत-सत्कार के
कारण घर का बजट गड़बड़ाया सो अलग।
अब समझ में आता है कि गंभीर बीमारियों में डॉक्टर
हवा-पानी बदलने की और पहाड़ जाने की सलाह क्यों देते हैं? शायद इसीलिए कि वहाँ कोई
अपना न होगा और मिजाजपुरसी के लिए आ न सकेगा, तो रोगी अपने आप ही ठीक हो जाएगा।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि-
रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
नोहाख्वा कोई न हो, और हमनवाँ कोई न हो।
१६ फरवरी
२००९ |