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 १९. १. २००९

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
भारत से जसविंदर शर्मा की कहानी समर्पण

अम्मा से वह मेरी अंतिम मुलाक़ात थी। उसे अंतिम मुलाक़ात कहना सही नहीं होगा क्यों कि मेरे गाँव पहुँचने से पहले ही अम्मा जा चुकी थी- मृत्युलोक से दूर, हर दुख-तकलीफ़ से परे। पिछली बार जब मैं उसे मिलने आया था तो वह बोली थी, ''बेटे, बहुत हो चुकी उम्र! पोते-पड़पोते देख लिए। अब ईश्वर का बुलावा आ जाए तो अच्छा है! बिस्तर पर न गिरूँ मैं! मोह-ममता नहीं छुटती, बस! तुझ में ध्यान रहता है। तेरा बड़ा भाई मनोहर तो यहीं गाँव में ही रहता है। उसके बच्चे तो ब्याहे गए। तेरे अभी कुँवारे हैं। उनका घर बस जाता तो सुख की साँस लेकर मरती मैं।''
मैं उसे समझाता, ''अम्मा, हमारी चिंता मत किया कर। हम लोग मज़े में हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा दी है। सब मज़े कर रहे हैं। खाते-कमाते हैं। वहाँ के संस्कार कुछ और ही हैं, अम्मा। मनोहर के बच्चों जैसे नहीं कि जो बापू ने बोल दिया वह पत्थर की लकीर नई सदी के इस मोड़ पर मुझे भी यह बात सालती है, मगर क्या करूँ? समय के साथ चलना पड़ता है।

*

राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य
भ्रष्टाचार में शिष्टाचार का समावेश ही कर्म-कौशल है!

*

प्रेरक प्रसंग
सुखी व्यक्ति की खोज

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स्वाद और स्वास्थ्य में अर्बुदा ओहरी बता रही हैं
फ्रेंचबीन से फटाफट स्वास्थ्य

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मेहरून्निसा परवेज़ का संस्मरण
चिट्ठी में बंद यादें

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पिछले सप्ताह

डॉ. गोपाल बाबू शर्मा का व्यंग्य
पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के नुसख़े

*

हीरालाल नागर की लघुकथा
विवशता

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पर्व परिचय में अश्विनी केशरवानी का आलेख
मकर संक्रांति- परंपराएँ और मान्यताएँ

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कला दीर्घा में कला और कलाकार के अंतर्गत
मनजीत बावा अपनी कलाकृतियों के साथ

*

समकालीन कहानियों में
भारत से देविंदर कौर की कहानी प्रायश्चित

मोहन ने कार स्टार्ट की, पान की गिलोरी को मुँह में एक तरफ़ दबाते हुए, उसके मन में कुछ विचार कौंधा और उसके होठों की मुस्कुराहट और अधिक गहरी हो गई। उसने कार का रुख भीड़ भरे बाज़ार की तरफ़ कर दिया। आज उसकी जेब में नोटों की गड्‍डियाँ भरी थीं व आँखों में सपने तैर रहे थे, कई चीज़ों की लिस्ट उसने मन ही मन दोहराई, जिन्हें आज वह उन रुपयों से ख़रीद लेना चाहता था, कई दिनों से उसका पैसा अटका था, यों तो काम हो जाने के कुछ ही दिन बाद उसे उसका रोकड़ा मिल जाता था, लेकिन इस बार काम तो ठीक-ठाक ही हुआ था, उसने व उसके साथियों ने बम सही रखा था, वह फट भी गया, लेकिन गलती से एक थैला उनके हाथों से फिसलकर वहीं गिर गया, भनक लगते ही उनका मालिक दुबई भाग गया था और इधर कुछ महीनों की तंगहाली ने उसकी हालत पतली कर दी थी। हाल ही में उसे काम का बड़ा भुगतान हुआ था, तभी मोहन की निगाहें खिलौनों की एक बड़ी-सी सजीधजी दुकान पर पड़ी। कुछ ही देर में नाचता बंदर, दुल्हिन गुड़िया, लाल गेंद आदि से भरे बैग उसकी गाड़ी को चार चाँद लगा रहे थे।

अनुभूति में-
गौतम राजरिशी, देवेंद्र आर्य, सुशील गुप्ता, डॉ. सरोज कुमार वर्मा और सोहनलाल द्विवेदी  की रचनाएँ

 

कलम गही नहिं हाथ- सोचा था मेरा भारतीय कमांडो इस बार महाकड़क फ्लू पर अकेला ही विजय प्राप्त कर लेगा। ... आगे पढ़े

 
रसोई सुझाव- मेथी के साग की कड़वाहट हटाने के लिये उसे काटें,  नमक मिलाकर,  थोड़ी देर के लिये अलग रखें और दबाकर थोड़ा रस निकाल दें।
 

नौ साल पहले- १५ सितंबर २००० के अंक से साहित्य संगम के अंतर्गत आंडाल प्रियदर्शिनी की तमिल कहानी का हिंदी अनुवाद छुईमुई

 

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- सूक्ष्मजैविकी

 

क्या आप जानते हैं? मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएँ है, उस से लगभग १० गुना अधिक जीवाणु कोष है।

 
शुक्रवार चौपाल- १६ जनवरी की चौपाल का प्रारंभ ठीक नहीं रहा। रात भर तेज़ बारिश हुई थी। सर्दी काफ़ी बढ़ गई।  आगे पढ़ें...
 
सप्ताह का विचार- कुछ प्रलोभन परिश्रमी व्यक्ति को हो सकते हैं, किंतु सारे प्रलोभन तो केवल आलसी व्यक्ति पर ही आक्रमण करते हैं। --मुक्ता


हास परिहास

 

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

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