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क्या आप जानते
हैं?
- बीन्स एक ऐसी सब्ज़ी है
जो कि अमेरिकन, मेक्सिकन, चाईनीज़, जापानी, उत्तरी व
दक्षिणी भारतीय, यूरोपियन आदि तरह के भोजन में सामान्यतः
मिलती है।
- आप सलाद लें या
स्टारटर्स, सूप से लेकर बर्गर टिक्की तक हर जगह बीन्स
(फलियाँ) किसी न किसी रूप में आपको नज़र आ जाएँगी।
- सूखी व हरी दोनो ही
प्रकार की बीन्स भोजन का एक आवश्यक व पौष्टिक हिस्सा हैं।
- होम्योपेथिक दवाओं में
भी बीन्स बहुत काम आती है।
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बीन्स की हरी पौध सब्जी के रूप
में खायी जाती है तथा सुखा कर इसे राजमा, लोबिया इत्यादि के
रूप में खाया जाता है। अमेरिका तथा अफ्रीका के कुछ भाग में तो
बीन्स को प्रोटीन का मुख्य स्रोत माना जाता है। हरी बीन्स या
सामान्य भाषा में फ्रेंच बीन्स में मुख्यत: पानी, प्रोटीन, कुछ
मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन,
राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि तरह के मिनरल और
विटामिन मौजूद होते हैं। राइबोफ्लेविन को विटामिन बी२ के नाम
से ज़्यादा जाना जाता है, विटामिन बी२ शरीर की कोशिकीय
प्रक्रियाओं के लिए बहुत ही आवश्यक घटक है। बीन्स विटामिन बी२
का मुख्य स्रोत होते हैं। प्रति सौ ग्राम फ्रेंच बीन्स से
तकरीबन २६ कैलोरी मिलती है। राजमा में यही सब ज़्यादा मात्रा
में पाया जाता है इसलिए प्रति सौ ग्राम राजमा से ३४७ कैलोरी
मिलती है। बीन्स सोल्युबल फाईबर का अच्छा स्रोत होते हैं और इस
कारण ह्रदय रोगियों के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद हैं। ऐसा माना
जाता है कि एक कप पका हुआ बीन्स रोज़ खाने से रक्त में
कोलेस्टेरोल की मात्रा ६ हफ्ते में १० प्रतिशत कम हो सकती है
और इससे ह्रदयाघात का खतरा भी ४० प्रतिशत तक कम हो सकता है।
बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्सियम व
मेग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है और लवणों का इस प्रकार का
समन्वय सेहत के लिए लाभदायक है। इससे रक्तचाप नहीं बढ़ता तथा
ह्रदयाघात का खतरा टल सकता है।
बीन्स का 'ग्लाइसेमिक इन्डेक्स'
कम होता है इसका अभिप्राय यह है कि जिस तरह से अन्य भोज्य
पदार्थों से रक्त में शक्कर का स्तर बढ़ जाता है, बीन्स खाने
के बाद ऐसा नहीं होता। बीन्स में मौजूद फाइबर रक्त में शक्कर
का स्तर बनाए रखने में मदद करते हैं। और बीन्स की इस ख़ासियत
की वजह से मधुमेह के रोगियों को बीन्स खाने की सलाह देते हैं।
ऐसे उदाहरण भी हैं कि बीन्स का ज्यूस शरीर में इन्सुलिन के
उत्पादन को बढ़ावा देता है। इस वजह से जिन्हें मधुमेह है या
मधुमेह का खतरा है उनके लिये बीन्स खाना बहुत लाभदायक है।
बीन्स का ज्यूस उत्तेजक ( स्टिम्युलेंट) होता है इसकी इसी
प्रकृति के कारण यह उन लोगों को बहुत फ़ायदा करता है जो लंबी
बीमारी से जूझ रहे हैं या जो बीमारी के पश्चात पूर्ण स्वास्थ्य
लाभ चाहते हैं। बीन्स का १५० मिली ज्यूस हर रोज़ पीना आपके इस
उद्देश्य को भली-भाँति पूरा कर देगा। फ्रेंच बीन्स किडनी से
संबंधित बीमारियों में भी काफी फ़ायदेमंद है। किडनी में पथरी
की समस्या हो तब आप यह नुस्खा अपनाएँ। आप ६० ग्राम बीन्स की
पौध लेकर इसे चार लीटर पानी में चार घंटे तक उबाल लें। फिर
इसके पानी को कपड़े से छान लें और छने हुए पानी को करीब आठ
घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे फिर से छान लें पर
ध्यान रखें कि इस बार इस पानी को बिना हिलाए छानना है। इसे दिन
में दो-दो घंटे से पीयें, यह नियम एक हफ्ते तक दोहराएँ। इसके
परिणाम आशानुरूप मिलेंगे।
होम्योपेथिक दवाओं में भी
बीन्स बहुत काम आती है। ताज़ी बीन्स का उपयोग रूमेटिक,
आर्थराइटिस तथा मूत्र मली में तकलीफ़ की दवाई बनाने के लिए
किया जाता है। बीन्स में एन्टीआक्सीडेंट की मात्रा भी काफी
होती है। एन्टीआक्सीडेंट शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत के लिए
अच्छा माना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने से केंसर की
सम्भावना कम हो जाती है। बीन्स में फाईटोइस्ट्रोजन की मात्रा
होने से ऐसा माना जाता है कि इससे स्तन केंसर का खतरा भी कम हो
सकता है।
हरी सब्ज़ियाँ खाना सेहत के
लिए बहुत फ़ायदेमंद है, छोटी-सी बीन्स शरीर के लिए बड़े ही
फ़ायदे की चीज़ है। ये शरीर के लिए एक तरह से शक्तिस्रोत का
काम करती हैं। फलियों में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी
ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम। बस हरी बीन्स
ख़रीदते हुए ध्यान रखें कि ये पीली तथा मुरझाई हुई न हो तथा यह
भी याद रखें कि बीन्स को धोकर फ्रिज में न रखें इससे इसके
मिनरल खत्म होने लगते हैं। जब भी बीन्स का उपयोग करना चाहें,
उसे फ्रिज से निकाल कर तुरंत अच्छी तरह से धोकर काम में लें।
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