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    1. 12. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से सूरज प्रकाश की कहानी छोटे नवाब बड़े नवाब
'देख छोटे,'' बड़ा गुर्राया, ''सुबह-सुबह तू अगर यह हिसाब लगाने बैठा है कि मेरे पास क्या बच रहा है तो कान खोलकर सुन ले। तुझे हिस्सेदार बनाने से पहले भी मेरे पास बहुत कुछ था। तुझसे दस गुना। अब तू उस पर तो अपना हक जमा नहीं सकता।'' बड़ा थोड़ा रुका। फिर टोन बदली, ''तुझे मैंने तेरे हक से कहीं ज्यादा पहले ही दे दिया है। मैं कह ही चुका हूं, इन चार-पांच सालों में हमने चार-पांच गुना तो कतई नहीं कमाया। रही एक करोड़ की बात, तो यह बिलकुल गलत है। बच्चू, मैं इस लाइन में कब से एड़ियाँ घिस रहा हूं। तब जाकर आज चालीस-पचास लाख के आस-पास हूं। एक करोड़ तो कतई नहीं।''

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हास्य-व्यंग्य में
यू.एस.ए. से इला प्रसाद की रचना
दर्द दिखता क्यों नहीं
आजकल मैं एक अजीब सी समस्या से जूझ रही हूँ। सारे वक्त कहीं- न -कहीं दर्द होता रहता है। दादी माँ का नुस्खा आजमाया। गर्म पानी का बैग बनाया और रख दिया दर्द वाली जगह पर। थोड़ी देर को दर्द गायब। फिर वही। कहीं और प्रकट हुआ। अब सारे वक्त इस दर्द के पीछे कौन लगा रहे। सो टायलेनाल की गोलियाँ ले ली। अब लोगबाग कहने लगे हैं आराम से सोते रहने के लिए अच्छा बहाना ढूँढा है।  टायलेनाल खाने से नींद बहुत आती है। अब तो पतिदेव को भी उनकी बात में दम नजर आने लगा है। लेटा देखकर पूछते हैं - फिर दर्द है? मैं परेशान हूँ कि दर्द दिखता क्यों नहीं ?

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संस्मरण में
महावीर शर्मा का आलेख मेरी पहली फ़िल्म तूफ़ान मेल
मुरली भाई ने साथ के पत्थर पर बैठ कर साँस ली और कहने लगा, ” मैंने तरकीब ढूंढ ली है। ” मैंने उसे पैनी निगाह से देखा और कहा, “क्या मुझे भी ‘एस.पी. सोसाइटी का मेम्बर बनाने के चक्कर में है। बड़े भाई से कह दिया तो तेरी हड्डी पसली निकाल कर हाथ में पकड़ा देंगे” मुरली भाई झल्ला कर बोला, ” मैंने फिलम देखने की तरकीब ढूंढ ली है…” मैं उछल कर वापस पत्थर पर जो बैठा तो कूल्हे की हड्डी ने ‘हाय राम’ की चीख निकलवा दी। मुरली ने जारी रखा, “एकादशी के दिन फिलम देखा करेंगे।” मैंने मुँह बिचका कर कहा, “क्यों मंडुए के मैनेजर छगन लाल की लड़की पटा ली है?” मुरली भाई ने अपना माथा पीट लिया,” उसकी बात मत कर।

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पर्यटन में एस आर हरनोट ले चल रहे हैं
हिमाचल में शीतकालीन पर्यटन और बर्फ़ के खेल
कुछ साल पहले तक मनाली और शिमला जैसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में शीतकालीन मौसम में कोई चहल पहल नहीं होती थी। लेकिन आज हिमाचल में जिस तरह से शीतकालीन खेल- स्कीइंग, हेली स्कीइंग और आइस स्केटिंग लोकप्रिय हुए है उससे सर्दियों के मौसम का स्वागत भी पर्यटक-मौसम की ही तरह होने लगा है। हिमाचल प्रदेश की पर्वत-मालाएँ जब बर्फ की सफेद चादर ओढ़ लेती है तो उनका नज़ारा देखते ही बनता है। खेल के प्रेमियों की आँखे अनवरत दिसम्बर मास से ही आसमान की ओर टकटकी लगाए रहती हैं कि कब धरती बर्फ की वर्षा से आच्छादित हो और वे इन खेलों का आनन्द ले सकें।

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आज सिरहाने
धर्मवीर भारती की पुस्तक सूरज का सातवाँ घोड़ा
सूरज का सातवाँ घोड़ा पाठक के मन पर ऐसी गहरी छाप छोड़ जाती है कि पढ़ने के कई दिन बाद भी उसके पात्र और उनके अनुभव दिलो दिमाग पर छाए रहते हैं। इतनी गहराई से अपनी बात को अति साधारण पात्रों के जरिए कह पाना कोई साधारण बात नहीं है। इस कथानक का रचना काल स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद का है और इस कहानी में उस समय की परिस्थितियों का प्रभाव भी प्रत्यक्ष है, परन्तु फिर भी इन्हें पढ़ते हुए शायद ही कहीं इस बात का भान होता है कि यह कहानी आजकल की नहीं है। समय की इतनी लंबी छलांग लगा सकने की क्षमता वाली कहानियाँ कम ही दिखाई देती है।

 

अनुभूति में

नीरज गोस्वामी, अविनाश वाचस्पति, अमरनाथ श्रीवास्तव, डॉ. अमिता और मनोहर शर्मा माया
की नई रचनाएँ

पिछले सप्ताह
24 नवंबर 2007 के अंक मे
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समकालीन कहानियों में
यू.के. से अपूर्व कृष्ण की कहानी
अंतर्यात्रा
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हास्य-व्यंग्य में
हरि जोशी की रचना
अमरीकी टिकट बड़ा विकट

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पर्व परिचय में
राजेंद्र तिवारी के शब्दों में
सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा

छठ पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है। प्राचीन काल में इसे बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था। लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहाँ भी रहते हैं वहाँ इस पर्व को उसी श्रद्धा और भक्ति से मनाते हैं।
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प्रकृति और पर्यावरण में राजीव रंजन प्रसाद की कामना- बूँद बूँद से घट भरे– भूमिगत जल के परिप्रेक्ष्य में
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साहित्य समाचारों में-

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पुराने अंक

सप्ताह का विचार
यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है।
 --रामनरेश त्रिपाठी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

     

 

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