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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से
सूरज प्रकाश की कहानी— 'छोटे नवाब बड़े नवाब'


आखिर फैसला हो ही गया। हालांकि इससे न छोटा खुश है, न बड़ा। बड़े को लग रहा है -छोटे का इतना नहीं बनता था। ज्यादा हथिया लिया है उसने। छोटा भुनभुना रहा है-बड़े ने सारी मलाई अपने लिए रख ली है। मुझे तो टुकड़ा भर देकर टरका दिया है, लेकिन मैं भी चुप नहीं बैठूँगा। अपना हक लेकर रहूँगा।
छोटा भारी मन से उठा, ''चलता हूं बड़े। वह इंतज़ार कर रही होगी।''
''नहीं छोटे। इस तरह मत जा।'' बड़े ने समझाया, ''घर चल। सब इकट्ठे बैठेंगे। खाना वहीं खा लेना। फोन कर दे उसे। वहीं आ जाएगी। होटल से चिकन वगैरह लेते चलेंगे।''
छोटा मान गया है।
फोन उठाते ही छोटे की बीवी ने पूछा, ''क्या-क्या मिला? कहीं बाउजी के लिए तो हाँ नहीं कर दी है?''
''तुमने मुझे इतना पागल समझ रखा है क्या?'' छोटा आवाज दबा कर बोला। साथ वाली मेज़ पर बड़ा दूसरे फोन पर अपनी बीवी से बात कर रहा है।
''मैं माना ही बिज्जी को रखने की शर्त पर।'' छोटे ने बताया।
''नकद भी मिलेगा कुछ?''
''हां, मुझे सिर्फ तीन देगा बड़ा। उसके पास फिर भी बीस लाख से ऊपर है नकद अभी भी।'' छोटा फिर भुनभुनाया।

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