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9. 10. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू एस ए से डॉ अमिता तिवारी की कहानी उसका नाम लीना है
उसका नाम लीना है। पहले ही बता दूँ कि जैसा आम कहानियों में होता है यह नाम असली नहीं है। एक बार मैंने एक कहानी में असली नाम लिख दिया था। बहुत बवाल हो गया था। कहानी का नायक, जिसे मैंने खलनायक की तरह चित्रित कर दिया था, वह मेरी जान का दुश्मन हो गया था। देख लिया? झूठ बोलने में कितना लाभ रहता है? और सच कितना ख़तरनाक? कितना जानलेवा? हाँ तो बात हो रही थी लीना की। लीना किसी एशियाई देश की है। देखा, मैं फिर बात गोल कर गई। कितना चालाक होना पड़ता है अपनी जान बचाने के लिए। हम लोगों को अपनी जान की इतनी चिंता रहती है कि झूठ पर झूठ बोलते चले जाते हैं।

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हास्य-व्यंग्य में
गुरमीत बेदी बता रहे हैं कि ऊँट किस करवट बैठेगा

बड़ा अजीब आदमी है, मुझ से पूछ रहा है कि ऊँट किस करवट बैठेगा? जैसे ऊँट न हो गया, जोरू का गुलाम हो गया या फिर कठपुतली नेता हो गया जो वही करेगा, जो हाईकमान चाहेगा। अरे भई, ऊँट तो ऊँट होता है। एकदम से भिन्न प्रजाति का जीव। उसकी अपनी विल पावर होती है और अपनी मर्ज़ी। वह सरकारी कर्मचारी की तरह हर काम नियम और कानून की पोथी देखकर थोड़े ही करता है और न ही तबादले के नाम पर वह डरता है। उसे जिधर के आदेश होते हैं, वह मुँह उठाकर उधर चल देता है। वह डी. ओ. नोट जुटाने के चक्कर में नहीं पड़ता और न ही मिमियाते हुए सत्ता के गलियारों के चक्कर काटता है।

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घर-परिवार में
अर्बुदा ओहरी का आलेख सेहत के विरुद्ध सोडा
सॉफ्ट ड्रिंक कितना नुकसानदायक है इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। नेशनल सॉफ्ट ड्रिंक एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में सॉफ्ट ड्रिंक सेवन में बहुत बढ़ोतरी हुई है। मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल अस्पताल में हुए शोध से ज़ाहिर हुआ है कि पिछले बीस सालों में जहाँ एक ओर सोडा सेवन में वृद्धि हुई है वहीं इसके साथ साथ इसोफेगल कैंसर भी इसे पीने वालों में बढ़ा है। जब भी हम सोडा पीते हैं तब हमारे पेट में अम्ल का स्तर बढ़ जाता है। क्या आप जानते हैं कि एक केन सोडा पीने के बाद करीब 53.5 मिनट तक पेट में अम्ल का स्तर बढ़ा हुआ रहता है, इसी से ही हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसका कितना बुरा असर पड़ता है।

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संस्कृति में 10 अक्तूबर पितृ-विसर्जन के अवसर पर
रामकृष्ण से जानकारी विदेशों में भी होती है पितरों की पूजा
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यूरोप के अधिकांश देशों में इस अवसर पर लोग अपने घरों की सफ़ाई नहीं करते। उनकी धारणाओं के अनुसार ऐसा करने से आगत आत्माओं को कष्ट होगा। साथ ही पितरों के आने की खुशी में वहाँ सालकेक नामक एक मिष्ठान्न बनाने की प्रथा भी है। वहाँ के लोगों का विश्वास है कि उसके खाने से परलोक में रहने वाली मृतात्माओं को सुख और शांति की प्राप्ति होती है। हर साल दो नवंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार यूरोप में उतनी ही श्रद्धा से संपन्न किया जाता है जिस तरह भारत में पितृ-विसर्जन का पर्व। बेलजियम में उस दिन मृतात्माओं की क़ब्रों पर दीपक जलाए जाते हैं।

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प्रेरक प्रसंग में सीताराम गुप्त के शब्दों में
प्रेरणादायक इतिहास कथा-आत्मविश्वास है विजय
घटना है वर्ष 1960 की। सारे विश्व की निगाहें 25 अगस्त से 11 सितंबर तक होने वाले ओलंपिक खेलों पर टिकी हुई थीं। इस ओलंपिक में एक बीस वर्षीय अश्वेत बालिका भी भाग ले रही थी। वह इतनी तेज़ दौड़ी कि 1960 के ओलंपिक मुक़ाबलों में तीन स्वर्ण पदक जीत कर दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बन गई। रोम ओलंपिक में कुल 83 देशों के 5346 खिलाड़ियों में इस बीस वर्षीय बालिका का असाधारण पराक्रम देखने के लिए इसलिए उत्सुक नहीं थे कि विल्मा रुडोल्फ नामक यह बालिका अश्वेत थी अपितु यह वह बालिका थी जिसे चार वर्ष की आयु में डबल निमोनिया और काला बुखार होने से पोलियो हो गया और फलस्वरूप उसे पैरों में ब्रेसेज़ पहननी पड़ी।

 

सीताराम गुप्ता,
क्षिप्रा वर्मा श्यामल सुमन,
कृष्ण साईं, और पंजाबी कवि बलबीर माधोपुरी की नई रचनाएँ

पिछले सप्ताह
1अक्तूबर 2007 के गांधी जयंती विशेषांक में
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समकालीन कहानियों में
ज़ाकिर अली रजनीश की विज्ञान-कथा ज़रूरत

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फ़िल्म इल्म में
अनहसिर्क अमर की कलम से
गांधी जी और सिनेमा

गाँधीवाद से उत्प्रेरित अच्छे चित्रों का निर्माण सन 1935 से प्रारंभ होता है, जब पुणे स्थित प्रभात स्टूडियो के लिए महात्मा के नाम से वी. शांताराम ने एक कथा-चित्र बनाया। उन्हीं दिनों गांधी जी ने अस्पृश्यता के विरोध में अपनी आवाज़ उठाई थी और इस फ़िल्म का निर्माण उसी के आधार पर किया गया था। महाराष्ट्र के संत के रूप में गांधी जी से मिलता-जुलता एक ऐसा चरित्र उसमें प्रस्तुत किया था जिसने स्पष्ट शब्दों में अस्पृश्यता को युग का सबसे बड़ा अभिशाप घोषित किया था। 'मिल' में अहिंसात्मक उपायों से अपने अधिकार प्राप्त करने पर ज़ोर दिया गया था, और 'अमृत-मंथन' में बलि-प्रथा के विरोध में आवाज़ उठाई गई थी।

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साहित्यिक निबंध में
मनमोहन सरल का आलेख
कला और महात्मा गांधी

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दृष्टिकोण में
प्रवीण शुक्ला की व्यक्ति-विवेचना
गांधी और गाँधीगिरी

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संस्मरण में
समीर लाल का मर्मस्पर्शी चित्रण
मैं गांधी से मिला हू

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अन्य पुराने अंक

सप्ताह का विचार
कर्तव्य का पालन ही चित्त की
शांति का मूलमंत्र है।
प्रेमचंद

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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