हास्य व्यंग्य

ऊँट किस करवट बैठेगा
—गुरमीत बेदी


बड़ा अजीब आदमी है, मुझ से पूछ रहा है कि ऊँट किस करवट बैठेगा? जैसे ऊँट न हो गया, जोरू का गुलाम हो गया या फिर कठपुतली नेता हो गया जो वही करेगा, जो हाईकमान चाहेगा। अरे भई, ऊँट तो ऊँट होता है। एकदम से भिन्न प्रजाति का जीव। उसकी अपनी विल पावर होती है और अपनी मर्ज़ी। वह सरकारी कर्मचारी की तरह हर काम नियम और कानून की पोथी देखकर थोड़े ही करता है और न ही तबादले के नाम पर वह डरता है। उसे जिधर के आदेश होते हैं, वह मुँह उठाकर उधर चल देता है। वह डी. ओ. नोट जुटाने के चक्कर में नहीं पड़ता और न ही मिमियाते हुए सत्ता के गलियारों के चक्कर काटता है।

ऊँट अपने फ़ैसले स्वतंत्र रूप से लेता है। वह अमेरिका के इशारे पर नहीं चलता। अमेरिका अगर धौंस दिखाए तो वह उसकी उपेक्षा करने का हौसला रखता है। उसे पता है कि राष्ट्रीय स्वाभिमान क्या होता है और कैसे उसकी रक्षा की जाती है। उसे प्रजातंत्र के सही मायने मालूम हैं और यह भी मालूम है कि उसके अपने कुछ मौलिक अधिकार हैं। वह इन अधिकारों का पूरे आत्म सम्मान के साथ प्रयोग करता है। उसका जिधर चाहे दिल करे, वह उसी करवट बैठ लेता है। उसकी करवट दायीं ओर भी हो सकती है और बायीं ओर भी। अगर मूड में आए तो वह आसमान की तरफ़ मुँह उठाकर भी बैठ सकता है।

अपनी जम्हूरियत में भले ही सत्ता किसी के हाथ में और सत्ता का रिमोट किसी दूसरे के हाथ में हो लेकिन जहाँ तक ऊँट का सवाल है, वह अपने दिमाग़ का रिमोट अपने पास रखता है और किसी को यह इल्म नहीं होने देता कि वह किस करवट बैठने जा रहा है। ऊँट की नेचर काफ़ी हद तक उन अफ़सरों से मिलती है जो सरकारी निर्णयों की फ़ाइल किसी भी करवट दबा कर लेट जाते हैं और हुकूमत इसी खुशफहमी में रह जाती है कि योजनाओं के लाभ नीचे तक पहुँच रहे हैं। वैसे ऊँट की नेचर उन लीडरों से भी मिलती है जो जन सेवा के नाम पर वोट हासिल करते हैं और फिर राजधानी में पहुँचकर कबूतरबाज़ बन जाते हैं।

ऊँट किस करवट बैठेगा, यह जानना उतना ही मुश्किल है, जितना मुश्किल यह जानना है कि सरकारी बाबू फ़ाइल पर क्या नोटिंग चढ़ाने जा रहा है या फिर अपने दो प्रेमियों की जूतमपैजार में प्रेमिका किस का पक्ष लेने जा रही है। वैसे देखा जाए तो ऊँट का मिजाज़ अपनी क्रिकेट टीम से भी काफ़ी हद तक मिलता-जुलता है। अपनी टीम के बारे में हम निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकते कि उसका ऊँट किस करवट बैठेगा। ऐसे लगता है जैसे अपनी टीम और ऊँट के बीच में काफ़ी अंडरस्टैंडिंग है। दोनों किसी तरफ़ भी करवट ले सकते हैं। इसी तरह ऊँट की फ़ितरत वोटरों से भी मिलती है। वोटर के बारे में भी यकीनी तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि वह किस तरफ़ करवट लेकर किस दल की पीठ लगा देगा और किसे सत्ता के घोड़े पर चढ़ा देगा। वोटर तो इतना चालू है महाराज, कि वह इस बात की भी हवा नहीं लगने देता कि मतदान से पहले जो उसे दारू की बोतलें या कंबल दे गया था, उसने उसे भी वोट दिया है या नहीं। वोटर की करवट और ऊँट की करवट एक जैसी होती है...अनप्रिडिक्टेबल!

जो शादीशुदा किस्म के मर्द हैं, वह यह भी कह सकते हैं कि ऊँट और उनकी पत्नियों के मूड की अनिश्चितता एक- समान होती है। पत्नियों के बारे में यकीनी तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि वे दिन को सहेलियों के साथ किस मुद्दे पर गप्पबाजी करेंगी और शाम को किन मुद्दों पर पति परमेश्वरों से दो-दो हाथ करेंगी। किस दिन वे मायके जाने की धमकी देंगी और किस दिन सचमुच में मायके चल देंगी। यानी मामला ऊँट के करवट लेने की तरह समानात्मक है...डिफरात्मक नहीं। कुछ पत्नियों की नज़र में ऊँट और पति में कोई फ़र्क नहीं होता क्यों कि दोनों को भगवान ने बोझा ढोने के लिए धरती पर भेज रखा है। वैसे कहा भी जाता है कि गृहस्थ जीवन में एक फेज़ ऐसा भी आता है जब आदमी ऊँट ही हो जाता है और ऊँची गर्दन होने के कारण वह अपने सिवा सब कुछ देख पाता है।

वैसे समाज शास्त्रियों की राय में ऊँट की करवट और पति के रोमांटिसिज़्म में भी कोई अंतर नहीं होता। जिस तरह ऊँट किसी भी तरफ़ करवट लेकर बैठ सकता है, उसी तरह पति सदाचार की माला जपते-जपते कहीं भी मनका फेंक सकता है। यानी संशय की स्थिति ऊँट के करवट को लेकर भी रहती है और पतियों की फितरत को लेकर भी।

वैसे एक बात पूछूँ? चलो मान लो कि ऊँट बैठने से पहले हमें यह बता देता है कि वह किस करवट बैठने जा रहा है तो हम इस खुशी में कौन-सा किला फतेह कर लेंगे और अगर ऊँट हमें अपनी करवट की दिशा के बारे में पहले से नहीं बताता तो हम ऊँट का क्या कर लेंगे? है न, लाख टके की बात!

९ अक्तूबर २००७