घर में आए मेहमानों की आवभगत
में परोसा जाने वाला यह सॉफ़्ट ड्रिंक असल में कितना
नुकसानदायक है इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। नेशनल
सॉफ्ट ड्रिंक एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ
वर्षों में सॉफ़्ट ड्रिंक सेवन में बहुत बढ़ोतरी हुई है।
मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल अस्पताल में हुए शोध से ज़ाहिर
हुआ है कि पिछले बीस सालों में जहाँ एक ओर सोडा सेवन में
वृद्धि हुई है वहीं इसके साथ साथ इसोफेगल केंसर भी इसे
पीने वालों में बढ़ा है। वो इसलिए क्यों कि जब भी हम सोडा
पीते हैं तब हमारे पेट में अम्ल का स्तर बढ़ जाता है। क्या
आप जानते हैं कि एक केन सोडा पीने के बाद करीब ५३.५ मिनट
तक पेट में अम्ल का स्तर बढ़ा हुआ रहता है, इसी से ही हम
अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसका कितना बुरा असर पड़ता है।
सोडा में ख़ास अवयव
फ्रुक्टोज़ होता है, आजकल शक्कर की जगह पर फ्रुक्टोज़
कौर्न सिरप का इस्तमाल भी किया जाता है। हमारे शरीर में
इसका पाचन यकृत में होता है तथा ऐसा माना जा रहा है कि यदि
ज़्यादा मात्रा में इसका सेवन किया जाए तो यकृत में ठीक
वैसी ही दिक्कत महसूस हो सकती है जैसी कि शराब पीने से
होती है। आजकल कैलोरी को ध्यान में रख कर बहुत से लोगों का
झुकाव डाइट सोडा पर हो गया है पर उसमें एस्पार्टेट का कुछ
अनुपात होता है जिसका विपरीत असर हमारी अंतस्रावी
ग्रंथियों पर पड़ता है। एस्पार्टेट को न्यूरोटोक्सिक (तंत्रिकाओं
का नाशक) भी माना जाता है। सामान्यतः सभी प्रकार के सोडा,
चाहे कार्बोनेटड हों या नान-कार्बोनेटड, या फिर ऐसे पेय जो
कि तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं उन सभी में कैफ़ीन की
मात्रा होती है। कैफ़ीन से तो हम सभी वाक़िफ़ हैं ही कि यह
एक प्रकार का उत्तेजक होता है, जो कि शरीर की एड्रिनल
ग्रंथि को किसी खुराक के बिना भी उत्तेजित कर सकता है।
इससे तुरंत तो व्यक्ति अपने अंदर ऊर्जा महसूस करता है पर
जल्दी ही थक भी जाता है। और तो और, शरीर को कैफ़ीन की आदत
बहुत आसानी से लग जाती है। अजी, ऐसी तुरंत मिलने वाली
ऊर्जा का शरीर पर फ़ायदा होने की बजाय नुकसान ही होता है।
हमारी लार का pH
७.४ होता
है अर्थात लार थोड़ी क्षारीय होती है पर जब भी हम सोडा
पीते हैं हमारी लार का pH घट कर ७ हो जाता है यानि कि लार
क्षारीय न होकर हल्की अम्लीय हो जाती है। लार का अम्लीय
होने से दाँतों पर से केल्सियम आयन निकलने लगते हैं, जिससे
दाँत की ऊपरी परत, जिसको इनेमल कहा जाता है, का क्षय बहुत
तेज़ी से होने लगता है। इसलिए दंत रोग विशेषज्ञ अम्लीय
प्रकृति के पेय पीने की सलाह नहीं देते हैं।
ब्रिटिश यूनिवर्सिटी में
सॉफ्ट ड्रिंक में डाले जाने वाले प्रिजर्वेटिव पर शोध की
गई और नतीजे वाकई चौंका देने वाले मिले। शोध के अनुसार
बहुत से कोल्ड ड्रिंक जैसे फेंटा, पेप्सी आदि में डी. एन.
ए. के महत्त्वपूर्ण भाग को नष्ट करने की क्षमता होती है।
प्रिजर्वेटिव के रूप में ड्रिंक में सोडियम बेन्जोएट डाला
जाता है। सोडियम बेन्जोएट यदि विटामिन सी के साथ मिलाया
जाता है तो यह बेन्जीन बन जाता है जो कि एक कैंसर-जनक है।
पिछले वर्ष फूड स्टेंडर्ड एजेन्सी ने अपने सर्वे में जब
बहुत लोकप्रिय चार ब्रांड में बेन्जीन की मात्रा बहुत
ज़्यादा पाई तो तुरंत ही उनकी बिक्री बंद करने का कदम भी
उठाया। इसी से संबंधित एक शोध शेफेल्ड यूनिवर्सिटी में भी
हुई, १९९९ में एक पेपर भी छपा, जिसमें मॉलेक्यूलर बायलोजी
तथा बायोटेक्नोलोजी के प्रोफ़ेसर डॉ. पाईपर ने सोडियम
बेन्जोएट का जीवित यीस्ट की कोशिकाओं पर असर देखने के लिए
एक जाँच की और पाया कि कोशिकाओं का शक्ति स्थल मानी जाने
वाली इकाई माइटोकोन्ड्रिया नष्ट हो गई।
इतने नुकसान के बावजूद
कोल्ड ड्रिंक की बिक्री दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। असल
में इसका विज्ञापन भी इसी उद्देश्य से किया जाता है। पहले
जितनी मात्रा में कोल्ड ड्रिंक एक केन में आता था अब कंपनी
ने उसकी मात्रा भी बढ़ा कर दुगुनी से ज़्यादा कर दी है।
१९९८ में तो सॉफ़्ट ड्रिंक का सेवन ५६.१ गैलन प्रति व्यक्ति
हो गया था। २००४ में यह ७ प्रतिशत कम हो गया, पर इसे कम
होना नहीं माना जा सकता क्यों कि तब ज़्यादातर लोग डाइट
सोडा पर आ गए। सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियाँ कई बिलियन रुपए तो
सिर्फ़ विज्ञापनों में ही खर्च करती हैं। विज्ञापन ख़ास
तौर पर खेलने के पार्क, बच्चों के खिलौने, कार्टून, क्लब,
चैरिटी या फिर विभिन्न प्रतियोगिताएँ आयोजित कर युवाओं और
बच्चों को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं। जिनका प्रचार
प्रसार फिर रेडियो, टीवी, इंटरनेट आदि के माध्यम से किया
जाता है। इतनी मेहनत की कीमत भी बहुत होती है। विज्ञापन
में ज़्यादातर क्रिकेट के मशहूर खिलाड़ी, लोकप्रिय अभिनेता
या बड़ी जानी मानी हस्तियाँ ही होती हैं ताकि युवा पीढ़ी
उनसे प्रभावित होकर सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करे।
विशेषज्ञों के शोध के अनुसार जो व्यक्ति एक केन प्रतिदिन
पीते हैं उनमें मोटापे का खतरा ३१ प्रतिशत ज़्यादा होता है, उन लोगों में उच्च
रक्तचाप की संभावनाएँ २५ प्रतिशत अधिक होती हैं और तो और
३२ प्रतिशत उम्मीद ज़्यादा होती है कॉलेस्ट्रॉल का स्तर
बढ़ने की। इसके अलावा सोडा से बहुत नुकसान शरीर पर होते
हैं। सोडा सेवन से कैल्शियम की कमी होने लगती है, जिससे
हड्डी कमज़ोर हो जाती है इसे ऑस्टियोपोरेसिस भी कह सकते
हैं। सोडा पीने से मूत्र ज़्यादा बनने लगता है तथा इससे
शरीर में लवण की कमी हो जाती है।
इतना लोकप्रिय कोल्ड
ड्रिंक कितने बुरे असर शरीर पर छोड़ देता है इसका अनुमान
लगाना कठिन है। लुभावने तरीक़े से परोसा जाने वाला यह पेय
असल में एक प्रकार का ज़हर है जो धीरे-धीरे बहुत-सी
बीमारियों को जन्म देता है। हमारे देश में पेय में शरबत,
नींबू पानी, लस्सी, छाछ इत्यादि परोसा जाता था। समय के
साथ-साथ कुछ बदलाव तो आते ही हैं और यदि बदलाव सकारात्मक
हों तो कितना अच्छा हो। अपनी अच्छी सेहत के लिए अब बहुत
ज़रूरी हो गया है कि हम सचेत होकर अपने खान पान को पसंद
करें। तो बस फिर सेहत का ख़याल करें, सेहत आपका ख़याल
करेगी। |