|
उसका नाम लीना है।
पहले ही बता दूँ कि जैसा आम कहानियों में होता है यह नाम असली
नहीं है।
एक बार मैंने एक कहानी में असली नाम लिख दिया था। बहुत बवाल हो
गया था। कहानी का नायक, जिसे मैंने खलनायक की तरह चित्रित कर
दिया था, वह मेरी जान का दुश्मन हो गया था। देख लिया? झूठ
बोलने में कितना लाभ रहता है? और सच कितना ख़तरनाक? कितना
जानलेवा?
हाँ तो बात हो रही थी लीना की।
लीना किसी एशियाई देश की है।
देखा, मैं फिर बात गोल कर गई। कितना चालाक होना पड़ता है अपनी
जान बचाने के लिए। हम लोगों को अपनी जान की इतनी चिंता रहती है
कि झूठ पर झूठ बोलते चले जाते हैं। और उस पर दावा यह करते हैं
कि सारे समाज को रास्ता दिखाने के लिए बस एक हम ही हैं। हम ही
चिराग हाथ में लिए चल रहे हैं।
हाँ! तो बात चल रही थी लीना
की। यहाँ अमेरिका में रहती है। क़रीब दस बारह सालों से। मैं तो
बस चार साल से ही जानती हूँ। इन चार सालों में लीना को मैंने
कभी उदास नहीं देखा।
|