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मैं गाँधी से मिला हूँ!!
समीर लाल
उस रात कुछ
मित्र परिवारों के साथ जुआघर गया। सभी मित्र हिंदुस्तानी थे। दरवाज़े पर पहुँचते ही हम
ठिठक गये। मेरे मित्र के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा-वो देखो
गाँधी जी! एकाएक धक्का लगा-कहाँ ये जुआघर और यहाँ कहाँ गाँधी
जी!
फिर भी हम पलटे तो देखा लॉबी के दायीं ओर एक मंचनुमा पत्थर
पर मेनीकुइन - आदमी जो पुतला बना खड़ा रहता है, गाँधी जी के
रुप में खड़ा था। कभी ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी तमाशा में
गाँधी के मेनीकुइन के बारे में पढ़ा था आज साक्षात देख रहा
हूँ वैसा ही माजरा। गाँधी-जुआघर में। गाँधी-लोगों को जुआघर
में आने का निमंत्रण देता, गाँधी-एक जिंदा पुतला, न हिलता न
डुलता, बस तटस्थ भाव से सबको ताकता गाँधी। जिन अंग्रेजों को
कभी अपनी चुप्पी से डरा देने वाला गाँधी- आज उनके मनोरंजन का
साधन बना बेबस खड़ा गाँधी। मेरे इन्हीं कानों ने सुना पास से
गुजरती उस अंग्रेज महिला की फुसफुसाहट को-लुक, हाऊ क्यूट इज
दिस गाँधी!! कोई कहता-पुअर गाँधी, लुकिंग सो स्वीट!! वेरी
सेक्सी! इन बातों को सुनकर भी बिना हिले डुले खड़ा लाचार
गाँधी-सेक्सी गाँधी-क्यूट गाँधी। मैंने यह नायाब नज़ारा
देखा। जिस गाँधी की पाँच सौ रुपये के नोट पर तस्वीर अंकित
है। लगभग उतने रुपये घंटा अर्जित करने के लिये खड़ा मजबूर
गाँधी
लॉबी में हालाँकि हीटींग
रहती है मगर फिर भी दरवाज़ा बार-बार खुलते बंद होते रहने के
कारण काफी ठंडा रहता है वहाँ का माहौल। उस माहौल में जैकेट और कनटोपों से ढके लोगों को लुभाता सिर्फ़ एक धोती पहने
अर्धनग्न खड़ा गाँधी। पेट की भूख मिटाने के लिए हर कष्ट सहता
गाँधी-बेचारा गाँधी।
शराबियों और जुआरियों का
आकर्षण का केंद्र बना गाँधी शायद सबसे पापुलर आदम पुतला है।
ऐसा मैंने सुना वहाँ पर सबसे ज़्यादा माँग और बिकने वाला गाँधी।
लोग उसे देख कर हँसते हैं, चुटकुला बना गाँधी। लोग आते जाते
थे, थोड़ी देर खड़े होकर गाँधी जी को निहारते थे और उनके कँधे
पर टंगे झोले में कुछ लोग चंद रुपये भी डाल जाते थे। चार
घंटे की ड्यूटी के बाद खुशी खुशी उन पैसों को गिनता गाँधी।
छद्म मगर बिल्कुल असली सा दिखता गाँधी वरना मेरा दोस्त कैसे
पहचान जाता। बनावटी, पुतला मगर सांस लेता पुतला और अपनी
पलकें झपकाता पुतला-बिना हिले डुले खड़ा- अविचलित गाँधी। न
कोई नेम प्लेट, न ही वो कुछ बोलता फिर भी सब जान जाते हैं वो
गाँधी है-मौन खड़ा गाँधी। गाँधी की नुमाइश लगता गाँधी।
मैंने पहले भी देखा है भारत
में नव-धनाढ्यों
को पार्टियों में आर्केस्ट्रा की धुन पर थिरकती नर्तकियों पर
पाँच सौ के नोट पर सजे गाँधी को लुटता। गाँधी हवा में उड़ाया
जाता है, फिर ज़मीन पर गिरता है और फिर उठकर उन नर्तकियों के
ब्लाउज़ में कहीं खो जाता है। मैंने यह भी देखा है कि हर बड़ी
दो नंबर डील में गाँधी ही प्रचलन में है, छोटे नोट किसी को
गिनने और संजोने का समय नहीं। उन छोटे नोटों पर गाँधी भी
नहीं है, वो इस प्रचलन से बाहर हैं। उन्हें गाँधी का
आशीर्वाद नहीं है। मैंने लिफ़ाफ़ों पर थूक से गाँधी को
चिपकते देखा है, भारतीय डाक विभाग की टिकटों के माध्यम से।
उसी गाँधी को जो बापू के नाम से जाना जाता है। उसी गाँधी की
तस्वीर के नीचे बैठकर नेताओं को देश का सौदा करते देखा है।
किंतु आज यह ज़िंदा गाँधी।
विदेश में नौकरी करता गाँधी- बिना हिले-डुले-एकदम सीधे खड़ा
लोगों के आकर्षण का केंद्र बना-पुरातन गाँधी सबको जुआधर में
खेलने को लुभाता गाँधी।
मैं दोस्तों के साथ जुआ
खेलने जुआघर के भीतर चला जाता हूँ और यह पुतला गाँधी- मेरे
मानस पटल से होता हुआ मेरे भीतर समा जाता है। मैं अपने लिए
स्कॉच का एक गिलास आर्डर करता हूँ। सिगरेट के धुएँ का छल्ला
बना कर उस गाँधी की याद को उड़ा देने की असफल कोशिश करता हूँ।
सिगरेट के धुएँ के छल्ले में गाँधी, मगर यह गाँधी मुझ पर
छाया है। कुछ असहज-सा महसूस कर रहा हूँ। घुटन से बचने को मैं
वापस बाहर लॉबी में आ जाता हूँ। गाँधी की तरफ़ निगाह जाती
है। उसकी ड्यूटी ख़त्म हो गई है। वो मंच से उतर रहा है, उसकी
जगह अब सद्दाम हुसैन खड़ा है। उसके पहले उसी मंच पर चार्ली
चेपलीन खड़ा था। चार्ली चेपलीन से लिया मंच सद्दाम हुसैन को
सौंप कर गाँधी मंच से उतर जाता है। लोग ताली बजा रहे हैं और
गाँधी मुस्करा रहा है। फिर नम्बर आता है उन लोगों का जो
गाँधी के साथ फ़ोटो खिंचवा रहे हैं। हर फ़ोटो के लिए चंद
रुपए जेब में ठूँसता गाँधी। महिलाओं के साथ चिपक कर फ़ोटो खिंचाता
गाँधी, बेबस मगर मुस्कराता गाँधी। दस मिनट फ़ोटो
सेशन के बाद गाँधी पीछे एक कमरे में चला गया। पाँच मिनट बाद
निकला। अब वो जींस टीशर्ट पहने था-एक नये रुप में गाँधी।
जींस टीशर्ट पहने गाँधी।
मैं उसके नज़दीक जाता हूँ
और उससे उसका नाम पूछता हूँ। वो कहता है, जावेद खान! गुजरात,
भारत। और पूछता है कि क्या आप भी भारत से हैं? मैं हामी में
सर हिला देता हूँ और उसके साथ-साथ बाहर आ जाता हूँ। वो जेब
से सिगरेट निकाल कर जला लेता है। पाँच मिनट पहले का गाँधी अब
सिगरेट पी रहा है। मैं उसे ग़ौर से देखता हूँ। मुझमें कोतुहल
है। मैं उससे पूछता हूँ कि यार, यह सब क्यों करते हो, बड़े
मेहनत का काम है और तिस पर से गाँधी। वो बोला कि भईया, पेट
का सवाल है, क्या करूँ? पाँच साल पहले आया था, कोई काम नहीं
मिला। एक दोस्त ने यह नौकरी लगवा दी। पहले नेहरु बना, नहीं
चला। लोगों को मैं पसंद नहीं आया, फिर सुभाष, उसमें भी फेल
हो गया, कोई पहचान ही नहीं पाता था। तब जाकर गाँधी बना और
भाई, मैं हिट हो गया। यहाँ गाँधी बिकता है, सब उसे जानते
हैं। खूब पैसा मिल जाता है। परिवार भारत में है, उनको पैसा
भेजना होता है हर महीने। अगर गाँधी न बनूँ तो मैं भी भूखा मरूँ और भारत में परिवार भी। ऐसा
गाँधी जो चार घंटे बिना
हिला डुले खड़े रह कर फिरंगियों और सैलानियों का मनोरंजन करके
पैसे कमाता है ताकि एक मुसलमान जावेद का पेट भर सके और भारत
में उसका परिवार जी सके।
वो गाँधी, जो जावेद को पाल
रहा है, जावेद से गाँधी और फिर गाँधी से जावेद. . .और फिर घर
जाने के लिए बस का इंतज़ार करता जावेद जो तीन दोस्तों के साथ
कमरा शेयर करता है। जिस दिन जावेद थक जाता है या बीमार होता
है, उस दिन गाँधी नहीं बन पाता और भूखा सोना पड़ता है। गाँधी
को आराम नहीं, वो फिरंगियों की नौकरी करता है। नहीं करेगा तो
यह मुसलमान जावेद विदेश में भूखा मर जाएगा और परिवार भारत
में।
मैं इस गाँधी से मिला हूँ!!
१ अक्तूबर
२००७ |