1
  पुरालेख तिथि-अनुसार
   //   पुरालेख विषयानुसार //  फेसबुक पर   

 लेखकों से // तुक कोश // शब्दकोश // पता-


१. १२. २०२२

इस माह-

अनुभूति-में-
केतन यादव, श्रीधर आचार्य शील, दर्पण चंडालिया, आशीष मिश्रा, शशिकांत गीते और भोलानाथ की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

संयुक्त अरब अमीरात - एक ऐसा देश जहाँ सबसे ऊँचा, सबसे बड़ा और सबसे महँगा की होड़ लगी रहती हैं वहाँ अजब गजब चीजें देखकर ...आगे पढ़ें

घर-परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल प्रस्तुत कर रही हैं, दही वाले आलू की व्यंजन विधि।

बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है- चम्पा की देखभाल।

स्वाद और स्वास्थ्य में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है- कॉफी क्रीमर के विषय में।

जानकारी और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि दिसंबर महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

वे पुराने धारावाहिक- जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी भी याद करते हैं इस शृंखला में जानें सुरभि के विषय में।

नवगीत संग्रहों और संकलनों से परिचय की शृंखला में- अनामिका सिंह का नवगीत संग्रह- न बहुरे लोक के दिन - संग्रह की भूमिका से।

वर्ग पहेली-३५६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य-और-संस्कृति-में

समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है- अमेरिका से इला प्रसाद की कहानी- सांताक्लाज हँसता है

हो, हो हो! सांताक्लाज हँसता है।
उसके साथ हँसते हैं वेरा, बेन और जेनी। उसे घेर कर नाचते हैं।
वेरा उसकी दाढी छूकर देखती है- कितनी मुलायम और ठंढी… बर्फ के फाहे लगे हुए… उत्तरी ध्रुव से आता है सांता… चिमनी से घर में घुसता है और बैठके में क्रिसमस ट्री पर छुपाकर रखे उनके पत्र पढ़ता है। फिर उनकी माँगी चीजें रख जाता है। उसे सब पता है अब। आज पकड़ा गया। वेरा ने सब देख लिया है। वह बाहर झाँक कर देखना चाहती है – सांता की स्लेज बाहर होगी। सुनहले सीगोंवाले हरिण जुते होंगे। क्या उनके सींगों पर भी बर्फ है, उजले हो गये हैं वे भी यहाँ तक आते –आते… वह सांता से बात करना चाहती है, पूछना चाहती है- पिछले तीन सालों से आया क्यों नहीं। लेकिन सांता के फोन की घंटी बजने लगी है। सांता यह जा, वह जा…। बाय-बाय सांता। कम अगेन.. नेक्स्ट ईयर... सांता हँसा – हो, हो…वेरा चौंक कर जागी। सांता आया था।
मॉम रसोई में है। बेन और जेनी सो रहे हैं। वह माँ को बताना चाहती है।
‘गुड मार्निंग मॉम।“
“गुड मार्निंग बेबी।“ ... आगे-

***

विमल सहगल का व्यंग्य
बीत चले त्योहारों के दिन
***

डा. मधु संधु का शोध निबंध
२१वीं शती का प्रवासी उपन्यास: प्रेम के विविध रूप
***

संस्कृति में जाने
जप-माला के अनोखे तथ्य
***

जयप्रकाश चौकसे का दृष्टिकोण-
वर्ष का अंतिम दिन- आनंद और अवसाद के बीच

पिछले अंकों से-

सुधा भार्गव की लघुकथा-
गोवर्धन आनलाइन
***

डॉ. शकुंतला बहादुर का संस्मरण
अमेरिका के इंद्रलोक लास वेगास की ओर
***

प्रकृति और पर्यावरण में अशोक स्वैन
के साथ- जलवायु परिवर्तन का अहसास
***

कला दीर्घा में प्रो. मंजुलता चतुर्वेदी से
जानें- चित्रकार प्रो. उमेश कुमार सक्सेना के विषय में
***

समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है- भारत से शुभदा मिश्र की कहानी- वह मददगार

“हाथ रखिये...” पंडितजी ने कहा।
उन्होंने हथेली खोलकर मेज पर रख दी। मेज के एक तरफ वे बैठी थीं, दूसरी तरफ पंडितजी। पंडितजी गौर से हथेली देखते रहें फिर आँखें सिकोड़कर देखने लगे। दूसरी हथेली की तरफ इशारा किया। उन्होंने दूसरी हथेली भी खोलकर रख दी। उसे भी आँखें सिकोड़े देखते रहे। फिर खिन्नता से दोनो हाथ हटा दिये।
“पंडितजी कुछ बताईये”...वे सहमकर बोलीं।
“क्या बताएँ...कुछ बताने लायक नहीं है।” पंडितजी वितृष्णा से बोले। फिर उनकी तरफ देखकर बोले...“कुछ पढ़ी लिखी हो?” उनकी आँख में पानी आने लगा। साथ आई सहेली बोली... “पंडितजी यह एम.ए. पास हैं। कुछ दिन एक कॉलेज में पढ़ाया भी है।”
बोले...“अपने से की होगी। उसमें भी बहुत मुश्किलें आई होंगी। इनके हाथ में तो है नहीं।“ वे सदमे से बैठी रहीं। फिर कातर सी कहने लगीं- "पंडितजी जब मेरे हाथ में कुछ है ही नही, तब क्या मुझे आत्महत्या कर लेनी चाहिये?"
पंडित जी सतर्क हुए। कुछ सोचकर बोले... आगे-

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसर

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह के पहले सप्ताह मे प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : रतन मूलचंदानी

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org