इस माह- |
अनुभूति में-
गिरिजा कुलश्रेष्ठ, ओंकार सिंह
विवेक, अमित खरे, विनीता तिवारी, कुमार गौरव अजीतेन्दु
और आचार्य भगवत दुबे की रचनाएँ। |
कलम गही नहिं
हाथ- |
दुबई दुनिया के सबसे सुरक्षित शहरों-में-से-एक
है और सरकार ने अपने पुलिस बलों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वाहनों से
लैस करने में कोई कसर
...आगे पढ़ें |
घर-परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल प्रस्तुत कर रही हैं,
हर मौसम में चटपटे स्वाद वाला-
मोटी हरी मिर्च का
मिर्ची सालन। |
बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर
फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है-
पेंटास की देखभाल। |
स्वाद और स्वास्थ्य
में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है-
आइसक्रीम
के विषय में। |
जानकारी और मनोरंजन में |
गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं
कि जुलाई महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म
लिया? ...विस्तार से
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वे पुराने धारावाहिक-
जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी
भी याद करते हैं इस शृंखला में जानें
महाभारत
के विषय में। |
नवगीत से
सम्बंधित संग्रहों और संकलनों से परिचय की शृंखला में इस माह
प्रस्तुत है- हरिहर झा का नवगीत संग्रह-
दुल्हन सी सजीली। |
वर्ग
पहेली-३५१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से |
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हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य-और-संस्कृति-में |
समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है
मनोज सिन्हा की कहानी-
बुल्लू बाबू
तब मैं छोटा था, स्कूल जाने की
उम्र नही हुई थी।
अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ, रिटायर्मेंट बस आने को है। मेरे पास
बुल्लू बाबू और उनके घर की कुछ तस्वीरें हैं। मैं उसे दिखाता
हूँ।
बात अहाते की होगी। तब मैं बच्चा था। सम्मिलित परिवार का ज़माना
था। चाचा-मामा के साथ चिपक कर घूमने-डोलने की उम्र थी। मैं घर
का बड़ा लड़का था, इकलौता, सो प्यार कुछ ज्यादा ही मिला। तब वही
घूमना-डोलना, किंडरगार्डेन हुआ करता था। हमारा बंगला सड़क के
किनारे था। बंगले के बरामदे मे सरदी की खिली गेहुआँ धूप सीधी
आती थी। हम वहाँ धूप सेका करते थे। मेरे बचपन का सबसे बड़ा हैरत
बुल्लू बाबू का घर था। सड़क के उस पार, चार-पाँच घरों को छोड़ कर
एक मज़ार था। मज़ार के बगल से एक कच्ची गली अंदर की ओर जाती थी,
जहाँ पतरिंग-घराने के लोग रहते थे, जो दूध बेचते थे। वहाँ बहुत
सारे लोग रहते थे। सड़क और कच्ची गली के मुहाने पर बुल्लू बाबू
का घर था। तब तक मैने कोई पढ़ाई नही की थी, लेकिन रात के खाने
के बाद दादी किस्से सुनाया करती थी जिसमें किले का ज़िक्र होता
था। आगे-
सीमा हरि शर्मा की
लघुकथा
बदलाव कहाँ से
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इतिहास में रेखा राजवंशी
से जानें
क्या आस्ट्रेलिया के मूल निवासी भारतीय थे?
***
कला दीर्घा में- कवि और कलाकार
अशोक भौमिक से परिचय
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आज-सिरहाने-में-ऋता-शेखर-मधु-के-लघुकथा-संग्रह-
धूप के गुलमोहर पर नमिता सचान सुंदर
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पिछले अंकों से- |
अनूप कुमार शुक्ल
का व्यंग्य
आदमी रिपेयर सेंटर
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सत्यवान सौरभ का आलेख-
पक्षी और पर्यावरण
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कला दीर्घा में- कवि और कलाकार
अमृतलाल वेगड़ से परिचय
***
आज-सिरहाने-में-प्रेरणा-गुप्ता-के-लघुकथा-संग्रह-
सूरज डूबने से पहले पर नमिता सचान सुंदर.
गौरवगाथा में इस माह
प्रस्तुत है
कमलेश्वर की कहानी-
गर्मियों के दिन
चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है।
उसके फाटक पर इन्द्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं। सैयदअली
पेण्टर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्डों को बनाया है। देखते-देखते
शहर में बहुत-सी दुकानें हो गई हैं, जिन पर साइनबोर्ड लटक गए
हैं। साइनबोर्ड लगाना यानि औकात का बढ़ाना। बहुत दिन पहले जब
दीनानाथ हलवाई की दुकान पर पहला साइनबोर्ड लगा था, तो वहाँ दूध
पीनेवालों की संख्या एकाएक बढ़ गई थी। फिर बाढ़ आ गई, और नये-नये
तरीके और बेलबूटे ईजाद किए गए। ‘ऊँ’ या ‘जयहिन्द’ से शुरू करके
‘एक बार अवश्य परीक्षा कीजिए’ या ‘मिलावट साबित करने वाले को
सौ रुपए नकद इनाम’ की मनुहारों या ललकारों पर लिखावट समाप्त
होने लगी। चुंगी-दफ्तर का नाम तीन भाषाओं में लिखा है। चेयरमैन
साहब बड़े अक्किल के आदमी है।, उनकी सूझ-बूझ का डंका बजता है,
इसलिए हर साइनबोर्ड हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी में लिखा जाता
है। दूर-दूर के नेता लोग भाषण देने आते हैं, देश-विदेश के लोग
आगरा का ताजमहल देखकर...
आगे-
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