समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है आस्ट्रेलिया से
रेखा राजवंशी की कहानी
तुम्हारे लिये
तारा
बिस्तर में करवटें बदल रही थी। जैसे-जैसे रात गहरा रही थी
वैसे-वैसे तारा के मन की बेचैनी बढ़ रही थी। मौसम ठीक नहीं था,
सर्दी के मौसम में यहाँ बारिश भी हो जाती है और वैसे भी इस साल
वेट विंटर्स चल रहीं है। तीन चार दिन बरसात होती है और फिर
खुली धूप निकल आती है। इन दिनों ऑस्ट्रेलिया में कोविड की
दूसरी वेव चल रही है। डेल्टा वैरिएँट के कुछ मामले सामने आए
हैं और यह ज़्यादा खतरनाक है।
अब तक चार राज्यों में लॉक डाउन
चल रहा है। तारा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। ऐसी
स्थिति में न भारत वापस जाया जा सकता है, न सिडनी में ठीक से
रहा जा सकता है। न घर से बाहर निकलना संभव है और न घर में इस
तरह बंद होके रहना अच्छा लग रहा है। जब तक पढ़ रही थी तब तक मन
लग रहा था और अब एम फिल की पढ़ाई शुरू होने में अभी एक महीना
बाकी था। इंतज़ार में मन लगाना मुश्किल हो रहा है।
आगे...
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पी राधा और
मैं
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लघुकथा
महके यों ही
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प्रकृति और पर्यावरण में
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मंद बयार
में खनकती हँसी- पद्मा सचदेव
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