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१. ९. २०२

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
रजनीगंधा के आकर्षक फूलों को समर्पित, अनेक रचनाकारों द्वारा रची, ढेर-सी सुगन्धित रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- बरसात के मौसम में दमदार नाश्ते के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- टिक्की, कवाब और पकौड़े

सौंदर्य सुझाव -- बालों से रूसी दूर करने और उन्हें चमकदार बनाने के लिए १ एक नीबू का रस बालों में माँग बनाकर लगाएँ और दस मिनट बाद धो दें।

संस्कृति की पाठशाला- रजनीगंधा का उत्पत्ति स्थान मैक्सिको या दक्षिण अफ्रीका है जहाँ से यूरोप होते हुए इसे १६वीं शताब्दी में भारत लाया गया।

क्या आप जानते हैं? कि रजनीगंधा की खेती भारतवर्ष में फूल एवं सुगन्ध उद्योग के लिये बड़े पैमाने पर की जाती है।

- रचना और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि सितंबर  के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

सप्ताह का विचार- रजनीगंधा का सौंदर्य उसकी सादगी में है और गुण उसकी गंध में। मनुष्य को भी ऐसा ही होना चाहिये। - मुक्ता

वर्ग पहेली-३४१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास में
पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य-और-संस्कृति-के-अंतर्गत- रजनीगंधा-विशेषांक-में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है आस्ट्रेलिया से
रेखा राजवंशी की कहानी तुम्हारे लिये

तारा बिस्तर में करवटें बदल रही थी। जैसे-जैसे रात गहरा रही थी वैसे-वैसे तारा के मन की बेचैनी बढ़ रही थी। मौसम ठीक नहीं था, सर्दी के मौसम में यहाँ बारिश भी हो जाती है और वैसे भी इस साल वेट विंटर्स चल रहीं है। तीन चार दिन बरसात होती है और फिर खुली धूप निकल आती है। इन दिनों ऑस्ट्रेलिया में कोविड की दूसरी वेव चल रही है। डेल्टा वैरिएँट के कुछ मामले सामने आए हैं और यह ज़्यादा खतरनाक है।

अब तक चार राज्यों में लॉक डाउन चल रहा है। तारा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। ऐसी स्थिति में न भारत वापस जाया जा सकता है, न सिडनी में ठीक से रहा जा सकता है। न घर से बाहर निकलना संभव है और न घर में इस तरह बंद होके रहना अच्छा लग रहा है। जब तक पढ़ रही थी तब तक मन लग रहा था और अब एम फिल की पढ़ाई शुरू होने में अभी एक महीना बाकी था। इंतज़ार में मन लगाना मुश्किल हो रहा है।  आगे...
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अरुण अर्णव खरे का व्यंग्य
पी राधा और मैं

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प्रेरणा गुप्ता की लघुकथा
महके यों ही
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प्रकृति और पर्यावरण में
संकलित आलेख- रजनीगंधा फूल

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शशि पाधा का संस्मरण
मंद बयार में खनकती हँसी- पद्मा सचदेव

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पुराने अंकों से-

कुछ रजनीगंधा रचनाएँ-

कहानियों में-

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अंतराल- अनामिका रिछारिया

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कस्तूरी कुंडल बसे- अभिरंजन

गौरवगाथा में-

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गलत गलत- रमेश उपाध्याय

प्रकृति और पर्यावरण में-

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आकाश नीम और कृष्णा हल्दी- प्राण चड्ढा

संस्मरण में-

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लौट के बुद्धू घर को आए- भारतेन्दु मिश्र

और
मन्नू भंडारी की कालजयी कहानी
यही सच है

खट–खट–खट . . .वही परिचित पद–ध्वनि! तो आ गया संजय। मैं बरबस ही अपना सारा ध्यान पुस्तक में केन्द्रित कर लेती हूँ। रजनीगन्धा के ढेर–सारे फूल लिए संजय मुस्कुराता–सा दरवाज़े पर खड़ा है। मैं देखती हूँ, पर मुस्कुराकर स्वागत नहीं करती। हँसता हुआ वह आगे बढ़ता है और फूलों को मेज पर पटककर, पीछे से मेरे दोनों कन्धे दबाता हुआ पूछता है, "बहुत नाराज़ हो?"
रजनीगन्धा की महक से जैसे सारा कमरा महकने लगता है। "मुझे क्या करना है नाराज़ होकर?" रूखाई से मैं कहती हूँ। वह कुर्सी सहित मुझे घुमाकर अपने सामने कर लेता है, और बड़े दुलार के साथ ठोड़ी उठाकर कहता, "तुम्हीं बताओ क्या करता?
नहीं आना था तो व्यर्थ ही मुझे समय क्यों दिया? फिर यह कोई आज ही की बात है! आगे-

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