पी राधा और मैं
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अरुण अर्णव खरे
पीराधा मेरी फ्रेंड लिस्ट की
विशिष्ट श्रेणी में है। सामान्य बुद्धिजीवियों को यह नाम
दक्षिण भारतीय महिला का लगता है, परंतु कुछ एम.फिल. टाइप
के रिसर्चर इस नाम में पी से प्रिय राधा का छायावादी
विस्तार देखते हैं। कुछ दसवीं फेल टपोरी फेसबुकियों को पी
राधा में पुराणिक या पचौरी जैसा कोई हिडन सरनेम दिखाई देता
है। पर इस सबमें जो सबसे अहम है, वह यह कि किसी को भी पी
राधा के महिला होने में कोई संशय नहीं है।
पी राधा प्रारंभ में मेरी विशिष्ट दोस्त नहीं थी। यह
विशिष्टता उन्होंने ही मुझे प्रदान की थी। एक अप्रैल को
उनकी रिक्वेस्ट आई थी और मैंने महिलाओं के प्रति विशेष
अनुग्रह के कारण उसे तुरंत एक्सेप्ट कर लिया था। आप जानते
ही हैं, मैं स्वभाव से परम संकोची हूँ और महिलाओं को लेकर
परम संवेदी भी हूँ। संकोची हूँ, इसलिए किसी महिला मित्र को
मैं आज तक विशिष्टता की श्रेणी में नहीं ला सका था और अति
संवेदनशीलता के कारण ही पिछले दिनों दामिनी की दसवीं बरसी
पर मैंने अकेले ही कैंडल मार्च किया था।
पी राधा की नजरों में चढ़ने का एक अलग ही किस्सा है। कुछ
समय पूर्व उन्होंने न्यूनतम वस्त्रों में किए गए फोटो शूट
की कुछ तसवीरें फेसबुक पर डालीं थी। तस्वीरों पर लाइक का
अंबार लग गया था और कमेंट्स करनेवालों में तो होड़ सी लग
गई थी—एडोरेबल, गोरजियस, रेविशिंग, माइंड ब्लोइंग,
स्पेक्टेकुलर और न जाने क्या-क्या! पढ़कर मेरा अंग्रेजी
ज्ञान समृद्ध हुआ सो हुआ, मुझमें हीनभावना का प्रतिशत डायन
महँगाई की तरह बढ़ गया। मैंने डरते-डरते कमेंट बॉक्स में
सुभान-अल्ला लिखा और भूल गया। थोड़ी देर में ही मेरा
इनबॉक्स डियर संबोधन के साथ रजनीगंधा के फूलों की खुशबू से
महक रहा था। मैं अभिभूत था, पी राधा की पसंद का लालित्य
देखकर...रजनीगंधा कोई सामान्य सा गुलाब या गेंदें का फूल
नहीं होता...यह आभिजात्य वर्ग के खासमखास होने का आभास
देता है...मैं बस पहली फुरसत में ही उनका मुरीद हो गया,
सामान्य से विशिष्टता के बीच की दूरी मिट गई थी, अब मैं भी
किसी का विशिष्ट मित्र था।
इसके बाद से पी राधा की हर पोस्ट में मैं बिना नागा टैग
होने लगा। कई बार तो किसी-किसी पोस्ट पर मैं अकेला ही टैग
किया जाता। जब भी ऐसा होता, स्वभाविक रूप से मैं स्वयं को
अतिसम्मानित महसूस करता। जब भी पी राधा फीलिंग डॉउजी या
फीलिंग लोनली लिखकर टैग करतीं, मैं भी निराशा का अनुभव
करता, पर जब वह फीलिंग जॉयस या हैप्पी लिखती तो मैं भी
चहकने लगता। एक बार तो हद ही हो गई, जब उसने हवा मैं हाथ
फैलाकर एक उछलती हुई फोटो के साथ लिखा—“लव सीज नो
बॉउंड्री...लव इज लिमिटलेस...फीलिंग लव्ड” और केवल मुझे ही
टैग किया। मैंने बहुत मगजमारी की, पर इसका निहितार्थ नहीं
समझ सका। मैंने इस पर कोई कमेंट नहीं किया। संभवत: पी राधा
ने आहत महसूस किया और दो दिन तक इंतजार करने के बाद अपनी
एक दिलकश तसवीर जुगाली करती हुई भैंस के साथ पोस्ट की,
मानो वह उलाहना दे रही हो कि तुम तो इस भैंस सरीखे हो,
जिसे पगुराने के अलावा कुछ नहीं दिखता...खासकर खूबसूरत
नजारे और चेहरे भी। मैंने उत्तर में विनम्रता से एक
पुष्पगुच्छ और एक जीभ निकालकर आँख दबाकर हँसती हुई शरारती
इमोजी भेज दी।
कुछ दिन सन्नाटा रहा। होली आने वाली थी—मैंने सोचा, रंगों
का एक थाल और इक पिचकारी उसको भेजकर इस सन्नाटे को तोड़ूँ,
पर इसके पहले ही ऐन होली के एक दिन पहले सफेद साड़ी में
मुँह लटकाए उसका अपडेट आ गया—“फीलिंग ग्रीव्ड...मदर
लेफ्ट...”।
मैंने रंगों का थाल एक तरफ सरकाकर डिक्शनरी और गूगल की मदद
से एक बेहतरीन शोक संदेश बनाया और उसे भेज दिया। वापसी में
हाथ जोड़ते हुए उसका थैंक्स का संदेश आ गया। दुख की घड़ी
में भी उसका फेसबुकी जज्बा देखकर मेरी आँखें भर आईं। आभारी
मित्रों से उसके अभिन्न लगाव ने मुझे भीतर तक तर कर दिया।
दो-तीन दिनों बाद मैंने उसे दुख से बाहर लाने के दृष्टिकोण
से दो लाइनों की एक तथाकथित शायरी लिख भेजी, बदले में उसने
एक फूल भेज दिया यह लिखकर—“ये फूल नहीं मेरा दिल है”—मैं
तो मरजावाँ वाली स्टाइल में निढाल होते-होते बचा। कुछ
दिनों तक मेरी कुछ लिखने की हिम्मत ही नहीं पड़ी।
एक अप्रैल को उसका नया अपडेट आया—“डिलायटेड टू शेयर विद
यू...ब्लेस्ड विद ए गर्ल बफी।”
“अच्छा तो यह बात है...मोहतरमा शादी शुदा हैं”...मेरे
सामने से उनके पिछले सारे ट्विट या पोस्ट आ-जा रहे थे...तो
ये उसी दिन का प्रतिफल है, जिस दिन मोहतरमा को ‘फीलिंग
लव्ड’ हो रहा था, जो बफी के रूप में सामने आया है। पर ये
बफी नाम कुछ अटपटा लग रहा है, पिल्लों जैसा...पैदा होते ही
कैसा अटपटा नाम रख लिया।
पी राधा ने मुझे सरप्राइज दिया था, अत: मैंने भी उन्हें
सरप्राइज देने की ठान ली और व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर
विश करने का निश्चय कर लिया।
मैंने उनकी पसंद का खास रजनीगंधा के फूलों वाला बुके लिया
और विश की अभिव्यक्ति के लिए एक बहुत ही जहीन किस्म का
कार्ड। अब उसमें कुछ विशेष ही लिखना था—तो एक बार फिर मैं
गूगलजी की शरण में गया। मसाला मिल गया, मैंने लिखा, “विरली
तारीख को विरले ही पैदा होते हैं...गुरु तेग बहादुर, अजीत
वाडेकर और हेडगेवार जैसे रत्न इसी दिन धरा पर अवतरित हुए
थे, आपकी बेटी भी इस शृंखला को और आगे ले जाएगी,
शुभकामनाएँ।”
मैं फेसबुक पर दिया गया उनका पता-19 गोकुल धाम, को खोजता
हुआ शहर के किनारे पर बसे तबेलों तक पहुँच गया। 19 नंबर के
घर के सामने परमवीर यादव की नेमप्लेट टँगी थी। यह सोचकर कि
राधा इनकी पत्नी होगी, मैंने कुंडी खटखटा दी। दरवाजा खोलकर
कंधे पर गमछा डाले एक अधेड़ उम्र के महापुरुष प्रकट
हुए...मुझे देखते ही कमल से खिलते हुए बोले, “अरुणजी आप,
मैं तो धन्य हो गया, आप जैसा महान् लेखक मेरे दरवाजे पर
आया”।
मैं उनकी बातें सुनकर पल भर के लिए यह भी भूल गया कि मैं
यहाँ आया क्यों हूँ। मैं गद्गद हुआ जा रहा था अपनी ख्याति
देखकर, जो तबेलों तक जा पहुँची थी, मेरा सीना तनकर छप्पन
इंच होना चाह रहा था, पर बड़ी मुश्किल से मैंने उसे
पैंतालीस पर रोका, शायद मुझमें इतना सामर्थ्य नहीं था कि
मैं इतने चौड़े सीने का भार सह पाता। धीरे से मैं
वास्तविकता के धरातल आया, पूछा, “पी राधाजी क्या यहीं रहती
हैं।”
“हाँ, यहीं रहती हैं...आज सुबह ही वह दूसरी बार माँ बनी
है, आप अंदर तो आइए।” उन्होंने विनम्रता से आग्रह किया।
मैं अंदर आ गया। वह बोले, “देख राधा, कौन आया है।”
मैंने चारों ओर नजर दौड़ाई, पर वहाँ एक भैंस के अलावा कोई
नहीं दिखाई दिया। वह मेरी परेशानी भाँप गए, बोले, “वह बँधी
है मेरी राधा...परमवीर की राधा।”
मैं औंधे मुँह गिरते-गिरते बचा। परमवीर ने मुझे सँभाला।
मैंने पूछा, “पर राधा की वे तसवीरें...।”
“छोड़िए उन बातों को, मैं दूध दुहने की तैयारी कर रहा था
कि आप आ गए, अब आप जैसा बड़ा आदमी आया है तो यह शुभ काम
आपके हाथों से ही होना चाहिए।” कहते हुए परमवीर ने ‘बफी’
को उसके खूँटे से खोल दिया। मैं बाल्टी लिए भैंस का थन
पकड़े बैठा हूँ, भैंस रजनीगंधा के फूलों पर पिल पड़ी है,
कार्ड पर लिखे वाक्य विरली तारीख पर विरले पैदा होते
हैं—मुँह चिढ़ा रहे हैं और परमवीर...राधा संग मेरी फोटो
लेने में व्यस्त हैं। |