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१. ८. २०२

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, देश और तिरंगे को समर्पित विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- तिरंगी बर्फी और तिरंगा सैंडविच

सौंदर्य सुझाव -- तिरंगे के रंगों को सलाद में शामिल करना स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिये लाभकर है। गाजर, मूली और खीरा खाएँ।

संस्कृति की पाठशाला- भारत रत्न नामक सम्मान की स्थापना २ जनवरी १९५ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी।

क्या आप जानते हैं? कि ईसा-से-७००-वर्ष पूर्व स्थापित तक्षशिला-विश्वविद्यालय-में-३०,५००-से-अधिक विद्यार्थी ६० से अधिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे।

- रचना और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि अगस्त के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

सप्ताह का विचार- सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है।  - श्री अरविंद

वर्ग पहेली-३४०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से


 

हास परिहास में
पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- स्वतंत्रता दिवस विशेषांक

समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है
यू.एस.ए. से डॉ. राम गुप्ता
की कहानी- 'शौर्यगाथा'

झाँसी से क़रीब १५० किलोमीटर और कानपुर से लगभग इतनी ही दूर है महोबा। इस कस्बानुमा शहर को देख कर सोच भी नहीं सकते कि यह अपने अतीत में इतिहास की विशाल धरोहर समेटे है। एक समय था जब महोबा की संपन्नता और समृद्धि दिल्ली से होड़ लेती थी। या यह कहिए कि दिल्ली इसकी वैभवता के सामने टिक सकती थी। ये है उस देस और राज का परिचय- "उस विश्रुत जुझौती में- वेत्रवती-तीर पर, नीर धन्य जिसका, गंगा-सी पुनीत जो, सहेली यमुना की है, किंतु रखती है छटा दोनों से निराली जो।
जिसमें प्रवाह है, प्रपात हैं और हृद हैं, काट के पहाड़ मार्ग जिसने बनाए हैं, देवगढ़-तुल्य तीर्थ जिसके किनारे हैं। देव श्री मदनवर्मा सदन सुकर्मों के राजा हैं, राजधानी है महोबे में। वही मदनवर्मन जिसको सवाई जयसिंह सिद्धराज "देखता था विस्मय से श्रद्धा से भोगी है मदनवर्मा किंवा एक योगी है।" शक्तिशाली चंदेल राज की डोर मदनवर्मन से यशोवर्मन द्वितीय और उससे दो वर्ष के स्वल्प काल के बाद परमादिदेव (परमालदेव) के हाथों में आई। आगे...

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भूपेंद्र सिंह कटारिया का
 व्यंग्य- हमारे नेता जी
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डॉ. सी.पी.त्रिवेदी की कलम से
सांस्कृतिक विरासत का अंग अशोक स्तंभ

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गोपीचंद श्रीनागर का आलेख
डाकटिकटों में राष्ट्र चिह्न
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राजेश्वर प्रसाद नारायण से जानें
वंदे मातरम् की कहानी
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पुराने अंकों से विशेष-

कहानियों में—

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अधूरा सवाल जनतंत्र का- राजेन्द्र त्यागी

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अनन्य– शैल अग्रवाल
 


व्यंग्य में—

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गाँधी जी का टूटा चश्मा

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देश का विकास जारी है
 


लघुकथाओं में-

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गणतंत्र का अट्टहास

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स्वजनतंत्र
 


निबंध में—

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एक और जलियाँवाला- मुंशीगंज गोलीकांड

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क्या आज भी प्रासंगिक है संविधान
 


संस्मरण में—
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पार्षद और झंडा गीत

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महेन्द्र कपूर- देश राग के अनूठे गायक

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