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लेखकों से
१. ९. २०१९

इस माह-

अनुभूति में- हिन्दी दिवस के अवसर पर विभिन्न कवियों की विविध विधाओं में रचित राजभाषा हिंदी को समर्पित अनेक प्रेरक रचनाएँ। 

-- घर परिवार में

रसोईघर में- गरमी के मौसम में नर्म तरावट के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- बनाना मिल्कशेक आइसक्रीम के साथ

स्वास्थ्य में-
२० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं-
१७- नाप में छुपी सफलता।

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव-

कलम गही नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के उन्नीसवें जन्मदिन का अवसर और नवांकुर पुरस्कारों की घोषणा

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (सितंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-  की कलम से आचार्य संजीव वर्मा सलिल के नवगीत संग्रह- सड़क पर का परिचय। 

वर्ग पहेली- ३१७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य-एवं-संस्कृति-के-अंतर्गत- हिंदी-दिवस-विशेषांक-में

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 डॉ.सरस्वती माथुर की कहानी- आयोजन

लाजवंती गोखले एशिया के इस बहुचर्चित और विशाल साहित्यिक उत्सव में जब पहुँची तो फेस्टिवल की शुरुआत हो चुकी थी और रंगायन हॉल में वरिष्ठ रंगकर्मी व फिल्मकार विक्रांत सेठ का 'की नोट' चल रहा थाl बाहर के फ्रंट लॉन में बहुत से लेखक एक गोल मेज के चारों ओर कॉफ़ी पीते हुए सहज बातचीत कर रहे थे। शहर के बीचों बीच बने "लेखक पैलेस" में गत पाँच सालों से पाँच दिवसीय फेस्टिवल हर वर्ष जनवरी में ही आयोजित किया जाता है। सभी से एक ही मंच पर मिलने जुलने का यह अवसर किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाता है !सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक अलग- अलग सत्र और सांस्कृतिक आयोजन चलते रहते हैं। देश विदेश की प्रमुख प्रसिद्ध हस्तियाँ गुलाबी नगर का मुख्य आकर्षण होती हैं। जहाँ निगाह डालो लेखकों का जमघट नज़र आता हैl लेखक पैलेस के बीचों बीच एक लान है जहाँ सर्दियों की ऊनी सी धूप में लेखको के समूह संवाद में डूबे नज़र आते हैं। आगे-
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महेशचंद्र द्विवेदी का व्यंग्य
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी
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अजय कुलश्रेष्ठ का दृष्टिकोण
भाषा की समस्या और उसके संभावित समाधान
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डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी का
आलेख- संविधान में हिंदी
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पूर्णिमा वर्मन से जानें
मध्यपूर्व की हिंदी कहानी

पिछले अंकों-से---

भूपेंद्र सिंह कटारिया
का व्यंग्य - हमारे नेता जी
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मिथिलेश श्रीवास्तव से कला और कलाकार में
कला में आज़ादी के सपने
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सुनील मिश्र का आलेख
महेन्द्र कपूर- देश राग के अनूठे गायक
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पुनर्पाठ में मधुलता अरोरा की कलम से
डाकटिकटों ने बखानी तिरंगे की कहानी

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समकालीन कहानियों में- भारत से
मीरा कांत की कहानी विसर्जन

शहर छोड़ने से पहले एक अंतराल आता है, जब असल में हम वह स्थान छोड़ चुके होते हैं। बस वहाँ होते हैं क्यों कि होना होता है। वह समयावधि 'नो मेन्स लैंड' की तरह होती है। कभी-कभी ज़िंदगी का एक ख़ासा बड़ा टुकड़ा कोई 'नो मैन्स लैंड' की तरह ही जी रहा होता है और जीता चला जाता है। बंसी ने जरा उचककर खिड़की से बाहर झाँका तो बॉटल ब्रश की झुकी शाखाओं को छूकर आती हवा ने उनके बाल छितरा से दिए। वह खड़े हुए। नाक पर चश्मा कुछ ठीक किया और ठहरकर पेड़ को देखा। उन्हें चिढ़ाने के लिए बॉटल ब्रश को कबीर हमेशा वीपिंग विलो कहता था, विपिंग विलो, आपका रोंदू! हवा के अगले झोंके के साथ ही एक परास्त-सी मुस्कान उनकी सारी देह को स्पर्श कर वापस खिड़की से बाहर हो गई - पेड़ के उस पार तक, जहाँ आज तलक वह लगभग पच्चीस साल पुराना एक दृश्य ठिठक खड़ा है।
आगे...

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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