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डाकटिकटों में बखानी तिरंगे की कहानी
-मधुलता अरोरा

पन्द्रह अगस्त को भारतीय तिरंगा एक बार फिर फहराया जाएगा। तिरंगा लहराएगा और भारतीय जनता हल्की फुहारों के बीच भारतीय स्वतंत्रता की इस निशानी को देखेगी, पर स्वतंत्रता का उत्सव मनाने वालों में से बहुत कम लोगों को इस बात का पता होगा कि इस तिरंगे ने अपनी यात्रा कहाँ से शुरू की और यहाँ तक पहुँचने में उसके सहयोगी कौन-कौन रहे?
प्राचीन भारतीयों में ध्वज या झंडे की पूजा की परंपरा थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर में कतार में खड़े चार आदमियों को दिखाया गया है जो एक ध्वज को लिए हुए हैं। महाभारत में भी विभिन्न ध्वजों और उनसे जुड़े धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है। ध्वज के तीन मूल भाग होते हैं। पहला पताका जो लहराता हुआ तिकोना या आयताकार होता है। दूसरा हिस्सा होता है यष्टि या दण्ड, जिसपर ध्वजा को फहराया जाता है, तथा तीसरा खंड होता है केतु जो पताका का प्रतीक चिह्न होता है। महाभारत के महान योद्धा अर्जुन के रथ पर बंदर के चिह्न वाले 'कपि-ध्वज' का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान कपिराज हनुमान जी पताका पर विराजमान थे।

 

फ्रांसीसी क्रांति तथा उससे जुड़े स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा के नारे ने पूरे विश्व को प्रभावित किया। भारतीयों को राष्ट्रीयता के विचार से परिचित कराया। यह कहा जाता है कि जब राजा राम मोहन राय जनवरी, १८३१ में इंग्लैंड जा रहे थे तो वे फ्रांसीसी जहाज़ तक गए ताकि वे फ्रांस के ध्वज को नमन कर सकें। उनके लिए फ्रांसीसी ध्वज मात्र राष्ट्रीय ध्वज नहीं था, बल्कि क्रांति का प्रतीक था और इसी ध्वज में उस महान राष्ट्रवादी देशभक्त ने अपने देश भारत की आज़ादी का सपना देखा था। १८५७ के विद्रोह ने भारत की जनता में राष्ट्रीयता की भावना को हवा दी तथा एक राष्ट्रीय प्रतीक, राष्ट्रीय ध्वज के तले एकजुट होने की ज‍रूरत महसूस कराई। १९०० के आस-पास में स्वदेशी आंदोलन के शुरू होने के साथ ही तात्कालिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता को महसूस किया गया।

स्वामी विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता उन लोगों में से एक थीं जिन्होंने भारत के सबसे पहले राष्ट्रध्वज की रूपरेखा बनाई। १९०४ में जब वे रवीन्द्र नाथ ठाकुर तथा जगदीश चंद्र बोस के साथ बोध गया की यात्रा पर गईं तो वहाँ उन्होंने 'वज्र चिह्न' देखा। वज्र शक्ति का प्रतीक है और युद्ध के देवता इन्द्र का अस्त्र है। निवेदिता ने भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया। इसका आकार चौकोर था और पृष्ठभूमि का रंग लाल था। इसके किनारों पर एक सौ एक ज्योतियाँ थीं और बीच में पीले रंग से वज्र अंकित किया गया था। वज्र के बायीं तरफ़ वंदे अंकित था और दायीं तरफ़ मातरम। ये शब्द पीले रंग में बांग्ला लिपि में लिखे गए थे। उन्होंने लिखा, 'लाल रंग में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक है, पीला रंग विजय का प्रतीक है और सफेद कमल शुचिता का द्योतक है।  


७ अगस्त १९०६ को कलकत्ता में विभाजन विरोधी आंदोलन की पहली जयंती मनाई गई। उस समय पारसी बागान स्क्वेयर (ग्रीन पार्क) में एक विशाल रैली आयोजित की गई। रैली के दौरान तिरंगा झंडे को पहली बार फहराया गया। यह झंडा सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी क अंतरंग अनुयायी शचिन्द्र प्रसाद बोस ने तैयार किया था। इसकी हरी पट्टी पर नीले रंग से वंदे मातरम अंकित किया गया था तथा नीचे की लाल पट्टी पर श्वेत रंग से सूर्य और चन्द्र (अर्ध चन्द्राकार) बने थे। सर सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी ने एक सौ एक पटाखों की ध्वनि के साथ ध्वज फहराया।  

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