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१. ८. २०१९

इस माह-

अनुभूति में-
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, देश और तिरंगे को समर्पित विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- तिरंगा सैंडविच, तिरंगा पुलाव और तिरंगी बर्फी

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- १५- संगीत जो व्यायाम को प्रेरित करे और १६- अभिरुचि जो भूख उड़ा दे।

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव-

कलम गही नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के उन्नीसवें जन्मदिन का अवसर और नवांकुर पुरस्कारों की घोषणा

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अगस्त) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-  जय चक्रवर्ती की कलम से डॉ. ओमप्रकाश सिंह के नवगीत संकलन- नयी सदी के नवगीत का परिचय। 

वर्ग पहेली- ३१६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति के अंतर्गत-  स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में

समकालीन कहानियों में- भारत से
मीरा कांत की कहानी विसर्जन

शहर छोड़ने से पहले एक अंतराल आता है, जब असल में हम वह स्थान छोड़ चुके होते हैं। बस वहाँ होते हैं क्यों कि होना होता है। वह समयावधि 'नो मेन्स लैंड' की तरह होती है। कभी-कभी ज़िंदगी का एक ख़ासा बड़ा टुकड़ा कोई 'नो मैन्स लैंड' की तरह ही जी रहा होता है और जीता चला जाता है। बंसी ने जरा उचककर खिड़की से बाहर झाँका तो बॉटल ब्रश की झुकी शाखाओं को छूकर आती हवा ने उनके बाल छितरा से दिए। वह खड़े हुए। नाक पर चश्मा कुछ ठीक किया और ठहरकर पेड़ को देखा। उन्हें चिढ़ाने के लिए बॉटल ब्रश को कबीर हमेशा वीपिंग विलो कहता था, विपिंग विलो, आपका रोंदू! हवा के अगले झोंके के साथ ही एक परास्त-सी मुस्कान उनकी सारी देह को स्पर्श कर वापस खिड़की से बाहर हो गई - पेड़ के उस पार तक, जहाँ आज तलक वह लगभग पच्चीस साल पुराना एक दृश्य ठिठक खड़ा है। एक विशालकाय हाथी की गर्दन पर बैठा तीन-चार साल का कबीर, जो लगभग लेटकर हाथी के पंखों जैसे कानों को छूने की कोशिश कर रहा है। कभी यह कान तो कभी वह कान। आगे...
*

भूपेंद्र सिंह कटारिया
का व्यंग्य - हमारे नेता जी
*

मिथिलेश श्रीवास्तव से कला और कलाकार में
कला में आज़ादी के सपने
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सुनील मिश्र का आलेख
महेन्द्र कपूर- देश राग के अनूठे गायक
*

पुनर्पाठ में मधुलता अरोरा की कलम से
डाकटिकटों ने बखानी तिरंगे की कहानी

पिछले अंक-में--कुटज विशेषांक से

मुक्ता पाठक की
लघुकथा- कुटज और धरती
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प्रकृति और पर्यावरण में-
सुंदर फूलों वाला वृक्ष कुटज
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
साहित्य में कुटज की उपस्थिति
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पुनर्पाठ में हजारी प्रसाद द्विवेदी
का ललित निबंध- कुटज

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वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ
गौरव गाथा में प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद की
कहानी- चंदा

चैत्र-कृष्णाष्टमी का चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश 'चन्द्रप्रभा' के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंग को छोड़कर धवलित हो रहे हैं, कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरे बह रही है। एक शिला-तल पर बैठी हुई कोलकुमारी सुरीले स्वर से-'दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे! दरद' ...गा रही है।
गीत अधूरा ही है कि अकस्मात् एक कोलयुवक धीर-पद-संचालन करता हुआ उस रमणी के सम्मुख आकर खड़ा हो गया। उसे देखते ही रमणी की हृदय-तन्त्री बज उठी। रमणी बाह्य-स्वर भूलकर आन्तरिक स्वर से सुमधुर संगीत गाने लगी और उठकर खड़ी हो गई। प्रणय के वेग को सहन न करके वर्षा-वारिपूरिता स्रोतस्विनी के समान कोलकुमार के कंध-कूल से रमणी ने आलिंगन किया। दोनों उसी शिला पर बैठ गये, और निर्निमेष सजल नेत्रों से परस्पर अवलोकन करने लगे। युवती ने कहा- तुम कैसे आये?
युवक- जैसे तुमने बुलाया।
युवती-(हँसकर) हमने तुम्हें कब बुलाया? आगे...

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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