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प्रेरक-प्रसंग

धरती की पुकार
- पूर्णिमा वर्मन

एक कुटज का पेड़, शिवालिक की किसी पहाड़ी पर पत्थरों के बीच उगा हुआ था। उसके आस पास ज्यादा पेड़ नहीं थे। कभी कभी उसे अकेलेपन से बेचैनी होने लगती। तब वह इससे उबरने के उपाय सोचने लगता। एक दिन उसने सोचा उसे जो भी दिखाई देगा उसको अपने पास रुकने और बात करने के लिये पुकारेगा। इसलिये अगले ही दिन जब सूरज निकला-

कुटज ने सूरज से कहा रुको रुको क्या तुम थोड़ी देर मेरे साथ रह सकते हो?
सूरज ने कहा कि मैं तो सारे दिन ही तुम्हारे साथ ही हूँ। हाँ रात में चला जाता हूँ ताकि तुम विश्राम कर सको। अगर हर समय मैं ही तुम्हारे साथ रहूँगा तब तो तुम जल जाओगे। इसलिये थोड़ी देर का साथ ही अच्छा है।
ठीक है कुटज ने कहा। सूरज आसमान में था वह जमीन पर नहीं आ सकता था।

रुको रुको कुटज ने सुबह से कहा।
सुबह बोली, नहीं नहीं मुझे जाना है दूर। नहीं रुक सकती मैं। पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर कर कल फिर मिलूँगी। मुझे चलते ही रहना होगा।
चलते रहना क्या होता है कुटज को पता नहीं था। वह सुबह को जाते हुए देखता रहा।

रुको रुको कुटज ने बादलों से कहा-
नहीं नहीं हमें अगले शहर में भी छाया देनी है बादलों ने कहा। शायद हम फिर आ जाएँगे।
बादल नहीं रुके और कुटज उनको जाते हुए देखता रहा।

रुको रुको कुटज ने हवा से कहा-
हवा ने नहीं सुना। बस वह दौड़ती ही रही इधर से उधर, बार बार कुटज के पेड़ से अपने झोंके टकराकर उसने खूब सारे फूल धरती पर बिखरा दिये।

हवा चली गयी पर धरती श्वेत कोमल फूलों से सज गयी। इतने सुंदर फूल पाकर वह खुशी से भर गयी। उसने कुटज से कहा- मेरे बच्चे किसी को भी मत पुकारो। वे लोग रुकने वाले नहीं हैं। सूरज विश्व में उजाला फैलाता है, सुबह विश्व में स्फूर्ति भरती है उन्हें काम करने की ऊर्जा प्रदान करती है। बादल विश्व को जल और छाया देते हैं उन्हें बहुत सारे वृक्षों और लोगों का ध्यान रखना होता है। देखो मैं हूँ तुम्हारे साथ। सदा तुम्हारे साथ रहूँगी। तुम्हारे फूलों से शृंगार करूँगी और तुम्हारी जड़ों की सुरक्षा करूँगी ताकि तुम ऊँचे खूब ऊँचे उठ सको और हर जगह अपनी सुगंध फैला सको।

कुटज ने पहली बार धरती की पुकार सुनी थी। वह समझ गया कि जो लोग जड़ों की सुरक्षा करते हैं वे सदा साथ रहते हैं, बाकी लोगों का आना जाना लगा रहता है। वे जीवन में सहयोग तो करते हैं पर वे साथ नहीं रह सकते। ऊँचा उठने के लिये जड़ों की सुरक्षा करने वालों के साथ रहना सबसे ज्यादा जरूरी है। धरती को भी यह ज्ञान हुआ कि जिसकी जड़े उसकी कोख में हैं उससे बात करते रहना जरूरी है।

१ जुलाई २०१९

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