इस पखवारे- |
अनुभूति
में-1
होली के अवसर पर विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों की रंगों में रची-बसी मनमोहक रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- होली के अवसर हमारी
रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं
मिठाई और
नमकीन की ढेर सी व्यंजन
विधियाँ।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
६- प्रसाधन और फेंगशुई। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
६-
लोबिलिया का नीला सौंदर्य। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
६-
मैरून और क्रीम
का संयोजन |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१५ मार्च को) गुरु हनुमान,
कांशीराम, सनी देओल, हनी सिंह, आलिया भट्ट का जन्म हुआ था...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
संजीव सलिल की कलम से जयप्रकाश श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह-
परिंदे
संवेदना के का परिचय। |
वर्ग पहेली- २६४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
मदनमोहन शर्मा अरविंद की कहानी
होली पर लक्ष्मीपूजन
होली
का नाम सुनते ही अतीत के न जाने कितने चित्र गौरी शंकर की
आँखों के आगे घूम गये। न जाने कितनी यादें थीं जो फिर से मन की
गहराइयों को छू गयीं। टेसू के फूलों का रंग और उसकी महक, ढोलक
की थाप और ढोल की धमक, एकसाथ झूमने-गाने की मस्ती और अकेलेपन
की कसक, सब कुछ जैसे एक पल में महसूस कर लिया उन्होंने।
याद आ गया रामचरन पाण्डे, गुलाल
तो माथे पर चुटकी भर लगाता था पर कम्बख्त बाँहों में भर कर ऐसा
भींचता कि साँस रुकने लगती, साथ में उसका भाई, ‘थोड़ा लगाऊँगा’
कहते-कहते सिर में ढेर सारा रंग डाल कर भाग जाता। याद आये लाला
हजारी मल, पार्वती इस लिये उनसे पर्दा करती कि वे उसके पति से
उम्र में चार दिन बड़े थे। धूल वाले दिन लाला जबरन पार्वती का
घूँघट हटाते, गुलाल लगाते और ठहाका मार कर कहते ‘फागुन में जेठ
कहे भाभी’। पार्वती फिर भी लालाजी के पैर छूती और वे उसे जी भर
कर आशीर्वाद देते। अब कहाँ हैं ऐसे लोग।...आगे-
*
पूनम पांडेय की
लघुकथा- जवाब
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दिनेश का संस्मरण
होली आई होगी
*
परिचय दास का ललित निबंध
आओ व्यक्ति का
वसंत खोजें
*
डॉ. कीर्तिवर्धन की कलम से
होली का महोत्सव |
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सुखविंदर सिंह कौशल की
लघुकथा- पिज्जा
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संजय द्विवेदी से सामयिकी में
क्या शिक्षक हार
रहे हैं
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गुणशेखर की चीन से पाती
पीली नदी की
सभ्यता
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का तेरहवाँ भाग
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुशांत सुप्रिय की कहानी
कहानी खत्म नहीं होती
वे खुद भी एक कहानी थे, एक
लम्बी कहानी और उनके भीतर मौजूद थीं -- अनगिनत कहानियाँ। क्या वे
क़िस्से-कहानियों की खेती करते हैं? हम सारे बच्चे अक्सर हैरान होकर यह सोचते।
छब्बे पा' जी के पास अद्भुत कहानियों का खजाना था। हालाँकि वे हम बच्चों के
पिता की उम्र के थे लेकिन गली में सभी उन्हें पा' जी (भैया) ही कहते थे। प्याज
की परतों की तरह उनकी हर कहानी के भीतर कई कहानियाँ छिपी होतीं। अविश्वसनीय
कथाएँ। उनसे कहानियाँ सुनते-सुनते हम बच्चे किसी और ही ग्रह-नक्षत्र पर चले
जाते। अवाक् और मंत्रमुग्ध हो कर हम उनकी कहानियों की दुनिया में गुम हो जाते।
उनके शब्दों के जादू में खो जाते। परियाँ, जिन्न, भूत-प्रेत, देवी-देवता,
राक्षस-चुड़ैल उनके कहने पर ये सब हमारी आँखों के सामने प्रकट होते या गायब हो
जाते। छब्बे पा' जी की एक आवाज पर असम्भव सम्भव हो जाता, मौसम करवट बदल लेता,
दिशाएँ झूम उठतीं, प्रकृति मेहरबान हो जाती...
आगे-
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