इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-1
नवरात्रि के अवसर पर अनेक रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में ढेर सी काव्य
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- नवरात्रि के शुभ अवसर पर, हमारी रसोई-संपादक
शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
व्रत के लिये फलाहारी व्यंजन।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
३२-
मूर्ति या झरना। |
कलादीर्घा
में-
नवरात्रि के अवसर पर प्रस्तुत हैं दुर्गा की विभिन्न छवियाँ
कुछ लोक-शैली में और
कुछ आधुनिक शैली में। |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
३२-
मूर्ति या झरना |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस सोमवार-
(१२ अक्तूबर को) विजय मर्चेंट, शिवराज पाटिल, अशोक मांकड, प्रोतिमा बेदी, एहसान
नूरानी, कुणाल राय कपूर...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
रामशंकर वर्मा की कलम से राम सेंगर के नवगीत
संग्रह-
रेत की व्यथा-कथा का परिचय। |
वर्ग पहेली- २५४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- नवरात्रि के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
मलेशिया से
मनीषा श्री की कहानी
रेडियो मेरी
जान
खुली बाहें पसारे, साल भर एक
जैसा सदाबहार मौसम और दिन में कम से कम एक बार बारिश का मज़ा
देने वाला यह शहर चाहे पर्यटक हो या प्रवासी दोनों को ही अपनी
मीठी भाषा में सलामत देतंग कहता है, यानी कि “मलेशिया में आपका
स्वागत” है। तो समझिये कि लगभग दो साल पहले स्वाती और यश ने जब
अपने वतन भारत को मुंबई के छोर से अलविदा कहा तो परदेश में
मलेशिया के कुआलालंपूर के छोर ने उन्हें सलामत देतंग कहा। यह
स्वागत हर प्रवासी की तरह उनके लिये भी उत्सुकता और आशंका से
भारा हुआ था। कड़ी व्यस्ता और दौड़ के साथ सामंजस्य बैठाते दो
साल कैसे बीते पता ही नहीं चला। तब से पहली बार भारत जाकर लौटी
है स्वाती, पिछली बार दशहरे और दिवाली पर भारत नहीं जा सकी थी,
त्योहार सूने से रहे थे, इस बार भी यश की व्यस्तता के कारण
उन्हें जल्दी कुआलालंपूर लौटना पड़ा है। भारत से लौटने के बाद
कुछ दिन मन अनमना सा रहता है। सुबह यश को ऑफिस और कीर्ति को
स्कूल भेज कर स्वाती जब वापिस घर में घुसी तो घर का इतना
काम... आगे-
*
मुक्ता के शब्दों में
पुराण कथा-
दुर्गा नाम का रहस्य
*
भगवतशरण उपाध्याय का
ललित निबंध -
नारी
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाक-टिकटों और प्रथम दिवस आवरणों में दुर्गा
*
पुनर्पाठ में देव प्रकाश की कलम
से
दुर्गा पूजा का
संस्कृतिक विश्लेषण |
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संकलित प्रेरक प्रसंग
बाज का पुनर्जन्म
*
राजेश्वर प्रसाद सिंह का आलेख
भूकंप क्यों आते हैं
*
संजीव सलिल का रचना प्रसंग
नवगीत की अंतरात्मा
छंद
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का सातवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
रत्ना ठाकुर की कहानी
श्वानकथा
यह
कहानी काल्पनिक न होकर पूरी तरह वास्तविक घटनाओं पर आधारित है
और इसका बहुत से जीवित और मृत पात्रों से सम्बन्ध संयोग न हो
कर तथ्य पर आधारित है। लिहाज़ा लेखिका को भय है कि कहानी के
प्रकाशन के बाद कुछ उच्च पदस्थ भद्र लोग अपने बचपन की करनी
उजागर करने के लिये उस पर जानलेवा हमला कर सकते हैं। उम्मीद है
कि पाठक लेखिका को बचाने के लिए दुआ करेंगे।
ट्रेन की सीटी बजे हुए दस मिनट गुजर चुके थे। तीन जोड़ी
पैर घर के बरामदे में चहल कदमी कर रहे थे। लग रहा था जैसे समय
रुक गया हो। “चिकमंगलूर" बाबू दूर-दूर तक कहीं नज़र नहीं आ रहे
थे। “चिकमंगलूर” नाम आप को शायद अजीब लगे पर इस नाम के पीछे भी
एक कहानी थी। जिस दिन इंदिरा गाँधी “चिकमंगलूर” से जीत कर आयीं
थीं, उसी दिन पापा के ऑफिस के इन बाबू साहब की पोस्टिंग पास के
जिले में हो गई थी, लिहाज़ा दफ्तर के लोगों ने इनका नाम
“चिकमंगलूर” रख दिया था। बेचारे तब से इस लम्बे चौड़े नाम को
ढोते हुए...
आगे-
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