इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
शशिकांत गीते, राकेश जोशी, रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति, सरस्वती माथुर और जगदीश
जोशी साधक की
रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- होली के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.एस.ए. से
सुषम बेदी की कहानी-
कितने कितने
अतीत
इधर
कुछ दिनों से कौशल्या बस एक ही शिकायत करती थकती न थी। हर किसी
से वही कहानी दुहरायी जाती। पहले तो निजी परिचारिका से कहा-
हाय हाय मुझसे नहीं देखा जाता वह आदमी। मेरी टेबल पर ही बिठा
दिया है उसको। हर वक्त नाक बहती रहती है, मुँह से लार टपकती
रहती है और वह मुँह में खाना डालता रहता है। न नाक साफ करता है
न लार। खाने के साथ लार भी... छिछि, घिन होती है मुझे। मैं
नहीं बैठ सकती उस मेज पर। परिचारिका बोली-तो क्या हुआ? तुमको
तो कुछ नहीं कहता। अपना चुपचाप खाता रहता है। और जो नाक गिरती
रहती है खाने में? तो क्या मुझको फरक नहीं पड़ता। मुझसे नहीं
देखा जाता। उल्टी आती है उसे देखकर। कम से कम नाक तो साफ कर
ले। खाने के साथ साथ नाक भी निगलता जाता है। कोई उसको कुछ कहता
क्यों नहीं?
मिस शर्मा। मार्क (यही उसका नाम था) बेचारे को अपना तो होश
नहीं। वह क्या करेगा नाक साफ। कोई नर्स तो पीछे पीछे घूम नहीं
सकती जो नाक साफ करती फिरे।
आगे-
*
प्रेरक प्रसंग
बंदरों का
मनोविज्ञान
*
देवी नागरानी की कलम से
रचनाकार राधेश्याम शुक्ल
*
अम्बरीष श्रीवास्तव का आलेख
कहानी बाँसुरी
की
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पुनर्पाठ में राजेन्द्र प्रसाद
सिंह का आलेख
भोजपुरी साहित्य में नीम
आम और जामुन |
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शशिकांत गीते की
लघुकथा-
आस्था
*
प्रोफेसर हरिमोहन के साथ
पर्यटन
माँझीवन का
सौन्दर्य लोक
*
विजय बहादुर सिंह के शब्दों में
एक और निराला
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का पहला भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
गोविन्द उपाध्याय की कहानी-
एक टुकड़ा सुख
रिक्शा स्टैण्ड पर उसने रिक्शा
खड़ा करके अपना पसीना पोंछा। नगरपालिका के नल से चंद घूँट पानी
निगलने के पश्चात उसके गले की जलन तो शांत हो गई, लेकिन खाली
पेट में पानी का प्रवेश पाकर, आमाशय विद्रोह कर उठा। पेट के
मरोड़ को सहन करने के साथ ही वह अपने धचके हुए पेट को सहलाने
लगा। उसे अपने रिक्शे की तरफ आती दो युवतियाँ दिखायी दीं।
अंग्रेजी सेंट की खुशबू उसकी नाक में समा गयी। वह गहरी साँस के
साथ, ढेर सारी खुशबू फेफड़ों में समा लेना चाहता था, किंतु
फेफड़ों ने साथ ही नहीं दिया। वह पास आती युवतियों को देखता हुआ
अपने व्यवसायिक अंदाल में बोल पड़ा- ‘आइए मेम साहब, कहाँ
चलेंगी?’
‘इम्पीरियल टाकीज।’
‘आइए बैठिए।’
‘कितने पैसे लोगे?’
‘दस रुपए।’
अरे नहीं। बहुत ज्यादा है। पाँच रुपये लोगे?
आगे-
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