इस सप्ताह- |
अनुभूति में-
मृदुल शर्मा, धर्मेन्द्र कुमार
सिंह,
इंदु जैन,-कृष्ण
कन्हैया और राधेकांत दवे की रचनाओं के साथ खबरदार कविता। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- देश-विदेश के व्यंजनों की शृंखला में इस
बार शुचि प्रस्तुत कर रही हैं इतालवी व्यंजन भारतीय स्वाद में-
पेन्ने पास्ता
मरीनारा सॉस के साथ। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर,
फिर से सहेजें रूप बदलकर-
कोस्टरों के उपहार पत्र। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
पत्र। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों से
पूर्व प्रकाशित जसवंत सिंह विरदी की पंजाबी
कहानी का
हिंदी रूपांतर-
खुले आकाश में।
|
वर्ग पहेली-१२२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में भारत से
अलका सिन्हा की कहानी-
एका
हमें साथ
रहते छह महीने हो चुके थे और हम एक - दूसरे का नाम तक नहीं
जानते थे। उन्होंने भी इस बीच मेरे बारे में कुछ नहीं जानना
चाहा और मैंने तो वादा ही कर रखा था। इसी शर्त पर तो हम साथ रह
रहे थे। फिर भी, हम एक - दूसरे के बारे में काफी कुछ जानने लगे
थे, मसलन वे जान चुके थे कि मुझे बड़बड़ाते रहने की आदत है,
मुझे पता लग गया था कि जब वे मेज बजाते तब वे बेचैन हुआ करते
थे। ऐसी ही कुछ बातें थीं, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद की। फिर
भी, नाम से बेहतर रिश्ते होते हैं और हमारे बीच पहली मुलाकात
से ही एक रिश्ता बन गया था।
हमारी
मुलाकात भी बहुत अजीब-से हालात में हुई थी। पूरी तरह टूट और
बिखर कर, मैं इस गाँवनुमा शहर के पार्क के एकांत कोने में
सिमटी पड़ी थी। शाम पर रात की रंगत चढ़ने लगी थी और धीरे-धीरे एक
सन्नाटा पसरता जा रहा था। मगर दिन और रात से बेखबर,
अँधेरे-उजाले से नावाकिफ मैं कुछ तय कर पाती कि एक बुज़ुर्ग
मेरे सामने आ खड़ा हुआ। "बेटी, मुझे यहाँ के किसी ओल्ड होम
में पहुँचा दो तो बड़ी मेहरबानी होगी।"
आगे-
*
संजीव निगम का व्यंग्य
मैं तेरा मेहमान
*
राजीव रंजन प्रसाद का यात्रा वृत्तांत
नालंदा, बख्तियार खिलजी और हमारी शिक्षा के दायरे
*
त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा
संपादित
कुंडलिया छंद के सात
हस्ताक्षर से परिचय
*
पुनर्पाठ में अमृता प्रीतम के संस्मरण
छोटा सच बड़ा सच |
अभिव्यक्ति समूह
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पिछले
सप्ताह- |
१
सूरज प्रकाश की लघुकथा
विकल्पहीन
*
दिवाकर वर्मा का आलेख-
मध्य प्रदेश का
गीत परिदृश्य
*
आशारानी लाल का रेखाचित्र
स्तब्धता
*
पुनर्पाठ में गुरुदयाल सिंह प्रदीप से
विज्ञान-वार्ता- स्मृति
विस्मृति का ताना बाना
*
समकालीन कहानियों में भारत से
संतोष श्रीवास्तव की कहानी-
एक कारगिल और
उतरती फरवरी की गुलाबी
शामें। मुम्बई
का मौसम सहता-सहता सा खुशगवार। दरवाजा खुला था। जूते बाहर ही
उतारने पड़े। वे सोफे पर बैठी थीं और दरवाजे के पास ही बने ऊँचे
से मन्दिर में दीया जल रहा था। अगरबत्ती के धुएँ की सुगन्ध
चारों ओर फैली थी।
’’आओ बेटी...हमने पहचाना नहीं,‘‘ उन्होंने बूढ़ी आँखो पर
चश्मा फिट किया।
’’मैं उमा की सहेली हूँ। स्कूल से कॉलेज तक हम दोनों साथ-साथ
पढ़े हैं। मैं तो आपको देखते ही पहचान गई। उमा के रिसेप्शन पर
मिली थी न आपसे।‘‘
’’अब उतना कहाँ याद रहता है। हो भी तो गए पाँच साल।‘‘ तब तक
उमा के ससुर बाहर निकल आए। मुझे देख इशारा किया बैठने का। मेरे
बैठते ही सामने के सोफे पर से गद्दियों के पीले सफेद रंग से
मेल खाती दो बिल्लियाँ कूदीं। मैं चौंक पड़ी, वे मुस्करा
दीं-’’बड़ी शैतान हैं दोनों।‘‘ फिर दोनों को गोद में बैठाकर
प्यार करने लगीं। कमरे में काँच...
आगे- |
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