इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
हरसिंगार के रूप रस गंध
में डूबी, विविध विधाओं में निखरी, अनेक रचनाकारों की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
हरसिंगार विशेषांक में
साहित्य संगम में इंतिजार
हुसैन की उर्दू कहानी का हिंदी रूपांतर-
हिंदोस्तान से एक खत
जान से
प्यारे, सौभाग्य व प्रताप के प्रतीक, बरखुर्दार कामरान, खुदा
लम्बी आयु करे! तुम्हें देखने की इच्छा और दुआओं के बाद मालूम
हो कि यह समय तुम्हारी खैरियत न मालूम होने की वजह से बहुत
बेचैनी में गुजरा। मैंने हर तरह से खैरियत भेजने और खैरियत
मँगाने की कोशिश की मगर बेकार। एक चिट्ठी लिखकर इब्राहीम के
बेटे युसुफ को भेजी और आग्रह किया कि इसे तुरन्त कराची के पते
पर भेजो और उधर से जो चिट्ठी आये मुझे वापसी डाक से रवाना करो।
तुम्हें पता होगा कि वह कुवैत में है और अच्छी कमाई कर रहा है।
बस इसी में वह अपनी औकात भूल गया और पलटकर लिखा ही नहीं कि
चिट्ठी भेजी या नहीं और उधर से जवाब आया या नहीं आया। शेख
सिद्दीकी हसन खान का बेटा लन्दन जा रहा था तो उसे भी मैंने एक
खत लिखकर दिया था कि उसे कराची के लिए लिफाफे में बन्द करके
लन्दन के लैटर बॉक्स में डाल देना। ...
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पूर्णिमा वर्मन की लघुकथा
सुअवसर की प्रतीक्षा
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शोभाकांत झा का
ललित निबंध- हरसिंगार
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डॉ. सरस्वती माथुर का आलेख
प्रकृति का उपहार- हरसिंगार
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पुनर्पाठ में डॉ. सुधा पांडे की पुराण कथा
— नंदनवन का
पारिजात |
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पिछले सप्ताह-
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१
इंद्रनाथ मदान का व्यंग्य
बहानेबाजी
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स्वाद एवं स्वास्थ्य में
चीड़फल चिलगोजा
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शिखा वार्ष्णेय की पुस्तक
स्मृतियों में रूस- से परिचय
*
पुनर्पाठ में गजाला जैगम का
नगरनामा- मौसम मेरे शहर के
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समकालीन कहानियों में
भारत से
जयनंदन की कहानी-
बाबा का चोला
‘संसार मिथ्या है....ईश्वर ही
परम सत्य है’। सोहाने गड़ेरी को बहुत गुस्सा आता था यह वाक्य
सुनकर....जब संसार मिथ्या है तो साले तू हिमालय की बर्फ में
जाकर जम क्यों नहीं जाता! क्यों शहर-शहर जाकर लाखों की
गुरू-दक्षिणा और चढ़ावा वसूलते रहते हो और अपने आलीशान आश्रम
में संपूर्ण कुनबों के साथ अय्याशी करते हो ? शहर में बाबाओं
की बाढ़ आ गयी थी। हर सप्ताह किसी न किसी कोने में बाबा हाजिर।
विशाल पंडाल... भव्य मंच...पुष्पसज्जित नयनाभिराम राजसी
सिंहासन... बाबा विराजमान.....लंबी दाढ़ी, लंबे बाल या फिर पूरी
तरह सफाचट, तन में गेरूआ चोंगा...मुख मण्डल से प्रवचन रूपी
अमृत वर्षा जारी...उसमें सामने बैठकर भींगते हुए भारी संख्या
में श्रद्धालू भक्तजन। (प्रवचन को वह शब्दों की जुगाली और
श्रोताओं को बुद्धि के द्वार बंद किये हुए एक निरीह प्राणी
समझता रहा था।)
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