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प्रकृति का
उपहार : हरसिंगार !
–डॉ.
सरस्वती माथुर
हरसिंगार
वनस्पति जगत का एक ऐसा सुंदर वृक्ष है जिसके सुगन्धित फूलों की
महक दूर- दूर तक इसकी उपस्थिति का आभास करा देती है। इन मनमोहक
फूलों को देख कर ही शायद विश्वकवि रविंद्रनाथ टैगोर ने ये
पंक्तियाँ लिखी होंगी ----
"हे सुंदर तुम आए थे प्रात: आज
लेकर हाथों मैं अरुणवर्णी पारिजात !"
साहित्य और संस्कृति में हरसिंगार के इसी महत्व के कारण भारत
में पश्चिम बंगाल राज्य में इसे राज्य के आधिकारिक फूल का
सम्मान प्राप्त है। थाईलैंड के कंचनबूरी प्रांत का यह आधिकारिक
पुष्प है।
अनेक नाम
हरसिंगार को पारिजात, प्राजक्ता, शेफाली आदि नामों से भी जाना
जाता हैl इसे संस्कृत में पारिजात, शेफालिका, हिन्दी में
हरसिंगार, परजा, पारिजात। मराठी में पारिजातक या प्राजक्ता,
गुजराती में हरशणगार, बंगाली- शेफाली, शिउली, तेलुगू में
पारिजातमु, पगडमल्लै, तमिल में पवलमल्लिकै, मज्जपु, मलयालम में
पारिजातकोय, पविझमल्लि, कन्नड़ में पारिजात, उर्दू में गुलजाफरी
तथा अँग्रेजी में- कोरल जेस्मिन के नाम से जाना जाता है। इसका
वैज्ञानिक नाम- निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस है।
भारतीय मूल का वृक्ष
यह एशियाई निक्टैन्थिस प्रजाति का वृक्ष है तथा दक्षिण एशिया
इसका घर है। उत्तरी पाकिस्तान से लेकर नेपाल, पूरे उत्तर भारत
से होते हुए थाईलैंड तक में यह आराम से उगता है। इस झाड़ी या
छोटा पेड़ कहा जा सकता है। लगभग दस मीटर तक ऊँचे इस पेड़ की
छाल जगह जगह परत दार सलेटी से रंग की होती है। पत्तियाँ हल्की
रोयेंदार छह से बारह सेमी लंबी और ढाई से.मी. चौड़ी होती हैं।
अलग अलग प्रजातियों में इसकी पंखुरियों की संख्या पाँच से आठ
तक होती है जो एक केसरिया वृंत से जुड़ी होती हैं। ये फूल दो
से सात तक एक गुच्छे में खिलते हैं। इसका फल चपटा भूरा तथा अलग
अलग प्रजातियों के अनुसार अंडाकार से लेकर हृदयाकार तक दो सेमी
व्यास का होता है, जिसमें दो भाग होते हैं और प्रत्येक भाग में
एक बीज होता है। निकटैन्थिस वंश के पौधे की एकमात्र यही एक
प्रजाति है जिसका मूल भारत में है। पवन चक्की के आकार वाले
इसके फूल अगस्त से दिसम्बर तक अपनी शोभा बिखेरते हैं l वे
गोधूलि की बेला के साथ ही खिल उठते है और पौ फटते ही यह झड़ने
लगते हैं। यह बड़ा उल्लसित और सुवासित करने वाला दृश्य होता
है, जब वृक्ष के नीचे श्वेत और केसरिया के चमकते फूलों का
कालीन सा बिछ जाता है। हरसिंगार के लिये छावदार स्थान, रेतीली
दुमट भूमि जिसमें रेशेदार पीट, रेत और लकड़ी का कोयला मिलाया
गया हो, बहुत उपयुक्त है। इसके पौधे वर्षा और वसंत ऋतु में बीज
लगाकर तैयार किये जाते हैं। कहते हैं कि हरसिंगार की कलम लगाना
आसान नहीं है। इसलिये इसे दुर्लभ वृक्षों मानते हुए भारत सरकार
ने इसे संरक्षित वृक्षों की श्रेणी में रखा है।
पौराणिक उल्लेख
हर सिंगार की उत्पत्ति के विषय में कथा मिलती है कि पारिजात का
जन्म समुद्रमंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी
वाटिका में रोप दिया। पाँडवों के अज्ञातवास के समय श्रीकृष्ण
ने इसे स्वर्ग से लाकर उ.प्र. के बाराबंकी जनपद अंतर्गत रामनगर
क्षेत्र के गाँव बोरोलिया में लगाया था। यह वृक्ष आज भी वहाँ
देखा जा सकता है। हर सिंगार नाम से इसका संबंध शिव जी से भी
जोड़ा जाता है। हरिवंश पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि माता
कुंती हरसिंगार के फूलों से भगवान शिव की उपासना करती थीं। धन
की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये भी हरसिंगार के
पुष्पों का प्रयोग किया जाता है।
पुराणों में एक स्थान पर कहा गया है कि पारिजात वृक्ष को छूने
से नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। बौद्ध साहित्य में भी
इन फूलों का उल्लेख है। ऐसा माना जाता है कि इन फूलों को सुखा
कर बौद्ध भिक्षुकों के लिए भगवा वस्त्र रंगे जाते थे, जो
स्वास्थ्य वर्धक भी होते थे। यही एक मात्र ऐसा पुष्प है जिसे
तोड़ने का निषेध किया गया है। पूजा के लिये भी इसके झरे हुए
पुष्पों का प्रयोग किया जाता है। इस फूल को शरद की सूचना देने
वाला फूल भी कहते हैं क्यों कि यह शारदीय नवरात्र के समय ही
खिलना शुरू होता है। नवरात्र की पूजा में भी इसका बहुत महत्त्व
होता है।
एक लोककथा के अनुसार पारिजात नाम की एक राजकुमारी भगवान सूर्य
से प्रेम करती थी, लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने
पारिजात को स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी
पारिजात ने आत्महत्या कर ली। जिस स्थान पर पारिजात की समाधि
बनी वहाँ पहले पारिजात वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात
का वृक्ष को रात में खिलता तो है पर सूर्य के आगमन की सूचना के
साथ ही उसके फूल रूपी आँसू झरने शुरू हो जाते हैं।
उपयोगी औषधियों का भंडार
पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है। आयुर्वेद के अनुसार
पारिजात के एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो बावासीर रोग
ठीक हो जाता है। पारिजात के फूल हदय के लिए उत्तम औषधी माने
जाते हैं। इस की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने
से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसकी पत्तियों को पीसकर त्वचा
पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते है। पारिजात की
पत्तियों से बने औषधीय तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर
इस्तेमाल किया जाता है। स्त्री रोगों में पारिजात की कोपल को
प्रयोग काली मिर्च के साथ करने का उल्लेख मिलता है। इसके बीज
लंबे और स्वस्थ बालों के लिये उपयोगी माने गए हैं इसकी
पत्तियों के रस को पुराने बुखार की औषधि के रूप में उपयोग में
लाया जाता है। आसाम के सब्जी बाज़ार में इनके फूलों को बेचा
जाता है जहाँ इन्हें उबालकर सूप तैयार कर के पीने का प्रचलन
हैं। माना जाता है कि यह सूप सेहत के लिए गुणकारी होता है।
इसकी सुगंध का उपयोग इत्र व अगरबत्ती बनाने में भी किया जाता
है।
भारत के प्राचीन ऋषियों का मानना था कि इसकी गंध आत्मा की
शुद्धि करती है। आज भी कहा जाता कि यह खुशबू आत्मा कि शुद्धि
तो करती ही है साथ ही, याददाश्त भी तेज करती हैl पाश्चात्य
मान्यताओं के अनुसार इसकी खुशबू में बीती हुई स्मृतियों को
उत्तेजित करने की शक्ति भी है जो पुनर्जन्म को समझने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
१८ जून २०१२ |