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शहर में उस रोज़
यह खबर सुलगते देर नहीं लगी कि एक पाकिस्तानी पकड़ा गया है। पर
जब लोगों ने जाना कि वह पाकिस्तानी कोई और नहीं अब्दुल मन्नान
है तो जो चिंगारी शोला बनना चाहती थी यकबयक फुस्स हो गई। पर
फुसफुसाहट नहीं खत्म हुई। किसिम किसिम की बातें, किसिम–किसिम
के आरोप–प्रत्यारोप। बिलकुल घटाटोप। सर्दियों का वह कोई दिन
था। पर शहर में सर्दी पर इस खबर की गरमी तारीं थी।
अब्दुल मन्नान जाति के जुलाहा थे। जुलाहा भले थे अब्दुल लेकिन
जाहिल नहीं थे। पढ़ने लिखने में बचपन से ही अव्वल थे। अंगरेजी
में एम.ए. कर यूनिवर्सिटी टॉप किया और गोल्ड मेडलिस्ट बने। वह
भी तब जब ज़्यादातर मुस्लिम लड़के मदरसे में इस्लामी पढ़ाई भी
पूरी नहीं कर पाते थे। या फिर मदरसा से आगे नहीं जा पाते।
लेकिन अब्दुल ने एम.ए. किया और जुलाहा का बेटा होने के बावजूद
किया। सीमित साधनों में पढ़ लिख कर टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट बन
के अब्दुल ने अपने खानदान का नाम रौशन कर दिया। तभी उन के
इस्तकबाल के लिए उन की ससुराल से भी बुलावा आ गया। उन की
ससुराल तब पूर्वी पाकिस्तान में थी। वह अपनी बीवी के साथ
ससुराल रवाना हो गए। वहाँ भी उन का बड़ा स्वागत हुआ। हालाँकि
शुरू–शुरू में कुछ लोगों ने मन्नान को हिंदुस्तानी जासूस कह कर
बदनाम किया। लेकिन उन के ससुर की वहाँ इतनी धाक थी कि यह दाग
मन्नान के सिर से जल्दी ही हट गया। |