इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
गंगा नदी पर आधारित,
छंदबद्ध एवं छंदमुक्त विविध विधाओं में ढेर-सी रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
गंगा दशहरा के
अवसर पर विशेष
1
वरिष्ठ रचनाकारों की
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में
प्रेमचंद की कहानी-
यह मेरी मातृभूमि है
आज पूरे साठ वर्ष के बाद
मुझे प्यारी मातृभूमि के दर्शन प्राप्त हुए हैं। जिस समय मैं
अपने प्यारे देश से विदा हुआ था और भाग्य मुझे पश्चिम की ओर ले
चला था उस समय मैं पूर्ण युवा था। मेरी नसों में नवीन रक्त
संचारित हो रहा था। हृदय उमंगों और बड़ी-बड़ी आशाओं से भरा हुआ
था। मुझे अपने प्यारे भारतवर्ष से किसी अत्याचारी के अत्याचार
या न्याय के बलवान हाथों ने नहीं जुदा किया था। अत्याचारी के
अत्याचार और कानून की कठोरताएँ मुझसे जो चाहे सो करा सकती हैं
मगर मेरी प्यारी मातृभूमि मुझसे नहीं छुड़ा सकतीं। वे मेरी उच्च
अभिलाषाएँ और बड़े-बड़े ऊँचे विचार ही थे जिन्होंने मुझे
देश-निकाला दिया था। मैंने अमेरिका जा कर वहाँ खूब व्यापार
किया और व्यापार से धन भी खूब पैदा किया तथा धन से आनंद भी खूब
मनमाने लूटे। सौभाग्य से पत्नी भी ऐसी मिली जो सौंदर्य में
अपना सानी आप ही थी। उसकी लावण्यता और सुन्दरता की ख्याति तमाम
अमेरिका में फैली।
विस्तार
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*
डॉ. संसारचंद्र का व्यंग्य
गंगा जब उल्टी बहे
*
भावना सक्सेना का आलेख
सूरीनाम में गंगा
*
नीरजा माधव का ललित निबंध
रुकोगी नहीं भागीरथी
?
*
पुनर्पाठ में डॉ. राजकुमार सिंह
का आलेख- हिंदी काव्य में
गंगा नदी |
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पिछले सप्ताह-
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१
अंतरा करवड़े की लघुकथा
त्याग
*
गोविंद सिंह का आलेख
साहित्य और मीडिया
*
शशि पाधा की कलम से
दृश्य, पटकथा, पात्र- एक संस्मरण
*
पुनर्पाठ में कला और कलाकार के अंतर्गत
जामिनी राय से परिचय
*
समकालीन कहानियों में
भारत से
स्नेलता
की
कहानी-
अम्मा जी का मोबाइल
ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन
टेलीफोन की घंटी बजी, अम्माजी ने टेलीफोन की तरफ देखा, रिंकू
दौड़ कर आया, रिसीवर उठा लिया, शुरू हो गया हाँ-हाँ बोलो कैसा
रहा कल का मैच, कौन-कौन जीता, ...अच्छा हाँ-हाँ ...मम्मी ने
नहीं जाने दिया ...बातें करता रहा।
अम्मा जी सुनती रहीं। कैसे
मजे से बातें कर रहा है। जब पहले दिन फोन लगवाया था तभी रवि ने
कहा, "अम्मा लो कर लो बात, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत
नहीं ... जिस बिटिया से चाहो उससे बैठी-बैठी बातें कर लिया करो। फोन पर आवाज़ कैसी मीठी लगी थी जब रिसीवर में उन्हें छुटकी
की आवाज़ सुनाई पड़ी थी। लगा जैसे सामने ही बैठी हो। कितनी
साफ़ साफ़ आवाज़ सुनाई दे रही थी। बातें करके बिल्कुल ऐसा लगा
जैसे आमने सामने बातें हो रही हो। बस बोलने वाला नहीं दिखाई
देता, मगर कोई बात नहीं, सुनाई तो देता है।
उसके बाद बस अम्मा जी को हर समय लगता कब छुटकी का फोन आए कब
छुटकी अम्मा से बातें करें
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