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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से स्नेहलता की कहानी— अम्मा जी का मोबाइल


ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन टेलीफोन की घंटी बजी, अम्माजी ने टेलीफोन की तरफ देखा, रिंकू दौड़ कर आया, रिसीवर उठा लिया, शुरू हो गया हाँ-हाँ बोलो कैसा रहा कल का मैच, कौन-कौन जीता, ...अच्छा हाँ-हाँ ...मम्मी ने नहीं जाने दिया ...बातें करता रहा।

अम्मा जी सुनती रहीं। कैसे मजे से बातें कर रहा है। जब पहले दिन फोन लगवाया था तभी रवि ने कहा, "अम्मा लो कर लो बात, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं ... जिस बिटिया से चाहो उससे बैठी-बैठी बातें कर लिया करो। फोन पर आवाज़ कैसी मीठी लगी थी जब रिसीवर में उन्हें छुटकी की आवाज़ सुनाई पड़ी थी। लगा जैसे सामने ही बैठी हो। कितनी साफ़ साफ़ आवाज़ सुनाई दे रही थी। बातें करके बिल्कुल ऐसा लगा जैसे आमने सामने बातें हो रही हो। बस बोलने वाला नहीं दिखाई देता, मगर कोई बात नहीं, सुनाई तो देता है।
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उसके बाद बस अम्मा जी को हर समय लगता कब छुटकी का फोन आए कब छुटकी अम्मा से बातें करें ...हाँ अब तो वह अपनी बहन हेमा और कन्नौ से भी बातें कर सकती हैं।
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कई दिन बीत गए, घर में सबका फोन आया, बस उन्हीं का नहीं आया। हर बार जब घंटी बजती अम्मा जी अपने कमरे से निकलकर फोन तक आती.. मगर उनसे पहले ही रिंकू, जगन या रवि या रम्मों कोई न कोई पहुँच जाते।

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