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३०. ४. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
धनंजय सिंह, मनोहर विजय, प्रवीण अग्रवाल, अनीता कपूर और डॉ. भूपेन्द्र कुमार दवे की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- दाल हम रोज खाते हैं, पर कुछ नया हो तो क्या कहने? प्रस्तुत है १२ व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में- राजमा मसाला

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- आकर्षक चीजों के खिलौने-रूप दें

बागबानी में- लीच और घोंघे - अगर लीच और घोंघे बगीचे को बरबाद कर रहे हैं तो पौधों से कुछ दूरी पर एक गहरी थालीनुमा बर्तन में बीयर ...

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ मई से १५ मई २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२१ में हरसिंगार के फूल पर आधारित नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो चुका है। जल्दी ही इसकी समीक्षा प्रकाशित होगी 

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- ९ जनवरी २००४  को प्रकाशित, भारत से रजनी गुप्ता की कहानी— सुबह होती है शाम होती है

वर्ग पहेली-०७९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में ब्रिटेन से
जकिया जुबैरी की कहानी- मन की साँकल

क्या उसने अपने गिरने की कोई सीमा तय नहीं कर रखी? सीमा के आँसुओं ने भी बहने की सीमा तोड़ दी है। इनकार कर दिया रुकने से। आँसू बेतहाशा बहे जा रहे हैं।
वह चाह रही है कि समीर कमरे में आए और एक बार फिर अपने नन्हें मुन्ने हाथों से सूखा धनिया मुँह में रखने को कहे, ताकि उसके आँसू रुक सकें। बचपन में ऐसा ही हुआ करता था कि समीर माँ की आँखों से बहते हुए आँसू देखकर बेचैन हो उठता और लपक कर मसालों की अलमारी के पास पहुँच जाता, उचक उचक कर मसाले की बोतलें खींचने लगता; पंजों के बल खड़े खड़े जब थक जाता तो कुर्सी खींच कर लाता और ऊपर चढ़ कर बोतल में से धनिये के बीज निकाल कर माँ के मुँह में डाल देता कि माँ की आँखों से प्याज़ काटने से जो आँसू बह रहे है वे धनिया मुँह में रखने से रुक जाएँगे।
सीमा मुस्करा देती समीर की मासूमियत भरी मुहब्बत पर। वो शरमा जाता। माँ की टाँगों से लिपटते हुए कहता... विस्तार से पढ़ें...

*

इला प्रसाद की लघुकथा
शिक्षा का मूल्य
*

प्रकृति और पर्यावरण में
अनुपम मिश्र का आलेख- सागर के आगर

*

डॉ. गणपति चंद्र गुप्त से जानें-
इंगलैंड में अँग्रेजी कैसे लागू की गई
*

पुनर्पाठ में कला दीर्घा के अंतर्गत
हेब्बार और उनकी कला से परिचय

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पिछले सप्ताह-


जवाहर चौधरी का व्यंग्य
पधारो जी म्हारा देस
*

शीला इंद्र का संस्मरण
कैसी औरते थीं वे

*

देवर्षि कलानाथ शास्त्री का निबंध
ललित निबन्धों के पुरोधा डॉ. विद्यानिवास मिश्र
*

पुनर्पाठ में प्रभात कुमार से जानें-
आसमान में चित्रकारी-ऑरोरा बोरियोलिस

*

समकालीन कहानियों में भारत से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी- किस रास्ते पर

आज सुबह दस बजे से कमरे में खटपट चल रही है। खिड़की की आधी ग्रिल काट कर के ए.सी. लगाने के लिए जगह बनाई जा रही है। मिस्टर चौधरी के दिमाग में झल्लाहट भरी है। झुँझलाहट सिर्फ खटपट से ही थोड़ी है...उसके लिए तो बहुत से कारण हैं आजकल उनके मन में। वे मन ही मन बड़बड़ाए थे...ये लड़के...सरकारी नौकरी करेंगे और रहना चाहेंगे उद्योगपति के तरीके से। अंजना को लगा था कि वे ए.सी. के ख़िलाफ हैं, उस ने उन्हें मनाते हुए समझाया था ‘‘पापा गर्मी बहुत हो गयी है...माँ की तबियत कितनी ज़्यादा तो ख़राब है। उन्हें पूरा आराम चाहिए...और उनके लिए यही कमरा सही है...घर के एक किनारे पर बना हुआ है सो चौके, बच्चे, आने जाने वाले सबके शोर से दूर रहतीं हैं...फिर बगल में ही पूजा है...कुछ नही तो अपने पलंग पर ही बैठ कर भगवान जी को हाथ जोड़ लेतीं हैं। विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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