इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
एक और होली विशेषांक में
होली के दोहों के साथ ढेर से नए पुराने रचनाकारों के हुरियारे
दोहे। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- दाल हम रोज खाते हैं, पर कुछ नया हो तो क्या
बात? प्रस्तुत है १२
व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में-
अरहर की दाल- लहसुन-टमाटर वाली। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल के शिशु में
सर्दी जुकाम।
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बागबानी में-
बाग-बैठकी
बाग चाहें कई एकड़ का हो या कुछ गमलों का उसमें बैठने का
एक स्थान अवश्य निश्चित करें। दो कुर्सियाँ एक छोटी मेज या
... |
वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१६ मार्च से ३१ मार्च २०१२ तक का भविष्यफल।
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- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
नई कार्यशाला की घोषणा कर दी गई है।
इसका विषय है हरसिंगार। शेष विवरण विस्तार से देखें- |
साहित्य समाचार में-
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों,
सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है- १६ मई २००४ को
प्रकाशित, भारत से ममता कालिया की कहानी—
पीठ।
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वर्ग पहेली-०७२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में भारत
से
बलराम अग्रवाल की कहानी-
अनुगामिनी
पिछले दिनों अनायास ही नितिन को
जब शारीरिक थकावट महसूस होने लगी, भूख कम और प्यास अधिक लगने
लगी तो नीलू चिन्तित हो उठी। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।
पत्नी अगर ठेठ भारतीय हो तो उसे अपने स्वास्थ्य की कम, पति और
बच्चों के स्वास्थ्य की चिन्ता अधिक सताती है। वह तुरन्त किसी
डॉक्टर से सलाह लेने के लिए रोज-रोज उसे टोकने लगी।
नितिन के कार्यालय का हाल यह है कि एक सुपरवाइजर और चार
लिपिक—कुल पाँच कर्मचारियों के सैंक्शन्ड स्टाफ के कामकाज को
पिछले चार साल से लिपिक-स्तरीय केवल दो आदमी सम्हाल रहे हैं—एक
वह और दूसरे सुरेशजी। उन दोनों में से किसी एक का भी छुट्टी
लेना तो दूर, काम में ढील बरतना भी तनाव को न्यौता दे
डालने-जैसा होता है। न टाल पाने वाले अवसरों पर ही वे छुट्टी
ले पाते हैं, वह भी दोनों में से कोई एक। नीलू ने जब देखा कि
उसके कहने का नितिन पर कोई असर नहीं हो रहा है तो रविवार की एक
सुबह उसने स्वयं ही...
विस्तार
से पढ़ें...
*
सिमर सदोष की लघुकथा
आत्महत्या
*
निरंजन महावर से रंगमंच में-
छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य
*
ऋषभ देव शर्मा से पुस्तक परिचय
पारनंदि निर्मला का 'खुला आकाश'
*
पुनर्पाठ में महेश कटरपंच का आलेख
भरतपुर और अजेय दुर्ग
लोहागढ़ |
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पिछले सप्ताह-
होली के अवसर पर |
1
पीयूष पांडेय का व्यंग्य
क्यों न मना सका गब्बर होली
*
सुधा अरोड़ा का संस्मरण
होली की वह दोपहर- जब मैं हवा थी
*
अनुराग शुक्ला व योगेंद्र ठाकुर से जानें
बस्तर और छत्तीसगढ़ की होली
*
पुनर्पाठ में ब्रजेशकुमार शुक्ल
का आलेख- होली खेलें
रघुवीरा
*
समकालीन कहानियों में भारत
से
शीला इंद्र की कहानी-
मिठाई सिठाई
इतनी छोटी-सी तो हूँ मैं। मैं क्या
कहानी-किस्सा कुछ कह पाती हूँ? पर
बात यह हुई कि इस बार होली पर हमारी नई-नई चाची, जिनकी अभी चार
महीने पहले ही शादी हुई है, हमारे यहाँ आने वाली थीं। पर शायद
यह भी कहने की कोई बात नहीं है। मुझे जहाँ तक मालूम है शुरु
में सभी बहुएँ जब मायके से आती हैं, तो थोड़ी-बहुत मिठाई साथ
लाती ही हैं। पिंकी की भाभी दस किलो मोतीचूर के लड्डू लाई थीं।
लाईं तो वह दो-ढाई किलो गुलाबजामुन भी थीं। पर पिंकी मुझे बता
रही थी कि उसकी अम्मा ने सारी गुलाबजामुन छिपा ली थीं, किसी को
भी बताया नहीं। और पाँचू की मामी जब आई थीं, वह भी अपनी माँ के
घर से टोकरों मिठाई लाई थीं। उसकी ननिहाल के शहर के घर-घर में
इतनी मिठाई बाँटी गई कि लोग मिठाई के नाम से भी ऊबने लगे। जब
कभी भी मिठाइयों की बात चलती है,
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