वे दोने बड़ी देर से गाँव
में थोड़ी दूरी पर स्थित लाइनों का पास घुम रहे थे। कभी
इधर से उधर कभी उधर से इधर। वह रेलवे पटरी के इस ओर था, जब
कि वह दूसरी ओर थी। एक से दूसरी ओर जाते हुए जब भी वे एक
दूसरे की सीध में आते, कनखियों से एक दूसरे की ओर देखने
लगते। दोनों एक दूसरे की स्थिति को समझ भी रहे थे।
इसी प्रकार जब काफी देर बीत गयी तो लड़के ने साहस जुटाते
हुए पूछा- आप शायद किसी की प्रतीक्षा कर रही हैं।
-हाँ... और आप? लड़की अब थोड़ा आगे आ गई थी। दोनो रेल पटरी
के साथ वाले कच्चे पथ से थोड़ा ऊपर कटे फटे पत्थरों पर आ
खड़े हुए थे।
-मैं भी किसी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कह कर लड़का फिर
कच्चे पथ पर जिधर से आया था, उसी ओर बढ़ गया। लड़की भी
उसके विपरीत वाली दिशा की ओर चल दी। अब जब वे एक दूसरे के
निकट आए तो उन्होंने एक दूसरे की ओर कनखियों ने नहीं,
अपितु थोड़ा-सा मुस्कुरा कर देखा।
अचानक लड़के ने लड़की के पास आकर कहा- सच बताइये कहीं आप
निराश होकर... नहीं, ऐसा मत कीजियेगा। आप बहुत अच्छी हैं,
सुंदर भी।
लड़का चलने को हुआ तो इस बार लड़की ने पूछ लिया- क्या आप
भी... न-न, कोई गलत कदम न उठाइयेगा। कितने आकर्षक हैं
आप...युवा भी।
-हाँ... इस बार बारी फिर लड़के की थी। - सच कहूँ...आया तो
मैं सचमुच खुदकुशी करने के लिये ही था, किंतु शायद गाड़ी
लेट हो गई हैं।
-मैं भी यदि सच कहूँ तो इरादा मेरा भी कुछ यही था...
किन्तु आप हैं कि यहीं मंडराए जा रहे थे। मेरे आसपास।
इसलिये आत्महत्या का अवसर ही नहीं मिला।
दोनो अब थोड़ा हटकर एक वृक्ष की छाया में जा बैठे थे, एक
दूसरे के सामने।
-एक बात पूछूँ? लड़का जैसे संकोच को तोड़ना चाहता हो- आप
आत्महत्या क्यों करना चाहती थीं? क्या किसी से प्रेम व्रेम
का चक्कर...
-चक्कर नहीं, मैं सच में उससे प्रेम करती थी, परन्तु उसने
मुझसे छल किया...वह शायद मुझसे नहीं मेरे जिस्म से प्यार
करता था... धोखेबाज!... और आप? लड़की थोड़ा आगे सरक आई थी।
-आज मेरा विवाह होना तय था, परन्तु जिससे मेरा विवाह होने
जा रहा था, वह एक रात पहले ही घर से भाग गई... शायद वह
किसी और से प्रेम करती हो... पर मैं तो कहीं का भी नहीं
रहा न! लड़के ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया था।
दोनों बड़ी देर ऐेसे ही बैठे रहे। अचानक धरती पर उपजे कंपन
से दोनों ने जाना कि गाड़ी आने वाली है। अचानक लड़के ने
कहा- मैंने इरादा बदल लिया है... मैं आत्महत्या नहीं करना
चाहता। आप...?
- मैं भी तो मरना नहीं चाहती किन्तु...! अब लड़की ने भी
लड़के का हाथ पकड़ लिया था।
इसी बीच गाड़ी बाएँ से आकर दायें को चली गई। अचानक लड़के
ने पूछा क्या में सचमुच आकर्षक हूँ?
हूँ...! सच में। और मैं क्या सचमुच सुंदर हूँ? लड़की ने
आँखें नीचे झुका लीं थीं।
थोड़ी
देर की चुप्पी के बाद लड़की ने कहा- मुझे घर ले चलो... उसी
वेदी पर जहाँ वह लड़की नहीं आ सकी। मैं...
- नहीं ! वह स्थान शायद आपके
योग्य अब नहीं रहा। हम अपना अलग घर बसाएँगे...आओ चलें।
दोनो एक
दूसरे का हाथ थामे वापस शहर की ओर चल पड़े।
१२ मार्च २०१२ |