इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
ओम निश्चल, सतीश कौशिक,
शारदा मोंगा, जयजयराम आनंद और फजल ताबिश की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों के मौसम में पराठों के क्या कहने ! १५ व्यंजनों की स्वादिष्ट
शृंखला- भरवाँ पराठों में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं-
तिल और
गुड़ के पराठे।
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बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें यदि शिशु एक साल का है-
दाँतो की देखभाल।
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बागबानी में-
दूसरी खाद का समय-
जनवरी में अधिकतर एशियाई देशों के बगीचे मौसमी फूलों से
भरे होते हैं। सितंबर आक्तूबर में जब
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वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१ जनवरी से
१५ जनवरी २०१२ तक का भविष्यफल।
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- रचना और मनोरंजन में |
कंप्यूटर की कक्षा में-
प्रश्नोत्तर-
फेसबुक में किसी भी समूह से कुछ शेयर
कैसे करें?
किसी
भी समूह में किसी स्टेटस को शेयर करने
के लिये
...
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नवगीत की पाठशाला में-
इस सप्ताह कार्यशाला- २० के
लिये नए विषय की घोषणा हो गई है विस्तृत विवरण के लिये देखें- |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है- ९ सितंबर २००४ को प्रकाशित भारत से
डॉ. कुसुम अंसल की कहानी—
पानी का रंग।
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वर्ग पहेली-०६३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- मकर संक्रांति के अवसर पर |
1
समकालीन कहानियों में भारत
से
मीरा सीकरी की कहानी
सच्चो सच
उसने सोचा, घंटी बजाने की क्या
जरूरत है?...छत पर ही तो लोहड़ी जलाई होगी...वह सीधा ऊपर छत पर
ही पहुँच जाती है—सबको वहीं तो होना चाहिए...पन्द्रह दिनों से
वह यहाँ आना-आना कर रही थी...पर अब, जबकि कल-परसों तक उन्हें
पाकिस्तान लौट जाना है—वह अपने को रोक नहीं सकी थी। उसने सोचा,
वह मिलेगी तो जरूर, देखेगी तो सही कि शान्ति बहनजी कैसी दिखती
हैं अब? दिखने शब्द से उसे अपने पर ही हँसी आ गई। पचास की तो
वह खुद होने को आई—वह तो उससे दस-बारह साल बड़ी होंगी। इस उम्र
में क्या दिखना—हाँ,
मिलना कहे तो बात समझ में आती है।
चौतल्ले की छत पर वह पहुँच गई, पर उसकी साँस बुरी तरह फूल रही
थी। छत पर म्यूजिक लगा हुआ था। घर के बच्चे और शायद उनके
दोस्त-यार झूमझाम रहे थे। बीचोंबीच तसले में आग जल रही
थी...कोई कुर्सी हो तो बैठ जाए वह।
उसे लगा, उसे बुरी तरह से चक्कर आ रहा है।
वह बिना किसी की परवाह किये आखिरी सीढ़ी पर ही बैठ गई।
विस्तार
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*
राजेश कमल की लघुकथा
महँगाई डायन
*
महेश परिमल का निबंध
पतंग का अनुशासन
*
रमेश चंद्र का आलेख
सूर्य
उपासना का पर्व मकर संक्रांति
*
स्वाद और स्वास्थ्य में
संक्रांति का सखा तिल |
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पिछले सप्ताह- |
1
विनोद विप्लव का व्यंग्य
कुर्सी में जान डालने की
तकनीक
*
श्रीश बेंजवाल शर्मा के साथ
२०११ का
तकनीकी सफर
*
सुधा अरोड़ा का आलेख
सावित्री बाई फुले
*
पुनर्पाठ में पर्यटक
के साथ- आरामगाह
आस्ट्रेलिया
*
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए.
से
नीलम जैन की कहानी
संस्कार
सुबह की चुप्पी में अचानक
घर्र- घर्र करते ट्रक की आवाज कानों में पड़ी तो मानसी जान गई
कि साढ़े छः बज चुके हैं। हर बृहस्पतिवार को कूड़ा कचरा उठाने
वाली गाड़ी लगभग इसी समय आया करती है।
बुधवार की रात को ही लोग
अपने घर का सप्ताह भर का कचरे का एक बड़ा कूड़ादान घर के आगे,
सड़क के किनारे रख देते हैं। अगले रोज सुबह ट्रक के आगे लगी दो
विशालकाय यंत्रित बाहें बढ़ कर उस बड़े से कूड़ेदान को उठा कर
ट्रक के पीछे वाले खुले मुँहनुमा हिस्से में डालती हैं और वहाँ
एक और चक्की सी मशीन कूड़े को दबाते रौंदते अन्दर खींच लेती है।
उसके बाद यह सभी ट्रक जमा किये कूड़े को शहर के एक खास
व्यवस्थित हिस्से में जाकर फेंक आते हैं। मन ही मन मानसी ने
सोचा कि उसके पति ने उनका कूड़ेदान रख दिया होगा ना. . . वरना
सप्ताह भर घर का कूड़ा बाहर वाले कूड़ादान में भरना मुश्किल हो
जाएगा और
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