1
पतंग का अनुशासन
-
डॉ. महेश परिमल
आकाश में तैरती
रंग-बिरंगी पतंगें भला किसे अच्छी नहीं लगती? एक डोर
से बँधी हवा में हिचकोले खाती हुई पतंग कई अर्थों में
हमें अनुशासन सिखाती हैं, जरा उसकी हरकतों पर ध्यान तो
दीजिए, फिर समझ जाएँगे कि मात्र एक डोर से वह किस तरह
से हमें अनुशासन सिखाती है।
अनुशासन कई लोगों को एक बंधन लग सकता है। निश्चित ही
एकबारगी यह सभी को बंधन ही लगता है, पर सच यह है कि यह
अपने आप में एक मुक्त व्यवस्था है, जो जीवन को सुचारु
रूप से चलाने के लिए अतिआवश्यक है। आप याद करें, बरसों
बाद जब माँ पुत्र से मिलती है, तब उसे वह कसकर अपनी
बाहों में भींच लेती है। क्या थोड़े ही पलों का वह बंधन
सचमुच बंधन है? क्या आप बार-बार इस बंधन में नहीं
बँधना चाहेंगे? यहाँ यह कहा जा सकता है कि बंधन में भी
सुख है। यही है अनुशासन।
अनुशासन को यदि दूसरे ढंग से समझना हो, तो हमारे सामने
पतंग का उदाहरण है। पतंग काफी ऊपर होती है, उसे डोर ही
होती है, जो संभालती है। बच्चा यदि पिता से कहे कि यह
पतंग तो डोर से बंधी हुई है, तब यह कैसे मुक्त आकाश
में विचर सकती है? तब यदि पिता उस डोर को ही काट दें,
तो बच्चा कुछ देर बाद पतंग को जमीन पर पाता है। बच्चा
जिस डोर को पतंग के लिए बंधन समझ रहा था, वह बंधन ही
था, जो पतंग को ऊपर उड़ा रहा था। वही बंधन ही है
अनुशासन। अनुशासन ही होते हैं, जिससे मानव आधार
प्राप्त करता है।
कभी पतंग को आपने आकाश में मुक्त रूप से उड़ान भरते
देखा है! क्या कभी सोचा है कि इससे जीवन जीने की कला
सीखी जा सकती है। गुजरात और राजस्थान में मकर
संक्रांति के अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। इस दिन
लोग पूरे दिन अपनी छत पर रहकर पतंग उड़ाते हैं। क्या
बच्चे, क्या बूढ़े, क्या महिलाएँ, क्या युवतियाँ सभी
जोश में होते हैं, फिर युवाओं की बात ही क्या? पतंग का
यह त्योहार अपनी संस्कृति की विशेषता ही नहीं, परंतु
आदर्श व्यक्तित्व का संदेश भी देता है। आइए जानें पतंग
से जीवन जीने की कला किस तरह सीखी जा सकती है-
पतंग का आशय है अपार संतुलन, नियमबध्द नियंत्रण, सफल
होने का आक्रामक जोश और परिस्थितियों के अनुकूल होने
का अद्भुत समन्वय। वास्तव में देखा जाए तो तीव्र
स्पर्धा के इस युग में पतंग जैसा व्यक्तित्व उपयोगी बन
सकता है। पतंग का ही दूसरा नाम है, मुक्त आकाश में
विचरने की मानव की सुसुप्त इच्छाओं का प्रतीक। परंतु
पतंग आक्रामक एवं जोशीले व्यक्तित्व की भी प्रतीक है।
पतंग का कन्ना संतुलन की कला सिखाते हैं। कन्ना बाँधने
में थोड़ी-सी भी लापरवाही होने पर पतंग यहाँ-वहाँ डोलती
है। याने सही संतुलन नहीं रह पाता। इसी तरह हमारे
व्यक्तित्व में भी संतुलन न होने पर जीवन गोते खाने
लगता है। हमारे व्यक्तित्व में भी संतुलन होना आवश्यक
है। आज के इस तेजी से बदलते आधुनिक परिवेश में प्रगति
करनी हो, तो काम के प्रति समर्पण भावना आवश्यक है।
इसके साथ ही परिवार के प्रति अपनी जवाबदारी भी निभाना
भी अनिवार्य है। इन परिस्थितियों में नौकरी-व्यवसाय और
पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन रखना अतिआवश्यक हो जाता
है, इसमें हुई थोड़ी-सी लापरवाही जिंदगी की पतंग को
असंतुलित कर देती है।
पतंग से सीखने लायक दूसरा गुण है नियंत्रण। खुले आकाश
में उड़ने वाली पतंग को देखकर लगता है कि वह अपने-आप ही
उड़ रही है। लेकिन उसका नियंत्रण डोर के माध्यम से
उड़ाने वाले के हाथ में होता है। डोर का नियंत्रण ही
पतंग को भटकने से रोकता है। हमारे व्यक्तित्व के लिए
भी एक ऐसी ही लगाम की आवश्यकता है। निश्चित लक्ष्य से
दूर ले जाने वाले अनेक प्रलोभनरूपी व्यवधान हमारे
सामने आते हैं। इस समय स्वेच्छिक नियंत्रण और अनुशासन
ही हमारी पतंग को निरंकुश बनने से रोक सकता है। पतंग
की उड़ान भी तभी सफल होती है, जब प्रतिस्पर्धा में
दूसरी पतंग के साथ उसके पेंच लड़ाए जाते हैं। पतंग के
पेंच में हार-जीत की जो भावना देखने में आती है, वह
शायद ही कहीं और देखने को मिले। पतंग किसी की भी कटे,
खुशी दोनों को ही होती है। जिसकी पतंग कटती है, वह भी
अपना ंगम भुलकर दूसरी पतंग का कन्ना बाँधने में लग
जाता है। यही व्यावहारिकता जीवन में भी होनी चाहिए।
अपना ंगम भुलकर दूसरों की खुशियों में शामिल होना और
एक नए संकल्प के साथ जीवन की राहों पर चल निकलना ही
इंसानियत है।
पतंग का आकार भी उसे एक अलग ही महत्व देता है। हवा को
तिरछा काटने वाली पतंग हवा के रुख के अनुसार अपने आपको
संभालती है। आकाश में अपनी उड़ान को कायम रखने के लिए
सतत प्रयत्नशील रहने वाली पतंग हवा की गति के साथ
मुड़ने में ंजरा भी देर नहीं करती। हवा की दिशा बदलते
ही वह भी अपनी दिशा तुरंत बदल देती है। इसी तरह मनुष्य
को परिस्थितियों के अनुसार ढलना आना चाहिए। जो अपने आप
को हालात के अनुसार नहीं ढाल पाते, वे 'आऊट डेटेड' बन
जाते हैं और हमेशा गतिशील रहने वाले 'एवरग्रीन' होते
हैं। यह सीख हमें पतंग से ही मिलती है।
पतंग उड़ाने में सिध्दहस्त व्यक्ति यदि जीवन को भी उसी
अंदाज में ले, तो वह भी जीवन की राहों में सदैव अग्रसर
होता जाएगा। बस थोड़ा-सा सँभलने की बात है, जीवन की डोर
यदि थोड़ी कमजोर हुई, तो जीवन ही जोखिम में पड़ जाता है।
इसीलिए पतंग उड़ाने वाले हमेशा खराब माँजे को अलग कर
देते हैं, जिसका उपयोग कन्ना बाँधने में किया जाता है।
उस धागे से पेंच नहीं लड़ाया जा सकता। ठीक उसी तरह जीवन
में भी उसी पर विश्वास किया जा सकता है, जो सबल हो,
जिस पर जीवन के अनुभवों का माँजा लगा हो, वही व्यक्ति
हमारे काम आ सकता है।
धागों में कहीं भी अवरोध
या गठान का होना भी पतंगबाजों को शोभा नहीं देता।
क्योंकि यदि पेंच लड़ाते समय यदि प्रतिद्वंद्वी का धागा
उस गठान के पास आकर अटक गया, तो समझो कट गई पतंग।
क्योंकि पतंग का धागा वहीं रगड़ खाएगा और डोर का काट
देगा। जीवन भी यही कहता है। जीवन में मोहरूपी अवरोध
आते ही रहते हैं, परंतु सही इंसान इस मोह के पडाव पर
नहीं ठहरता, वह सदैव मंजिल की ओर ही बढ़ता रहता है।
'चलना जीवन की कहानी, रुकना मौत की निशानी' यही
मूलवाक्य होना चाहिए। पचीस या पचास पैसे से शुरू होकर
पतंग हजारों रुपयों में भी मिलती है। इसी तरह जीवन के
अनुभव भी हमें कहीं भी किसी भी रूप में मिल सकते हैं।
छोटे से बच्चे भी प्रेरणा के स्रोत बन सकते हैं, तो
झुर्रीदार चेहरा भी हमें अनुभवों के मोती बाँटता
मिलेगा। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह से
अनुभवों की मोतियों को समेटते हैं।
९ जनवरी २०१२ |