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स्वाद और स्वास्थ्य

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संक्रांति का सखा तिल
-डॉ शशांक वझे


क्या आप जानते हैं?

  • तिल एक ऐसा भोजन है तो मकर संक्रांति के पर्व से जुड़ा हुआ है।
     
  • आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है।
     
  • अलीबाबा चालीस चोर वाली कहानी में खुल जा सिमसिम वाले सिमसिम शब्द का अर्थ तिल है।

तिल एक ऐसा भोजन है तो मकर संक्रांति के पर्व से जुड़ा हुआ है। इस दिन इसको पकाना खाना और दान करना शुभ माना जाता है। आदिकाल से तिल धार्मिक रीति-रिवाजों में इस्तेमाल होता आया है। शादी-ब्याह के मौकों पर हवन आदि में तिल के प्रयोग का पौराणिक महत्त्व सिद्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तिल को बुरी आत्माओं से बचाने वाला माना जाता है। इसके औषधि गुणों के कारण ही इसे स्वास्थ्यवर्धक एवं मानसिक शांति प्रदान करने वाला कहा गया है।

तिल के गुण और प्रकार

आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है। काले और सफेद तिल के अतिररिकत लाल तिल भी होता है। सभी के अलग-अलग गुणधर्म हैं। यदि पौष्टिकता की बात करें तो काले तिल शेष दोनों से अधिक लाभकारी हैं। सफेद तिल की पौष्टिकता काले तिल से कम होती है जबकि लाल तिल निम्नश्रेणी का तिल माना जाता है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि तिल में चार रस होते हैं। इसमें गर्म, कसैला, मीठा और चरपरा स्वाद भी पाया जाता है। तिल हजम करने के लिहाज से भारी होता है। खाने में स्वादिष्ट और कफनाशक माना जाता है। यह बालों के लिए लाभप्रद माना गया है। दाँतों की समस्या दूर करने के साथ ही यह श्वास संबंधी रोगों में भी लाभदायक है। स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध की वृद्धि करता है। पेट की जलन कम करता है तथा बुद्धि को बढ़ाता है। बार-बार पेशाब करने की समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए तिल का कोई सानी नहीं है। चूँकि यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियाँ और लड्डू शीत ऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।

तिल में निहित पौष्टिक तत्व

तिल में विटामिन ए और सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है। इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है। तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।

यह कब्ज भी नहीं होने देता। तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं। तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है। सौ ग्राम सफेद तिल से १००० मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है। तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है। तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।

मकर संक्रांति और तिल

मकर संक्रांति के पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना जाता है। वैसे तो तिल केवल खाने की चीज है, लेकिन इस दिन इसे दान देने की परम्परा भी प्रचलित है। इस दिन तिल के उबटन से स्नान करके ब्राह्मणों एवं गरीबों को तिल एवं तिल के लड्डू दान किये जाते हैं। यह मौसम शीत ऋतु का होता है, जिसमें तिल और गुड़ से बने लड्डू शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि संक्रांति के दिन तिल का तेल लगाकर स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल की आहुति देना, पितरों को तिल युक्त जल का अर्पण करना, तिल का दान करना एवं तिल को स्वयं खाना, इन छह उपायों से मनुष्य वर्ष भर स्वस्थ, प्रसन्न एवं पाप रहित रहता है।

तिल के विभन्न उपयोग

तिल-गुड़ के लड्डू बनाने के अलावा इन्हें ब्रेड, सलाद और मिठाइयों पर सजावट करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अनेक प्रकार की गजक और तिलपट्टी में इनका उपयोग होता है। ब्रेड, नान तथा अन्य प्रकार की रोटियों में भी तिल का प्रयोग होता है। तिल का तेल पूरे विश्व में प्रयोग में लाया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकतला है वह है तैल। तिल का यह तेल अनेक प्रकार के सलादों में प्रयोग किया जाता है। तिल गुड़ का पराठा, तिल गुड़ और बाजरे से मिलाए गए ठेकुए उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। सारे अरबी उप महाद्वीप में तिल को पीसकर उसे जैतून के तेल के साथ मिलाकर हमूस या ताहिनी बनाया जाता है जो दैनिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व्यंजन है। मांसाहार में भी इसका व्यापक प्रयोग होता है। करी को गाढ़ा करने के लिये छिकक्ल रहित तिल को पीसकर मसाले में भूनने की भी प्रथा अनेक देशों में है।

इतिहास में तिल-

जहाँ भारतीय इतिहास में तिल का उल्लेख वेद, चरक संहिता और आयुर्वेद में मिलता है वही अरबी संस्कृति की लोक कथाओं में अनेक स्थानों पर इसका नाम लिया गया है। अलीबाबा चालीस चोर की कहानी में सिमसिम शब्द का प्रयोग तिल के लिये ही किया गया है। यही सिमसिम यूरोप तक पहुँचते पहुँचते बिगड़कर अंग्रेजी सिसेम हो गया। ईसा से ५००० हजार वर्ष पूर्व चीनी ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि तिल निकाले गए तेल से वे लोग न केवल कुप्पियाँ जलाते थे बल्कि कुप्पियों में जमा कालिख से ठप्पे छापने का काम भी किया जाता था। इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि प्राचीन अफ्रीकी, बेन्ने नामक इस खाद्य पदार्थ को अपने साथ अमेरिका लाए जहाँ यह दक्षिण अमरीकियों के भोजन का एक आवश्यक अंग बन गया। असीरियन पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता जब विश्व की रचना करने बैठे उस भोज में तिल से बनी हुई मदिरा प्रस्तुत की गई।

तिल के घरेलू सुझाव-

  • कब्ज दूर करने के लिये तिल को बारीक पीस लें एवं प्रतिदिन पचास ग्राम तिल के चूर्ण को गुड़, शक्कर या मिश्री के साथ मिलाकर फाँक लें।

  • पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये समान मात्रा में बादाम, मुनक्का, पीपल, नारियल की गिरी और मावा अच्छी तरह से मिला लें, फिर इस मिश्रण के बराबर तिल कूट पीसकर इसमें में मिलाएँ, स्वादानुसार मिश्री मिलाएँ और सुबह-सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे शरीर के बल, बुद्धि और स्फूर्ति में भी वृद्धि होती है।

  • प्रतिदिन रात्रि में तिल को खूब चबाकर खाने से दाँत मजबूत होते हैं।

  • यदि कोई जख्म हो गया हो तो तिल को पानी में पीसकर जख्म पर बांध दें, इससे जख्म शीघ्रता से भर जाता है।

  • तिल के लड्डू उन बच्चों को सुबह और शाम को जरूर खिलाना चाहिए जो रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। तिल के नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और रोग प्रतिरोधकशक्ति में वृद्धि होती है।

  • पायरिया और दाँत हिलने के कष्ट में तिल के तेल को मुँह में १०-१५ मिनट तक रखें, फिर इसी से गरारे करें। इससे दाँतों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है। गर्म तिल के तेल में हींग मिलाकर भी यह प्रयोग किया जा सकता है।

  • पानी में भिगोए हुए तिल को कढ़ाई में हल्का सा भून लें। इसे पानी या दूध के साथ मिक्सी में पीसलें। सादा या गुड़ मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है।

  • जोड़ों के दर्द के लिये एक चाय के चम्मच भर तिलबीजों को रातभर पानी के गिलास में भिगो दें। सुबह इसे पी लें। या हर सुबह एक चम्मच तिलबीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के चूर्ण के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें। इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।

  • तिल गुड़ के लड्डू खाने से मासिकधर्म से संबंधित कष्टों तथा दर्द में आराम मिलता है।

  • भाप से पकाए तिलबीजों का पेस्ट दूध के साथ मिलाकर पुल्टिस की तरह लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

 

९ जनवरी २०१२

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