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१३. १२. २०१

सप्ताह का विचार- दर्पण आपका सर्वश्रेष्ठ मित्र होता है क्योंकि वही एक है जो आपके रोने पर कभी नहीं हँसता। -मुक्ता

अनुभूति में-
मधु प्रधान, जितेन्द्र जौहर, एन.टी. महादेव राव, यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' और सत्यनारायण सिंह की रचनाएँ।

सामयिकी में- लोकतंत्र में गोपनीयता का क्या काम है? लेकिन बातें छुपाई जाती है। विकीलीक्स के बहाने वेद प्रताप वैदिक का लेख रहस्यों का लोकतंत्र

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- नर्म और चमकीले बालों के लिये उन्हें धोने के बाद एक मग पानी में एक चम्मच सिरका मिलाकर बालों पर डालें और सुखा लें।

पुनर्पाठ में- वर्ष २००२ में समकालीन कहानियों के अंतर्गत २४ जुलाई के अंक में प्रकाशित जयनंदन की कहानी- पेटू

क्या आप जानते हैं? श्रीलंका की राजधानी जयवर्धने पुरा कोट्टे है न कि कोलंबो जैसा सामान्य रूप से लोग समझते हैं।

नवगीत-की-पाठशाला-में- कार्यशाला-१ के गीतों का प्रकाशन शुरू हो गया है और यदि अभी तक रचना नहीं भेजी तो जल्दी भेज दें। आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली- ००७


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.के. से महेन्द्र दवेसर की कहानी ईबू

२६ दिसम्बर २००४ क्रिसमस की ख़ुशियाँ, बधाइयाँ अभी वातावरण में गूँज रही थीं। सागर में मचले उस दिन के उफान को कौन भूल सकता है? जापानियों ने उसका नाम सुनामी रखा है। डॉक्टर श़ेफाली मित्रा के बस में होता तो वह इस प्रलय का नाम सुनामी नहीं, ‘कुनामी’ रखती। तीस-तीस, चालीस-चालीस फ़ुट ऊँची लहरें आईं और लाखों इन्सानों की लाशों को कंकड़ों की तरह तट पर बिखेर गईं। समुद्र में जो लोग डूब गए, वे अलग! झोंपड़ियाँ तो क्या दोमंज़िला मकानों को वे यों लील गईं जैसे एक हिलोर में घुल जाते हैं बाल-निर्मित रेत के घरौंदे!! अगली सुबह सुन्दरी- पूरा नाम, सुन्दरी तायफ़- शेफ़ाली के घर आ पहुँची। उसकी आँखों में भी तो सागर जैसा उफ़ान था। आँसू थे कि थम नहीं रहे थे। “डॉक्टर, मुझे छुट्टी चाहिए। मालूम नहीं, मेरे माता-पिता, मेरा घर सही-सलामत हैं भी या नहीं! मेरा पूरा देश मुसीबत में है। मुझे जाना होगा।” सुन्दरी शेफ़ाली की सर्जरी में नर्स ही नहीं थी,  ... पूरी कहानी पढ़ें...
*

रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
अहंकार की गति
*

कुमार रवींद्र का नगरनामा
एक गली-गाथा उर्फ़ किस्सा-ए-कूचा कायस्थान
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सुभाषिणी खेतरपाल का दृष्टिकोण-
पुस्तकों ने मुझे बिगाड़ा
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डॉ. प्रभुदयाल प्रदीप से जानें
लड़कियाँ लड़कों सी नहीं होतीं

पिछले सप्ताह

अमिताभ ठाकुर का व्यंग्य
उसका पसंदीदा देश
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सुषम बेदी का आलेख
अमेरिका में हिंदी: एक सिंहावलोकन
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बलराम अग्रवाल से जितेन्द्र जीतू
की बातचीत- समझ लघुकथा की
*

पर्यटक के साथ देखें
ऐतिहासिक इमारतों में बसा एडिनबर्ग

*

समकालीन कहानियों में भारत से
सुरेखा ठक्कर की कहानी परिचय

काफी देर तक मैं डायरेक्टरी में उर्मि जैन का नम्बर ढूँढती रही। उनसे कल का अपॉइन्टमेंट लेना था और शाम को ही वह साक्षात्कार लिखकर तैयार रखना था। इतनी बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता का नम्बर डायरेक्टरी में नहीं है ? मैंने अपनी याददाश्त पर ज़ोर डाला। उन्होंने ५६०७३ नम्बर कहा था या ५६७०३ कहा था?
उस दिन डायरी साथ न ले गई, सो नम्बर कहीं लिखा नहीं था। खैर, डायरेक्टरी लौटाकर मैं टेलीफोन बूथ की ओर मुड़ी। पर्स से सिक्का निकाला और ५६०७३ नम्बर घुमाया। हलो की आवाज़ आते ही मैंने सिक्का घेरे में डाल दिया,
‘‘क्या में उर्मिजी से बात कर सकती हूँ ?’’
‘‘जी हाँ, आप उन्हीं से बात कर रही हैं!’’
चलो सही नम्बर लगा - ‘‘उर्मिजी हमारी पत्रिका ‘अक्षर’ के लिए मैं आपसे भेंट करना चाहती हूँ। मैं... स्नेहा गुप्ता।
... पूरी कहानी पढ़ें...

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